नैनीडांडा महोत्सव…..2020! गढवाल के सीमान्त्त क्षेत्र में नई पहल! विशालकाय रामगंगा बैराज के नजदीक होने के बाद भी लोग प्यासे ।

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 2 फरवरी 2020)

आज की सुबह अलसाई सी लगी…! अलसाई सी इसलिए कि धूप दूर ऊँचे काँठों से उदंकार की लालिमा ला तो रही थी लेकिन तारिणी कॉर्बेट कैंप में अभी रामगंगा की उठती भाप से ठंडक बदन में झुरझुरी लगा रही थी! बिस्तर छोड़ने का साहस नहीं हो रहा था जबकि अब तक दिनेश कंडवाल फ्रेश हो चुके थे व ठाकुर रतन असवाल अपना ब्रश कर रहे थे! तब तक बाहर से विवेक नेगी की आवाज सुनाई दी! बोले- इष्टवाल भाई साहब ! दूरदर्शन वाले रावत जी आपका इन्तजार कर रहे हैं! गुजडू गढ़ी पर आपका साक्षात्कार चाहते हैं!

मैं बोला- ओके, भाई आता हूँ, और फिर करवट बदलकर लेट गया! अब भला रतन असवाल कैसे चुप रहते! बोले- पंडा जी, जो सोता है वो खोता है! और खोते के भी दो अर्थ होते हैं! मैं जल्दी से उठा और इससे पहले कि वो और ज्ञान गुण सागर अलापें, मैं बोल पड़ा! बस..बस अब रहने भी दो! मुझे उससे आगे पता है! दिनेश कंडवाल खिलखिलाकर हंस दिए!

नैनीडांडा महोत्सव में मित्र मण्डली!

मैं फ्रेश होकर बाहर निकला तो कैंप साइड के मैदान के एक छोर पर कैंप ओनर नेगी जी कैमरा सेट कर रहे थे व रावत जी कुर्सी दायें बांयें कर उसके प्रोपर एंगल तलाश रहे थे! मेरे पहुँचते ही मैंने अपने अनुभव बांटे! गुजडू गढ़ के सम्बन्ध में मैंने क्या क्या कहा होगा वह आप पूर्व में पढ़ ही चुके होंगे! नाश्ता निबटाते हुए मैंने उचटती हुई नजर उन कैंपों पर डाली जहाँ हरियाणवी टूरिस्ट ठहरे थे! वहां तो कोई नहीं दिखे लेकिन ग्राउंड के एक कार्नर टेबल पर उनके कुछ मित्र ब्रेकफास्ट का आनन्द ले रहे थे! मैं मुस्कराया व सोचने लगा कि मानव प्रवृत्ति भी कितनी अजब-गजब है! कल हुक्के के सुट्टे व शराब के घूँट के साथ इनका हंगामा देखते ही बनता था! शायद शहरी मानस अपनी खुशियों का इजहार इसी तरह करता है!

सामान समेटा व ड्राइविंग सीट चन्द्रेश योगी ने सम्भाली और कार तारिणी कॉर्बेट कैंप छोड़कर नैनीडांडा जाने के लिए नृत्य करने लगी! नीचे मर्चुला पुल पार करते देखा कि रामगंगा तट पर एक बेहतरीन पर्यटक बंगला बना है! वह किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी है! मर्चुला बाजार पहुंचा तो पाया कुछ दुकाने जरुर बढ़ी हैं लेकिन यह आज भी 22 बर्ष पूर्व का वही मर्चुला है जहाँ कभी उत्पाती बंदर हाथ से ही फलों की पन्नी छीनकर भाग जाया करते थे! यहाँ से मैं 22 बर्ष पूर्व जालीखान्द होकर सराईखेत सड़क मार्ग से गया था व सराईखेत से जोगीमढ़ी पैदल मार्ग से! जोगीमढ़ी इंटर कालेज में तब मेरे भाई साहब (गिरीश चन्द्र इष्टवाल) प्रधानाचार्य व प्राथमिक विद्यालय में भाभी जी हेड मास्टरनी हुआ करती थी! भाई साहब…बार-बार कहा करते कि कभी वहां की आवोहवा भी देखने आ जा! सचमुच तब और अब में बदलाव यह आया कि यह इलाका तब सरसब्ज था! गाँवों हरे भरे थे! लोगों की आमद थी! कहीं ढोल की आवाज गूंजती तो कहीं डोर थाली के सुर..! लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने के बाद जब से सड़कें गाँव-गाँव पहुंची! विकास के नाम पर लोग सड़कों के रास्ते गाँव से बोरिया बिस्तर समेटकर सरकने लगे!

