पर्वत पुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा का जन्मशताब्दी समारोह व सन १९८०-८१ के चुनाव का ख ब बाँट गया हमारे समाज को….! ख= खस ब= बामण …!
पर्वत पुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा का जन्मशताब्दी समारोह व सन १९८०-८१ के चुनाव का ख ब बाँट गया हमारे समाज को….!
ख= खस ब= बामण …!
(मनोज इष्टवाल/ संस्मरण2014)
सन 19८०-८१ जब यह परिपाटी चन्द्रमोहनसिंह नेगी ने शुरू की या हिमवती नंदन बहुगुणा ने….! कुछ पता नहीं फिर भी मैं किसी एक का नाम लेकर विवाद पैदा नहीं करना चाहता, लेकिन यह सच है कि तब मैं स्कूली छात्र था और इस ख ब के चक्कर में हमारे गॉव में पंचायत का आयोजन किया गया था जिसमें इस कृत्य की भर्त्सना कर हमें यह विश्वास दिलाया गया था कि चाहे कुछ भी हो जाय हम अपने गॉव और समाज में इस ख ब की जड़ को जमने नहीं देंगे! मेरा पूरा गॉव राजपूतों का है और हम चंद परिवार ही वहां ब्राह्मण हैं लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि चुनाव के ऐन पहले यह बात जोर-शोर से प्रसारित की गयी थी कि खस-बामणी ह्वेग्ये भारे…!
तब न मुझे ही कुछ समझ आया और न मेरे से बड़े गॉव के भाई बंधुओं को…! सच मानिए तो पिछले दस साल से पहले तक हमें अपने गॉव में यह कभी महसूस नहीं तक हुआ कि क्या बामण क्या जजमान और क्या शिल्पकार…! सब के वही नाते रिश्ते काकी-बोडी ताऊ- चाचा इत्यादि रहे हैं!
कल चारु चंद चंदोला जी (संस्मरण 2014) से इसी सम्बन्ध में बात हो रही थी चुनाव परिचर्चा थी तब उन्होंने बताया कि वे इस चुनाव को कवर कर रहे थे तो रूद्रप्रयाग में एक पेड़ पर बोर्ड टंगा था जैसे ईस्ट और वेस्ट कभी एक नहीं हो सकते वैसे ही ख और ब.…?
खैर चुनाव का रिजल्ट तब भी हेमवती नन्दन बहुगुणा के पक्ष में रहा और इस ख ब का उस चुनाव पर कितना असर हुआ यह नहीं कह सकता, लेकिन आज इसी राजनीति ने ख और ब शब्द में इतनी गंद फैला दी है कि पहले यह ख और ब तक थी अब कुनवों में बंट गयी. चाहे पंचायत चुनाव हों या फिर बड़े चुनाव …! सब में धड्ड़ेबंधी हो गयी है! अब जबकि सब शिक्षित हैं क्यों न नयी पहल के साथ ऐसे गंदे शब्दों को तित्लांजलि दें! लेकिन देगा कौन …अब तो यह गंद शहरों के गंदे नालों से बहकर ग्रामीण समाज में भी घुल-मिल गया है जिसका असर अब मेरे उस गाँव में भी दिखाई देने लगा है जहाँ कभी कसमें खाई जाती थी कि चाहे कुछ भी हो हम अपने गाँव के अंदर ऐसी दूषित राजनीति नहीं घुसने देंगे!
इस ख और ब शब्द का ठीकरा तब चन्द्रमोहन सिंह नेगी के सिर फूटा जब कोटद्वार से हिमवती नंदन बहुगुणा ने धूलिया की जगह भारत सिंह रावत को टिकट देकर यह बताने की कोशिश की कि यह जहर उन्होंने नहीं घोला है बल्कि इस पुड़िया को बाहर से लाकर गढ़वाल के गंगाजल में डाला जा रहा है..जिससे यह हमारे खून में शामिल हो!
ऐसा ही किस्सा सरोला बामण और गंगाडी बामण का भी रहा …! दोनों रिश्तेदारों का आपसी कलह आज भी इन ब्राह्मणों को दो धाराओं में बांटे हुए है, इसका असर पौड़ी गढ़वाल या टिहरी गढ़वाल में तो नहीं दीखता लेकिन चमोली के सरोला बामण आज भी यह बात नहीं भूलते.
गढ़वाली अखबार के जनक तारा दत्त गैरोला और गिरजा प्रसाद नैथाणी में अखबार को लेकर कुछ मन मिटाव् हुआ और यह सरोला बनाम गंगाडी बामण में विभक्त हो गया तब गढ़वाली अखबार में गिरजा प्रसाद नैथाणी जी ने चुस्की लेकर सरोला ब्राह्मण तारा दत्त (दादर) के बारे में लिखा- सरोला बामण की दादर टर्रटर्र…! झगड़ा हुआ दो रिश्तेदारों गैरोला और नैथाणी के बीच और बाँट दिए गए गंगाडी और सरोला …! वाह रे नियति तेरा भी जवाब नहीं, राजनीति ने जहाँ ब्राह्मण क्षत्रीय वर्ग विभाजन किया वहीँ ब्राह्मणों ने ब्राह्मणों का ही वर्गीकरण कर दो रिश्तेदारों के झगड़े में ब्राह्मण ही दो गुटों में बाँट दिए!
