पर्वत पुत्र हिमवती नन्दन बहुगुणा की 29वीं पुण्य तिथि के श्रद्धासुमन।
पर्वत पुत्र हिमवती नन्दन बहुगुणा की 29वीं पुण्य तिथि के श्रद्धासुमन।
(मनोज इष्टवाल)
एक जिंदादिल इंसान के साथ राजनीति के एक ऐसे पुरोधा जिन्होंने उत्तरप्रदेश में कई ऐसे राजनेताओं को राजनीति सिखाई जो बाद में न सिर्फ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे बल्कि देश की राजनीति के क्षितिज पर जुगनू से चमके। जिनमें एक पंडित नारायणदत्त तिवारी भी हुए।
1986 में जब मैं दिल्ली की छात्र से राजनीति में घुसा तो सर्वप्रथम लोकदल की सदस्यता ली और मात्र 6 माह के अंतराल में मेरे सामाजिक कार्यों व राजनीतिज्ञ समझ को देखते हुए तत्कालीन लोक दल अध्यक्ष ने मुझे बर्षों से दिल्ली की राजनीति में सक्रिय युवाओं की टोली में शामिल कर दिया जिनमें मणिराम बागड़ी, खुशहाल सिंह रावत सहित कई और युवा भी शामिल थे। इसके कुछ समय बाद राजेन्द्र शाह भी लोकदल युवा विंग में शामिल हुए।
मैं दिल्ली जैसे महानगर में प्रदर्शनों की अगुवाई करने लगा। चाहे वह निर्वाचन आयोग के आगे की भीड़ हो या फिर जंतर मंतर इत्यादि । तब मेरी खुशहाल सिंह रावत व मणिराम बागड़ी की ऐसी तिगड़ी थी कि प्रवासी लोग एक पल में जुट जाते थे। गर्म दल के मणिराम व मैं ज्यादा थे। प्रदर्शन के लिए जनता को कैसे उकसाना है यह मैं भले से जानता था।
आज भी मुझे निवार्चन आयोग के बाहर युवा लोकदल का वह प्रदर्शन याद है जिसकी अगुवाई हम तीनों ही कर रहे थे। हर सम्भव प्रयत्न के बाद भी पुलिस लाठी चार्ज नहीं कर रही थी। थोड़ी देर बाद एक पुलिस सब इंस्पेक्टर मेरे पास आया और मेरे कान पर फुसफुसाया कि माननीय बहुगुणा जी का वायरलेस सन्देश है। मैं अनमने ढंग से उसके नजदीक गया प्रदर्शनकारियों को लगा कि मुझे पकड़ रहे हैं तो जोर आजमाइश शुरू हुई। मैंने हाथ उठाकर सबको संयमित रहने को कहा । वह मुझे किनारे पर ले गए। वायरलेस पर बहुगुणा जी की आवाज आई जिस से वायरलेस लिये थोड़ी देर बाद उसे धक्का देना तब सब कुछ हो जाएगा।
मैं समझ गया इशारा क्या है। भीड़ के पास पहुंचते ही मैं तेजी से बड़ा और सब इंस्पेक्टर को जोर से धक्का दिया। फिर क्या था पुलिस की लाठियां शुरू हो गयी। दो मेरे पिछवाड़े पर भी लगी। मुझे व खुशहाल सिंह रावत को गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि मणि राम बागड़ी पीछे रह गए और भीड़ को उत्साहित करते रहे।
हमें अंदर ले जाकर ठंडा पिलाया गया और पिछले गेट से पुलिस बैन से लोकदल कार्यालय छोड़ दिया गया। दूसरे दिन अखबारों में सुर्खियां थी । “लोकदल का निवाचन आयोग पर उग्र प्रदर्शन” युवा लोकदल के अध्यक्ष व महासचिव गिरफ्तार। तब पहली बार मेरे अखबारों में फोटो छपी थी। नाम तो कई बार छप चुका था।
शाम को हिमवती नन्दन बहुगुणा जी ने अपने आवास रेसकोर्स बुलाया और मेरा कंधा थपथपाते हुए कहा – त्वे याद हो न हो…पर मी याद च, इंटर कालेज जखेटी का विद्यार्थी जब मेरु 5 बजी तक इंतजार कना रैनि। तब त्वी उन्को फुंडयानाथ छायो।
चाय की चुस्कियों के साथ वे बेहद स्नेहिल दृष्टि से मुझे देखते हुए बोले- वर्तमान राजनीति जिस पथ पर निकल चुकी है उसमें तू अपने को फिट कर पायेगा कि नहीं । मैं नहीं जानता लेकिन इतना सच है कि राजनीति में घुसी धूर्त और मक्कारी तेरी समझ से परे है। ईश्वर भला करे!