चन्द्रेश हमें मर्चुला के क्रोकोडायल पॉइंट पर ले गए! उन्हें उम्मीद थी कि मगरमच्छ धूप सेंकने बाहर निकला होगा! मगरमच्छ तो दिखा लेकिन हमने उसकी यादें ताजा करने के लिए इस पॉइंट पर फोटो खींचकर यादगार बना दिया! मर्चुला से हम धुमाकोट सडक के लिए करीब दो या तीन किमी आगे बढे होंगे कि चन्द्रेश ने कार मुख्य मार्ग से बायीं ओर मोड़ दी! मैं बोला- यह कौन सा रास्ता है! चन्द्रेश बोले- भाई साहब देखते जाओ! यह मार्ग हमें नैनीडांडा के लिए 20 से 25 किमी. पडेगा जबकि धुमाकोट होकर 40 किमी. है!

मर्चुला-बनसी-जड़ाऊखांद-किनाथ-खिरेरीखाल-दूनागिरी-अदालीखाल-जमन्धर-धुमाकोट-नैनीडांडा का लम्बा सफर छोड़ अब शायद हमें गोला-बिचला की सरहद होकर बसनोली-थाटर-सतखोला-रिगल्टा-ओतिंडा होकर नैनीडांडा जाना था! खैर यह सडक मेरे लिए नई थी! सच कहूँ तो इससे पूर्व मैं नैनी डांडा गया भी नहीं था! रास्ते में हमें हिमालय के नयनाभिराम दृश्य खींचे! नैनीडांडा तक पहुँचते-पहुँचते मेरे हाल बेहाल थे!

सुप्रसिद्ध गायक रोहित चौहान व श्रीमती कल्पना चौहान आम जन के बीच

चन्द्रेश ने गाड़ी नैनीडांडा बाजार के स्थान पर दूसरी दिशा में मोड़ी! पूछने पर पता चला कि वहां कोई खूबसूरत प्रॉपर्टी है जो बिकाऊ है! अब इस सब से मेरा क्या वास्ता क्योंकि पैंसे वाले लोगों के लिए ही यह सब माकूल है! मैंने उतरने में भलाई समझी ताकि जब तक ये लोग वापस लौटते हैं तब तक मैं चीड़ के जंगल में सांय-सांय की आवाज निकालती शुद्ध पर्यावरणीय हवाओं से स्वस्थ लाभ ले सकूं! वाह…यहाँ से कालागढ़ बाँध नयनाभिराम दृश्य दिख रहा था! कैमरा गाडी में ही था तो आई फोन से ही फोटो उतारकर आँखों के शुकून को आराम दिया!

नैनीडांडा ….यानि एक छोटा सा कस्बाई बाजार! जहाँ से धुमाकोट-12 किमी., रामनगर 88 किमी. थैलीसैण 85 किमी. व अदालीखाल 23 किमी. दूरी है! पौड़ी गढ़वाल के 15 विकास खंडों में नैनीडांडा सबसे सीमान्त माना जाता है जिसकी सीमाएं कुमाऊं मंडल से जुडी हुई हैं! इस विकास खंड के अंतर्गत 88 ग्राम पंचायत व 304 गाँव आते हैं! गाँवों के हिसाब से पूरे जनपद में यह सबसे बड़ा विकास खंड कहा जा सकता है!

