बगङवाल नृत्य!- बण्ड पट्टी के बाटुला (मायापुर)गाँव में 13 बर्ष के बाद आयोजन।7 जनवरी को सोमेश्वर डोली व 8 जनवरी को रोपणि।
बगडवाल नृत्य! – बंड पट्टी के बाटुला(मायापुर) गाँव में 13 बरस बाद आयोजन। 7 जनवरी को सोमेश्वर डोली और 8 जनवरी को रोपणी।
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
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बंड मेले के बाद बंड पट्टी के नौरख(पीपलकोटी) में पांडव नृत्य और बाटुला (मायापुर) में बगडवाल नृत्य का आयोजन हो रहा है। कल 28 दिसम्बर से शुरू हो गया है नृत्य। 13 बरस बाद आयोजन हो रहा है। जिसमें 7 जनवरी को सोमेश्वर डोली और 8 जनवरी को रोपणी लगाई जायेगी। बग्ड्वाल नृत्य पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। आज भी जींवत है लोक में जीतू बगडवाल की अमर प्रेम गाथा। पहाड़ के दर्जनों गाँवों में हर साल जीतू बगडवाल की याद में बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिसमें सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है सोमेश्वर डोली और रूपणी।
गौरतलब है कि आज से एक हजार साल पूर्व तक प्रेम आख्यानों का युग था, जो 16वीं-17वीं सदी तक लोकजीवन में दखल देता रहा। हमारा पहाड़ भी इन प्रेम प्रसंगों से अछूता नहीं है। बात चाहे राजुला-मालूशाही की हो या तैड़ी तिलोगा की, इन सभी प्रेम गाथाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। लेकिन, सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली ‘जीतू बगड्वाल’ की प्रेम गाथा को, जो आज भी लोक में जीवंत है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। बहाना अपनी प्रेयसी भरणा से मिलने का भी है, जो सोबनी की ननद है। दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता है। और..एक दिन वह रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगा। बांसुरी की मधुर लहरियों पर आछरियां (परियां) खिंची चली आई। वह जीतू को अपने साथ ले जाना (प्राण हरना) चाहती हैं। तब जीतू उन्हें वचन देता है कि वह अपनी इच्छानुसार उनके साथ चलेगा। आखिरकार वह दिन भी आता है, जब जीतू को परियों के साथ जाना पड़ा। जीतू के जाने के बाद उसके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। जीतू के भाई की हत्या हो जाती है। तब वह अदृश्य रूप में परिवार की मदद करता है। राजा जीतू की अदृश्य शक्ति को भांपकर ऐलान करता है कि आज से जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजा जाता है। तब से लेकर आज तक जीतू की याद में पहाड़ के गाँवों में जीतू बगडवाल का मंचन किया जाता है। जो कि पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। समय के साथ अब बहुत सीमित गाँवों में ही इसका मंचन किया जा रहा है।
अगर आपको भी समय मिले तो जरूर आइयेगा मेरे मुल्क जीतू बगडवाल की अनमोल प्रेम गाथा देखने।