पूरे प्रदेश के शैक्षिक संस्थान 15 मई तक बंद। फिर ये प्राइवेट स्कूलों का ऑनलाइन क्लासेस का कैसा फरमान।
(मनोज इष्टवाल)
क्या यह खेल निदेशक अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण उत्तराखंड श्रीमती सीमा जौनसारी के पत्र के बाद शुरू हुआ जिसमें उन्होंने कुछ गाइडलाइन्स जारी की थी। यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया अफसरशाही का फैसला है या फिर सिस्टम की आंख में धूल झोंकने का जोखिम! क्योंकि सीमा जौनसारी के लिखे पत्र में कहीं यह इंगित नहीं किया गया है कि आप बन्द स्कूलों में भी विद्यार्थियों से फीस वसूलों। और न ही इस तरह का कोई जिक्र ही है कि यह सरकार के दिशा निर्देश पर लिया गया अहम फैसला है। यह एक ऐसा अबूझ पत्र है जिसे जारी करने में तमाम सवालिया निशान खड़े होते है। आप भी पढियेगा इस पत्र को जिसमें कहीं भी स्कूलों को सरकारी हुक्म की तरह दिशा निर्देश जारी नहीं किये गए हैं। प्रश्न यह है कि फिर इस पत्र की भाषा को ही आदेश मानकर कैसे प्राइवेट स्कूलों ने उससे कमाई का जरिया ढूंढना शुरू कर दिया है। यह खेल आखिर खेला किसने है?
सीमा जौनसारी निदेशक अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण शिक्षा विभाग उत्तराखण्ड द्वारा जारी पत्र के स्क्रीन शॉट्स:-



यह उत्तराखंड में ही सम्भव हो सकता है क्योंकि यहां का सिस्टम इतना करप्ट है कि कुछ भी सम्भव है। एक ओर कोरोना वैश्विक महामारी के रूप में पूरे विश्व को झकझोर हुए है वहीं आर्थिक मंदी के भयंकर दौर से देश और दुनिया गुजर रही है। घरों में कैद लोग खौफ में हैं लेकिन प्रदेश के प्राइवेट स्कूल्स गुपचुप तरीके से यहां भी अपनी कमाई का जरिया ढूंढ लिए हैं।

हालात के मध्यनजर जहां उत्तराखंड सरकार ने केंद्र को अपने प्रपोजल में साफ किया है कि प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थान 15 मई तक बंद रहेंगे फिर ऐसे में पर्दे के पीछे कौन है जिसने प्राइवेट स्कूलों को ऑनलाइन क्लास की परमिशन देकर यह तक तय करवा दिया कि आप किस बुकसेलर से किताबें खरीदेंगे, आप किस तरह से स्कूली फीस भरेंगे व कैसे ऑनलाइन कक्षाओं का व्यय भार उठाएंगे।
अगर ऐसा कोई आदेश सरकार के मुख समर्थन में जारी हुआ है तब प्राइवेट स्कूल ही क्यों? सरकारी स्कूलों पर यह क्यों लागू नहीं होता।
भ्रष्टाचार की वानगी देखिए प्राइवेट स्कूल्स ने बच्चों को अपने स्कूल्स का अप्प डाउनलोड करने के निर्देश भेजें है व जबरदस्ती होम वर्क देना शुरू कर दिया। सूत्रों के अनुसार अप्रैल, मई और जून माह की फीस ये स्कूल्स मांग रहे हैं जिसमें स्पोर्ट्स व बस चार्ज भी इंक्लूड कर रखा है।
यहां दिक्कत ये है कि ज्यादात्तर स्कूल्स बन्द होने पर पर जहां अध्यापकों को सैलरी नहीं दे रहे हैं लेकिन इन्हें बन्द क्लासेस के छात्रों से किसी भी हाल में फीस वसूलनी ही वसूलनी है। एक अभिवाहक ने जानकारी देते हुए बताया कि बिजनेसमैन या फिर सरकारी नौकरियों वाले तो जैसे तैसे इनकी फीस चुका देते हैं लेकिन प्राइवेट नौकरी वालों का क्या होगा जो घर बैठे है। होटल व्यवसाय से जुड़े लोग इस फरमान से सबसे ज्यादा सकते में हैं क्योंकि उनकी स्थिति यह है कि वे कमरों में कैद हैं व बाहर तक निकलने के सारे ऑप्शन बन्द हैं।
