बदलाव की बयार को पूर्णकालिक विराम..! होली से पहले मिल सकते हैं प्रदेश को तीन मंत्री!

(मनोज इष्टवाल)

सो काल्ड अर्थात तथाकथित राजनैतिक अस्थिरता पर अब पूर्ण विराम लग चुका है! उत्तराखंड में विगत कुछ समय से चल रहा परदे के पीछे कुर्सी का खेल व सोशल साइट्स पर खबरों की बाढ़ लगता है अब थम जायेगी क्योंकि विगत दिवस दिल्ली में हुई हाजिरी के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के हाथ संजीवनी लग गयी है! अब अगर कोई रोड़ा दिख रहा है तो वह है मंत्रीमंडल का विस्तार..!

सूत्रों का मानना है कि तमाम विरोधियों की सक्रियता के बावजूद भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व उनकी टीम ने आलाकमान का विश्वास हासिल कर उन सब ख़बरों, अफवाहों पर पूर्ण विराम लगवा दिया है जिनमें राजनैतिक अस्थिरता व सत्ता परिवर्तन की बात हो रही थी!

वहीँ अन्य सूत्र कहते हैं कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ ! भले ही इस सब के पीछे मुख्यमंत्री के खासमख़ास बड़े अफसर की भूमिका बतौर बिचौलिया रही हो लेकिन इतना अभयदान भी नहीं है कि मन मर्जी थोपी जा सके!

दूसरी ओर जो पुष्ट संकेत मिल रहे हैं उसके अनुसार मुख्यमंत्री हाई कमान के निर्देशानुसार आगामी मार्च प्रथम सप्ताह या फिर होली तक अपने मंत्री मंडल में विस्तार कर सकते हैं जिसके आधार पर प्रदेश को गढवाल व कुमाऊं क्षेत्र से तीन मंत्री मिलने की उम्मीद जताई जा रही है! उसमें एक देहरादून के विधायक का नाम भी चर्चाओं में है!

मंत्री मंडल के विस्तार के साथ अन्य को मैनेज करने के लिए 20-25 लालबत्तियां और बंटने की सम्भावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता! पूर्व चर्चाओं में जहाँ पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज व डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का नाम मुख्यमंत्री के रूप में लिया जा रहा था वहीँ दोनों के नजदीकियों ने इस बात से साफ़ तौर पर इनकार करते हुए कहा है कि यह सब एक अफवाह है और बाकी कुछ नहीं!

अगर यह अफवाह थी तब वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता की बात किस आधार पर की थी! क्या यह किसी कूटनीति के तहत दिया गया उनका बयान था!

बहरहाल यह प्रदेश के लिए सुखद खबर लग रही है कि बदलाव का आर्थिक बोझ इस कमजोर प्रदेश पर नहीं पड़ रहा है लेकिन लाल बत्तियों के डोले बंटने से वह बोझ कितना अधिक बढेगा कहा नहीं जा सकता!

मेरा मानना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की छवि को देखते हुए केंद्र ने यह अहम फैसला लिया होगा लेकिन साथ ही यह मानना भी है कि मुखिया को अपने आस-पास के उस काकस पर भी गिद्द दृष्टि रखनी होगी जो मुख्यमंत्री को आम लोगों से दूर छिटका रहे हैं! फिर भी यह राजनीति है कौन कितने दिन तक यहाँ अमृत पीकर आया है कोई नहीं जानता! जिस तरह राजनीतिक माहौल पल में तोला पल में मासा है उसमें खबरचियों की चक्करघिन्नी यूँहीं बनी रहेगी यह मेरा व्यक्तिगत मानना है!

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