विगत स्न्स्मार्ण को आज के परिवेश से जोड़कर अगर देखा जाय तो आज इस ख और ब का सच फिर सामने आया जब देहरादून प्रेस क्लब में आयोजित पर्वत पुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा के जन्मशताब्दी समारोह विभिन्न राजनीतिज्ञ पार्टियों के क्षत्रपों ने एक साथ मंच साझा किया! चाहे वह राज्य आन्दोलनकारी रहे हों, कांग्रेसी रहे हों या फिर वामपंथी……! हिमवती नंदन बहुगुणा के लिए सभी एक जुट होकर मंच पर विराजमान दिखे! जिनमें कांग्रेसी नेता व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश, केरल के पूर्व सांसद व मंत्री व बहुगुणा जी के शिष्य नीललोहित नाडर (अध्यक्ष, हिमवती नंदन बहुगुणा शताब्दी जयंती समारोह समिति), सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जेड के फैजान, डॉ. लुकमान पूर्व कुलपति हिमाचल विश्वविद्यालय, उत्तराखंड क्रान्ति दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी, उत्तराखंड पत्रकार फोरम के केन्द्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार सुनील नेगी, कार्यक्रम के संयोजक व पूर्व दायित्वधारी मंत्री उत्तराखंड धीरेन्द्र प्रताप, आन्दोलनकारी व राजनीतिक विवेकानंद खंडूरी, आन्दोलनकारी व पूर्व दायित्वधारी मंत्री सरिता नेगी, वामपंथी नेता समर भंडारी, वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल, चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति के केंद्रीय अध्यक्ष जे. पी. पांडे, चिहिंत राज्य आंदोलनकारी समिति। की केंद्रीय अध्यक्षा सावित्री नेगी इत्यादि ने एक साथ मंच साझा किया! इस मंच ने स्पष्ट कर दिया कि पर्वतपुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा स्वयं में कितने धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे!
जहाँ एक ओर कांग्रेसी नेता इंदिरा हृदयेश ने बहुगुणा के विशाल राजनीतिक जीवन पर फोकस करते हुए अप्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष रूप में उनके पुत्र विजय बहुगुणा व पारिवारिक सदस्यों पर राजनीतिक महत्वकांक्षा का आरोप लगाकर हिमवती नन्दन बहुगुणा को किनारा करने का आरोप लगाया वहीं उन्होंने राजनीति से उठकर यह भी कहा कि बहुगुणा वह शख्सियत थी जिन्होंने उस दौर की सबसे शक्तिशाली राजनीतिज्ञ इन्द्रिरा गांधी के विरुद्ध बगावत का झंडा ही बुलंद नहीं किया बल्कि अकेले दम पर चुनाव जीतकर भी बताया! हिमवती नंदन बहुगुणा के बेहद करीबी माने जाने वाले तत्कालीन समय के छात्र नेता उत्तराखंड पत्रकार फोरम के केन्द्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार सुनील नेगी ने कहा कि उन्होंने १९७९ से लेकर जीवन पर्यंत बहुगुणा जी के साथ काम किया ! उन्होंने कहा कि बहुगुणा ने कभी भी राजनीतिक समझौते अपने फायदे के लिए नहीं किये और नाही उन्होंने कभी किसी बात पर कोई समझौता कर जनता के मुद्दों को गौण बनाकर अपना फायदा देखा! उन्होंने कहा बहुगुणा उस शख्सियत का नाम था जो धर्मनिरपेक्ष व भाई चारे की एक मिशाल हुआ करती थी! उनके जैसा नेता १०० साल में भी जन्म ले ले यह बड़ी बात होगी!
भले ही मंच से इंदिरा हृदयेश ने यह प्रश्न उठाया है कि उनके जन्मशताब्दी बर्ष को राज्य सरकार मनाना भूल गयी लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस जननायक को बहुत शिद्दत के साथ याद किया गया! उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि प्रदेश सरकार जल्दी ही हिमवती नंदन बहुगुणा के जन्मशताब्दी बर्ष पर किसी सडक, भवन, संस्थान का नाम उन्हें देगी व जन्मशताब्दी बर्ष को अपने कलेंडर में शामिल कर राजनीतिक लाभ लेंगे। बहरहाल चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में उपस्थिति ने यह साफ तो कर ही दिया कि धर्मनिरपेक्षता का दूसरा नाम हिमवती नंदन बहुगुणा था।