अब आते हैं नैनीडांडा महोत्सव…2020 पर! सडक मार्ग से बमुश्किल 60-70 मीटर दूरी पर इंटर कालेज नैनी डांडा के निचले मैदान में यह महोत्सव आयोजित था! विगत 1 फरवरी से 3 फरवरी तक इसका आयोजन रखा गया है! हमारी टीम जब महोत्सव स्थल में दाखिल हुई तब यह सुखद लगा कि राजस्थानी बागड़ी समुदाय के लोग यहाँ कृषि यंत्रों को लेकर बहुतायत मात्रा में पहुंचे थे! मैं दिग्भ्रमित था कि यहाँ भी तो पलायन की मार ने ज्यादात्तर खेत खलियान बंजर छोड़े हुए हैं फिर ये बिकेंगे कहाँ? लेकिन कुछ लोगों को यहाँ के शुद्ध ऑर्गनिक उत्पात जिनमें दालें, बड़े निम्बू, माल्टा, झंगोरा, मंडुवे का आटा, यहाँ के स्थानीय चावल, जख्या, सूरजमुखी के बीज, मूला इत्यादि शामिल था को बेचते दिखाई दिए तो लगा यहाँ कुछ जगह जरुर कृषि उत्पाद से लोग जुड़े हुए हैं!

मंच के नीचे स्कूली बच्चे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते दिखाई दिए तो बड़ा अटपटा लगा! आखिर मंच बनाया किसलिए गया होगा यह समझने की कोशिश कर रहा था! मेरे सहपाठियों की नजर वेद भदोला जी पर पड़ी तो सभी उन्ही के साथ गप्पबाजी में मस्त हो गये! मैं भला कहाँ चुप रहने वाला था! कैमरे निकाले और शुरू हो गया! मंच के पिछले हिस्से में सुप्रसिद्ध लोकगायिका कल्पना चौहान व संगीतकार राजेन्द्र चौहान दिखाई दिए! वे चाय नाश्ता कर रहे थे! चौहान जी ने मुझे देखा तो चेहरे पर ख़ुशी देखते ही बनी! बोले- वाह…इष्टवाल जी! आप जैसे जीवत संस्कृतिकर्मी को मानना पडेगा! देहरादून से यहाँ भी पहुँच गए! फिर उन्होंने चाय बिस्कुट ऑफर किये तो भला मैं कहा रुकता!

साफ़-साफ़ लिखते हुए मुझे पीड़ा भी हो रही है कि इस दौरान कई मित्रों से गले भी मिला हाथ भी मिलाये लेकिन जिसे मैं तलाश कर रहा था वह यहाँ कहीं दिखने को नहीं मिला! मैं तो यह ढूँढने का प्रयास कर रहा था कि यहाँ के लोक समाज व लोकसंस्कृति की कोई तो अलग पहचान रही होगी ताकि हम कह सकें या लिख सकें कि नैनीडांडा क्षेत्र के लोगों का पहनावा यह था उनके आभूषण वस्त्र सजा में यह शामिल था इत्यादि! मैं चश्में लगाकर महिलाओं को घूरता हुआ भीड़ के बीचोबीच बढ़ रहा था! घूरता हुआ शब्द अटपटा जरुर है लेकिन सच लिखने में परहेज कैसी! काल चश्मा इसलिए लगा रखा था ताकि कोई महिला ये न कह सके कि यह मुझे क्यों देख रहा है! दरसल मुझे यहाँ का लोकपहनावा तलाशना था जो मूलतः किसी समाज की विशिष्ट पहचान होती है! लेकिन ग्लानि हुई कि देहरादून से इतना लम्बा सफ़र तय करने के पश्चात इस सीमान्त विकास खंड की क्या संस्कृति है उसकी खुशबु तक नहीं सूंघ पाया! मन उदास हो गया व मन हुआ कि उलटे पाँव लौट देना चाहिए! अब तक नयार घाटी के लाल समाजसेवी दिग्मोहन नेगी जी व संजय नौडियाल पर नजर पड़ चुकी थी! स्वाभाविक सी बात है अपने क्षेत्र के प्रति लगाव व आत्मीयता के धनी ये व्यक्तित्व गले मिलना नहीं भूलते!

