बनते-बनते रह गया लोकायुक्त व स्थानान्तरण क़ानून ! बहुमत होने के बाद भी पुन: संशोधन के लिए प्रवर समिति को सौंपा!
(मनोज इष्टवाल)
यूँ तो उत्तराखंड लोक सेवकों के लिए वार्षिक स्थानान्तरण विधेयक-2017 विधान सभा सत्र में रखा गया जिस पर चर्चा भी हुई और साथ ही लोकायुक्त विधेयक भी पटल हुआ चर्चा के बाद जैसे ही नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने लोकायुक्त विधेयक पर विपक्ष की मंजूरी दी जाने क्या हुआ कि दोनों ही विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिए गए .

जबकि पूर्व में सम्पूर्ण विपक्ष ने इसके संशोधन का रूप तैयार करने के लिए प्रवर समिति को सौंपने की मांग की जो एक माह के अन्दर अपना प्रतिवेदन सदन में प्रस्तुत करती.
इन दोनों विधेयकों को प्रवर समिति को सौंपने पर विपक्ष ने कहा कि सरकार का मन ही नहीं था कि वे इन विधेयकों को पास करवाए.सरकार ने जितनी तेजी से लोकायुक्त विधेयक व तबादला विधेयक को सदन में रखा, उतनी दृढता से वह उसे पास नहीं करा पाई। लोकायुक्त बिल पर आश्चर्यजनक तरीके से सरकार के कदम ठिठक गए। किसी को अंदाजा तक न था कि सरकार लोकायुक्त एक्ट को प्रवर समिति के हवाले कर देगी। वह भी तब जबकि विपक्ष भी इस विधेयक का समर्थन कर रहा था। इसके बावजूद विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति को भेजा जाना कई सवालों को जन्म देता है। यहां एक और ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अभी प्रवर समिति का गठन भी नहीं हुआ है। आम तौर पर प्रवर समिति को ऐसे विधेयक भेजे जाते हैं, जिन पर सदन में विवाद की स्थिति हो, जिनमें कोई खामी सामने आ रही हो या फिर कोई सवाल उठ रहा हो। लोकायुक्त बिल की बात करें तो उसमें ऐसी कोई तकनीकी दिक्कत थी ही नहीं, बस विपक्ष की ओर से होने वाले विरोध का अंदेशा था। हालांकि सरकार का संख्याबल (57) ही इतना ज्यादा है कि विपक्ष के विरोध की भी उसके सामने कोई हैसियत नहीं होती। लेकिन आश्चर्यजनक यह रहा कि लोकायुक्त बिल पर विपक्षी कांग्रेस का भी सरकार को खुला समर्थन रहा। इसके बाद भी बिल पास नहीं हुआ तो फिर क्या यह माना जाए कि खुद सरकार ही नहीं चाहती थी कि विधेयक पास हो?