फ्रांस के एक होटलकर्मी मदन सिंह बताते हैं कि वे उत्तराखंड से हैं व फ्रांस में कोरोना से मरने वालों की संख्या डेढ़ लाख के आस-पास पहुंच गई है। उस जैसे कई अन्य उत्तराखण्डी भी होटल व्यवसाय में हैं व बुरी तरह फंसे हुए हैं। ऐसे में जब मानवता पर खतरा मंडरा रहा है उनके बच्चों के स्कूल से उन्हें तीन माह की फीस जमा करने का दबाब डाला जा रहा है।
क्या यह इन तीन महीनों की फीस लूटने का एक अच्छा सरल उपाय प्राइवेट स्कूल्स व बुकसेलर्स की मिलीभगत के माध्यम से रचा जा रहा है। क्या सचमुच पर्दे के पीछे सफेदपोश इसे रंग दे रहे हैं या फिर सरकारी सिस्टम के कुछ दलाल टाइप के अधिकारी। मुझे नहीं लगता कि यहां सरकारी खुफिया तंत्र को इसकी भनक नहीं है।
अभिवाहक सकते में हैं कि इस महामारी से अपना ही जीवन यापन दूभर हो गया है, बच्चे स्कूल की किताबें घर में खोलने को तैयार नहीं होते तो भला क्या वे ऑनलाइन पढ़ाई करेंगे। क्या सरकार व शासन प्रशासन का चाबुक ऐसे प्राइवेट स्कूलों पर चलेगा या फिर सिस्टम इनका पनाहगार होगा यह देखना बाकी है।
क्यों नहीं ये स्कूल्स शिक्षक व विधाधन का पालन पौड़ी गढ़वाल के थैलीसैण विकासखंड के राजकीय प्राथमिक विद्यालय चुठानी के अध्यापकों प्रधानाचार्य दिगम्बर सिंह रावत व पंकज सुंदरियाल की तरह व्हाट्सएप पर ऑनलाइन मुफ्त में बच्चों को उनके बिषयों पर आधारित शिक्षा देते।
अभी/अभी यानि 6:23 बजे सीमा जौनसारी निदेशक ने लिए खबर का संज्ञान।
खबर का संज्ञान लेते हुए सीमा जौनसारी निदेशक अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण शिक्षा विभाग उत्तराखण्ड ने स्पष्ट किया कि उनके इस सन्देश का प्राइवेट स्कूलों से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि ये स्कूल उनके सेवा क्षेत्र दायरे में नहीं आते। उन्होंने कहा उनका दायित्व व कर्तब्य भी यही कहता है कि वे अभिवाहकों से न नहीं सरकारी स्कूलों के अध्यापकों व छात्र-छात्राओं से संवाद कायम रखें क्योंकि इन दिनों स्कूल्स बंद होने पर छात्र-छात्राएं अपने भविष्य के प्रति लापरवाही बरत रहे होंगे, कहीं उनकी दैनिक दिनचर्या में शामिल शिक्षा अध्ययन उनसे दूर न हो इसलिए उन्होंने एक सन्देश के माध्यम से छात्र-छात्राओं ने जुड़ने व उनके सेलेबस सम्बन्धी जानकारियों से उन्हें जोड़े रखने की पहल की है जिसका दूर-दूर तक न फीस से कोई वास्ता है और न किसी तरह के अन्य बोझ से जो अभिवाहकों पर पड़े। उनका लक्ष्य है कि खाली समय में क्यों न हर सरकारी स्कूल के छात्र-छात्राएं स्मार्ट क्लासेस की तरह ऑनलाइन पढ़ाई को भी अपनाए ताकि यह उनके लिए मनोरंजक हो सके। उन्होंने कहा कि मेरा सन्देश व्यक्तिगत तौर पर कहीं भी किसी भी स्कूल्स के लिए कोई आदेश या निर्देश नहीं है, रही निजी स्कूलों की बात तो यह समझा जाना चाहिए कि शिक्षा विभाग उत्तराखण्ड सरकार का अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण विंग का निजी विद्यालयों की संचालन गतिविधि व किसी भी तरह की कोई भी एक्टिविटीज से कोई लेना देना नहीं है।