1- मित्र मण्डली 2- मंच से अपनी बातें साझा करते समाजसेवी दिग्मोहन नेगी जी! 3- महोत्सव में शिरकत करते आमजन

मंच संचालक कौन था क्या था इस बात की जरा सी भी जानकारी नहीं थी लेकिन जब कल्पना चौहान जी मंच पर गयी व उन्होंने मेरा नाम पुकारा तो लगा देहरादून से लेकर यहाँ तक का सफर सफल हो गया! अब मजबूरी ये हो गयी थी कि उलटे पाँव लौटने के स्थान पर एक आध घंटा तो रुकना ही पड़ता! मंच व्यवस्था लाजवाब थी लेकिन मंच सज्जा में खुला मंच होने से सूर्य भगवान का फोटोग्राफरों से दुश्मनी का भाव अच्छा नहीं लगा! अपोजिट लाइट से मंच में प्रस्तुती दे रहे कलाकारों की फोटोज ठीक नहीं आ पा रही थी! थोड़ी देर में ही मेरे सहपाठियों को लेकर दिग्मोहन नेगी जी ने उन्हें अपने पास पड़ी कुर्सियों में स्थान दिया! मेरे लिए भी कुर्सी मंगवाई लेकिन मैं भला कहाँ बैठने वाला था! अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका था कि वासुकी फाउंडेशन के आमन्त्रण पर हम यहाँ तक पहुंचे तो हैं लेकिन वे फाउंडेशन के हर्ता-कर्ता हैं कौन? कुछ देर बाद एक पर्ची मंच पर पहुंची तो नामों की उद्घोषणा राजेन्द्र चौहान जी ने ही की! मंच पर हमारी टीम को बुलाया गया व हमारे मुखौटों का परिचय करवाकर हम बाइज्जत मंच से नीचे उतरे!

देहरादून डिस्कवर के सम्पादक दिनेश कंडवाल जी का मन उचाट सा था! कई बार इशारा कर चुके थे कि चलो यार! मुझे लगा कि हमें रोहित चौहान के गीतों के बाद कल्पना जी के गीत भी सुनने चाहिए! जो कर्णप्रिय थे! आज के मुख्य अतिथि का जब पता चला कि दिग्मोहन जी हैं जिनका आदमकद कटआउट लगाया गया है तो शुकून मिला कि यह व्यक्ति यकीनन जी निस्वार्थ भाव से उत्तराखंड की लोक संस्कृति व लोक समाज का प्रहरी बना हुआ है वह काबिलेतारीफ़ है! मैंने उनका हाथ पकड़ा व किनारे पर ले जाकर चुहल करते हुए बोला- नेगी जी, ये क्या है यार..! समझ नहीं आया कुछ? यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में आखिर बचा क्या है! हम पौड़ी जनपद वाले जा किस दिशा में रहे हैं!

दिग्मोहन नेगी बोले- यह भले ही आज आपको कुछ न दिखाई दे रहा हो लेकिन आने वाले समय में आप महसूस करेंगे कि इस सीमान्त क्षेत्र की संस्कृति व विरासत में यही महोत्सव चार चाँद लगाएगा! कुछ सम्भ्रान्त लोगों ने दिल्ली में बैठकर इस पीड़ा को समझा व उसे एक मंच देने के लिए प्रयास किये! वासुकी फाउंडेशन के पीएनशर्मा जी को आप जानते ही हैं! अपना सर्वस्व उन्होंने यहाँ झोंका हुआ है! उनके बड़े भाई बीएन शर्मा जो पीएफ कमिश्नर थे! इन लोगों ने एक बीड़ा उठाया है! यह सुखद है कि इस तरह का कार्यक्रम आगे चलकर पहाड़ों की रौनक लौटाने का काम करेगा! हमारे मेले कौथिग ज़िंदा होंगे तो स्वाभाविक है कि गाँव का परित्याग करने वाले परिवार वापस लौटेंगे! चाहे वह गर्मियों में माँ बूंगी देवी के लिए आयें या फिर ऐसे ही किसी महोत्सव में शिरकत करने! बात एक सी ही है! कम से कम उनकी युवा पीढ़ी पिकनिक के तौर पर ही सही अपने पहाड़ प्रेम से वशीभूत होकर यहाँ आना शुरू तो करेगी! बस…यही प्रयास हम सबका होना चाहिए!

