पढ़ाई के लिए चुनौती साबित होती मिड डे मील योजना!
पढ़ाई के लिए चुनौती साबित होती मिड डे मील योजना!
(उषा नेगी)
सरकार द्वारा लागू की गयी मिड डे मील योजना क्या बच्चों को पोषणयुक्त आहार देने के साथ -साथ क्या उन्हें पूर्ण शैक्षिक माहौल दे पायेगी ,यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बारे में सरकार को पुनः सोचना पड़ेगा |बच्चों को पोषणयुक्त आहार देने के चक्कर में कहीं हम शिक्षा के मूल उद्देश्य से दूर न हो जांय |मध्यान्ह भोजन योजना लागू होने से विद्यालयों का माहौल ही बदल गया है |ग्रामीण इलाकों में तो बच्चे घर से ही बर्तन लेकर स्कूल जाते हैं |उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो वे पिकनिक मनाने जा रहे हों |ये बच्चे स्कूल में किताब सामने और खाने का बर्तन बगल में रखते हैं |कक्षा में उनका ध्यान अध्यापक और रसोई दोनों ओर लगा रहता है |मध्यांतर होने पर
वे भोजन के लिए अपने हाथों में बर्तन लेकर पंक्तिबद्ध खड़े हो जाते हैं उस समय विद्यालय विद्यालय जैसा नहीं लगता अपितु ऐसा लगता है जैसे बच्चे किसी आपदा शिविर में खड़े हों |अधिकतर यह भी देखा गया है कि अधिकांश बच्चे मध्यान्ह भोजन के बाद घर चले जाते हैं और अध्यापक भी इसी के साथ अपने दायित्वों का एक प्रकार से इतिश्री मान लेते हैं !
यद्यपि मिड डे मील योजना के क्रियान्वयन में गडबडी की खबरें लगातार आ रही हैं फिर भी यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या यह योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो रही है ? या फिर किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दुसरे एवं महत्वपूर्ण लक्ष्य की कुर्बानी दी जा रही है? विद्यालय मैं भोजन देने की प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है |आजादी से पूर्व 1925 में अंग्रेजी सरकार द्वारा चेन्नई नगर निगम और फ़्रांसिसी सरकार द्वारा पुडुचेरी के विद्यालयों में भोजन देने की व्यवस्था थी|लेकिन आजादी के बाद सर्वप्रथम 1962 में तमिलनाडु में कामराज के नेतृत्व वाली सरकार ने यह योजना शुरू की |बाद में 1982 में एमजीरामचन्द्रन ने इसे बदलकर ‘पोषणयुक्त आहार योजना ‘के नाम से नई योजना शुरू की | वर्तमान मध्यान्ह भोजन योजना 15 अगस्त ,1995 से शुरू की गयी , इसका मुख्य
उद्देश्य बच्चों को पोषणयुक्त आहार प्रदान करना ,बच्चों को स्कूल में रोकना एवं बच्चों की उपस्थिति बढ़ाना था |परन्तु आज इस योजना का कुप्रभाव शिक्षा प्रणाली पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है |जब अध्यापक चावल,गेंहू ,दलिया और सब्जी की खरीददारी और आपूर्ति देखेंगे और बच्चों के हिसाब से खाना तैयार करके उन्हें खिलाने की जिम्मेदारी निभाएंगे तो उनसे शिक्षादान में ईमानदारी की उम्मीद करना कठिन होगा |आजकल सभी विद्यालयों के मिड डे मील योजना के प्रभारी शिक्षकों को प्रखंड एवं आपूर्ति कार्यालय
के चक्कर लगते हुए देखा जा सकता है |यदि विद्यालयों में मिड डे मील के लिए अलग से एक स्वतंत्र व्यवस्था की जाय और शिक्षकों को इससे मुक्त रखा जाय तो शिक्षक बच्चों की पढाई की ओर पूरी तरह ध्यान दे पाएंगे |इसके अतिरिक्त अंतिम विकल्प के रूप में ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण ‘योजना अर्थात् डीबीटी के माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों के परिवार को सीधे नकद राशि का ही भुगतान कर दिया जाय |ऐसा करने से बच्चों के परिजनों पर ही पोषणयुक्त आहार देने का दायित्व रहेगा एवं विद्यालय में पठन -पाठन का माहौल भी बना रहेगा |