पहाड़ की रंगत देखनी है तो चौमासे (वर्षाऋतु) से बेहतर और कोई समय हो ही नही सकता ।

(रतन सिंह असवाल की कलम से)

वर्षाकाल और पहाड़ ? कुछ लोग के जेहन मे यह प्रश्न ख़बरिया चैनलों और समाचार पत्रों मे छपने वाली खबरों से उठने स्वाभविक भी है लेकिन जितने चिल्ला चिल्ला कर स्टूडियों मे बैठे पगारी हालतों को परोशते है वास्तविक स्थितियां असल मे वैसी होती है नही ..!

हां यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर नदी नालों के मुहानों को बंद या बाधित कर व्यापारिक एवं आवसीय निर्माण कर अपने लिए खुद आफत मोल लेता है तो ये खबरे बननी तो चाहिए लेकिन एक पक्षीय नही …।
पहाड़ और आपदाओं का चोली दामन का साथ युगों-युगांतरो से रहा है और जबतक सृष्ठि है शायद तबतक यह प्राकृतिक सदभाव चलता ही रहे इस सम्भावना से भी तो इनकार नही किया जा सकता है ।

उत्तरकाशी जनपद का रवाई व पर्वत क्षेत्र भी चमोली व रुद्रप्रयाग जिले की भांति उच्च व मध्य हिमालयी क्षेत्र है लेकिन यहां के रैबासी समाज ने यहां की प्रकृति व देवी देवताओं का बाजारीकरण नहीं किया है और ना ही ये बेवजह उसमें हस्तक्षेप करते नजर आते हैं, यही कारण भी है कि यहां आपदाएं कम हैं और मानव खुशहाली सबसे अधिक। रवाई घाटी में कमलसिराई वे रमासिराई दोनों ही जहां लाल चावल के बड़े उत्पादक हैं वहीं पर्वत क्षेत्र का मोरी सांकरी से लेकर जखोल, लिवाड़ी, फिताड़ी, फतेपर्वत व आराकोट क्षेत्र सेब उत्पादन का बड़ा व्यापारिक केंद्र है लेकिन उत्तराखण्ड की किस्मत देखिए यहां के काश्तकार का सारा माल लाल चावल हिमाचल खरीदता है व उसे एक्सपोर्ट करता है वहीं सेब की 75 प्रतिशत खपत पर अपनी पेटियों की मुहर लगाता है।

रवाई घाटी का कमल सिराई व रमा सिराई क्षेत्र (विज़ुअल डॉक्यूमेंट -रतन सिंह असवाल)

आपदाओं की भविष्यवाणी यूरोप, अमेरिका ,जापान सरीखे अत्याधुनिक तकनीक से सम्पन्न देश भी नही कर पाते है किंतु उंन्होने आपदाओं से निपटने मे महारत हासिल कर ली है जिसमे हमारा देश अभी बहुत पीछे है । बात यदि उत्तराखंड के आपदा प्रवंधन की हो तो मै यही कहना चाहूंगा कि जिस राज्य मे योग्यताओं के स्थान पर नेता और अधिकारियों के करीबी कम योग्यता वालों को प्रार्थमिकता के आधार पर नौकरी/तैनाती मिलती हो वहां बहुत सुधार की कल्पना भी करना बेमानी होगी ।

बाद बाक़ी देहरादून जैसे महानगरों के नदी नालों के तटबंधों और मुहानों पर जब गैरराज्यी लोग वेतहासा अवैध कब्जे करते है और उच्च न्यायलय उन अवैध वस्तियों को हटाने के लिए सरकार को आदेश देती हो,,,तब चुंनिन्दा नेताओं के राजनीतिक भविष्य के लिए अवैध वस्तियों के पक्ष मे सरकार को आध्यदेश लाना पढता हो.. उस स्थिति मे यदि पहाड़ो मे राज्य सरकार की जमीनों पर काबिज राज्य के लोगों को भी सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित कर उनके कब्जे वाली भूमि के नियमतिकरण की पैरवी स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अवश्य करनी चाहिए ।

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