उनकी ये बातें सुनकर मैं उस रात फिर नहीं सो सका। पहले 1983 में ऐसा हुआ था जब मैं इंटर कालेज जखेटी का जनरल मॉनिटर था और उन्होंने अपने गले की माला मेरे गले में डालकर सभी विद्यार्थियों से इसलिए क्षमा मांगी थी क्योंकि उन्हें जखेटी पहुंचने में पूरा डेढ़ घण्टा लेट हो गयी थी और छुट्टी के बाद छात्रों को उनका डेढ़ घण्टे सड़क पर इंतजार करना पड़ा था। उस रात वह माला मेरे गले से उतरी नहीं। और तो और महीनों तक वह मेरे स्टडी रूम में टँगी रही।
उसके अगले साल यानि 1989 की जनवरी से ही उन का स्वास्थ्य विगड़ना शुरू हो गया जिसके कारण उनका पार्टी कार्यालय आना लगभग बन्द हो गया। मैं अक्सर उनके आवास लोदी स्टेट जाकर उनके पीएस खान के साथ बैठा रहता था। तब तक बहुगुणा परिवार में रीता बहुगुणा राजनीति में सक्रिय दिखने लगी थी। विजय बहुगुणा तब भी राजाओं की तरह जीते थे आज भी वही अंदाज है। छोटे शेखर जरूर सक्रिय नजर आते थे।
फरवरी 1989 में उन्होने अपने आवास में उत्तराखण्ड समाज के लोगों को चाय पर बुलवाया था तब कोटला से डॉ. घिल्डियाल सहित कई नामी लोग वहां आये। सर्द मौसम और ठिठुरन के बाबजूद हल्की बूंदाबांदी के बाद भी काफी संख्या में प्रवासी जुटे थे। खान तब तक डॉक्टर को लेकर घर से बाहर छोड़ने आया तो पता चला उनकी तबियत बेहद खराब है। सब लौटने ही वाले थे कि खान मेरे कान पर फुसफुसाते हुए बोले- इष्टवाल सम्भाल।
मैंने सबका ध्यान आकर्षित करते हुए बोलना शुरू किया पहले हिंदी में फिर गढवाळी में। मैंने कहा- बहुगुणा जी अपनों के बीच अपनी भाषा में ही बात करना पसंद करते हैं। अंत में मैंने 1983 में दिए उनके भाषण का वह अंश सुना दिया जिसमें उन्होंने कहा था ” कहाँ रह गया नीति, कहाँ रह गया माणा, श्याम सिंग पटवारी ने कहाँ जी जाणा।
तालियां बजी मेरी आँखों में लाचारी के आंसू थे कि काश…! जनता के बीच इस समय बहुगुणा जी होते। तभी नारे गूंजे हिमवती नन्दन बहुगुणा जिंदाबाद। मेरे कंधे पर पीछे से एक कम्पकम्पाता हाथ टिका तो आश्चर्य की सीमा न रही । हिमवती नन्दन बहुगुणा ऊनि सफेद शाल में लिपटे किसी के सहारे के साथ सबका अभिवादन करने पहुंचे और सिर्फ इतना कह पाए। शायद आप सबको मैं अंतिम बार ही देख पाऊं। आज हालात कुछ ज्यादा ही खराब लग रही है। भीड़ से कइयों के मुंह से निकल पड़ा आप सौ साल और जिएंगे। वे मंद मंद मुस्कराए और बोले- आप सबका धन्यवाद बिना चाय पीए मत जाइए।
बस वह दिन था और उसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें इलाज के लिए अमेरिका जाना था। शायद मार्च प्रथम सप्ताह। जाते वक्त वे मुझसे बोले- कखि नौकरी देख। मी सोचणु छायो कि कखि तेरु भलु करुलु । पर व्हा तब। राजनीति अब तुम जना युवा की बस की बात नी। आंसू मैं रोक नहीं सका वे अम्बेसडर में बैठे व एयरपोर्ट को जा निकले। 17 मार्च 1989 को उनकी डेड बॉडी अमेरिका से स्पेशल फ्लाइट से दिल्ली पहुंची। बताया गया कि बाई पास सर्जरी में उनकी मौत हुई। हमने तब कांग्रेसियों पर उन्हें मारने के आरोप लगाए। वक्त बीता और कब ये 29 साल गुजर गए पता भी न चला। तब मैं मात्र 23 बर्ष का था। उसी दिन से मैंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया भले ही मुझे अक्सर चुनाव के समय डॉ घिल्डियाल, केदारनाथ साहनी व मदन लाल खुराना जी ढूंढ ही लेते थे और मैं माइक पर चिल्लाया करता था- कमल कमल कमल, यही ढूंढेगा आपकी समस्याओं का हल।
या फिर- इन द मेट्रो पोलीटन काउंसिल बाई इलेक्शन यूअर वोट एंड सपोर्ट फ्रॉम बीजेपी कैंडिडेट….!
लोकदल छोड़ते ही राजनीति छूटी लेकिन राजनीतिज्ञों को अक्सर चुनाव के समय मेरी याद आ ही जाती थी।
बहुगुणा जी जैसा राजनेता कोई और रहा हो यह मेरे लिए कहना सम्भव नहीं है क्योंकि मैंने उन्हीं के आदर्शों पर कुछ साल राजनीति की। आज न वो राजनीति है न वैसे राजनीतिज्ञ।
29वीं पुण्यतिथि पर उनकी याद में अश्रुपूर्ण श्रद्धासुमन।