बातें तो दिग्मोहन भाई ने सभी सटीक कही थी लेकिन मैं मन ही मन सोचने लगा कि उस पहाड़ी मानसिकता का आप क्या करेंगे जिनके दिलो-दिमाग में किसी ने यह भर दिया है कि ये लोग तो आम आदमी पार्टी के हैं! पैंसेवाले हैं इसलिए अपना प्रचार का माध्यम ढूंढ रहे हैं!

बिना सवाल किये मानों दिग्मोहन नेगी मेरी मानसिकता को समझ गए हों ! बोले- इष्टवाल भैजी, आजकल पहाड़ का जनमानस पहाड़ से ज्यादा विकट है! यहाँ अवधारणा बनाने में जो राजनीति चलती है उसे समझना आप हम जैसे लोगों के वश की बात नहीं है! यहाँ लोग हैं तो सही लेकिन दिल-दिमाग से हैं भी कि नहीं यह कहना सम्भव नहीं है! खैर इससे ज्यादा मुझे जानना भी क्या था! मैंने दिग्मोहन नेगी जी को दिल से सलूट किया और आगे बढ़ा तो पाया दिनेश कंडवाल जी की पहचान की कोई महिला मिल गयी हैं जिन्होंने उनके चरण स्पर्श किए! परिचय से ज्ञात हुआ कि वह उनकी रिश्ते में भतीजी लगती हैं! एक सामूहिक फोटो खींचने के बाद हम चुपाचाप एक एक करके वहां से निकले व मुख्य द्वार पर इकठ्ठा हुआ! चन्द्रेश की नजर फिर गर्मागर्म जलेबी पर पड़ी तो जीब सबकी ही लपलपा गयी! मैं तो चाय पी ही चुका था इन लोगों ने पानी भी पिया कि नहीं मैं नहीं जानता!

वापसी में ठाकुर रतन असवाल को मेरे पर दया आ गयी व बोले- पंडा जी, आगे की सीट सम्भालो! थोकी बामण के साथ यही मुसीबत है! मैंने मना भी किया लेकिन वो नहीं माने और हम चल दिए दुगड्डा के लिए!

मुझे लगा सभी नैनीडांडा महोत्सव पर चर्चा करना चाहते थे लेकिन किसी के पास शब्द भी नहीं थे! मैं ठहरा लेखक..! भला चुप कैसे रहता! बोल पड़ा- यार कमाल की मेंटलिटी है यहाँ के लोगों की! लोगों का मानना है कि आम आदमी पार्टी के कुछ चुनिन्दा लोगों का ही कार्यक्रम है यह..! फिर आभास तो यह भी हुआ कि एनसीआर की वीआईपी संस्कृति को देखते हुए यहाँ के स्थानीय लोग इस महोत्सव में अपनी रूचि से भागीदारी नहीं निभा रहे हैं! ययः हैरत में डालने की बात है कि स्थानीय स्तर पर जो महिलायें प्रस्तुती देंगी या दे चुकी हैं उनके अलावा यहाँ किसी भी महिला पुरुष को यहाँ की स्टेम्बड भेषभूषा में नहीं देखा गया! आखिर क्या भविष्य रहा ऐसे महोत्सवों का! जिसमें कोई लाखों खर्च करे व एक सोच पैदा करे तब भी हम सहयोग न करें?

रतन असवाल बोले- देखो पंडा जी! चकडैत जहाँ भी हैं वे अपना भला कर ही रहे हैं! मैं पिछले दो दिनों से बीरोंखाल व नैनीडांडा विकासखंड में विकास कार्य तलाश रहा था लेकिन धरातल पर कहीं विकास तो दिखा नहीं! इधर जनता चिल्ला रही है कि कोटद्वार को नया जिला घोषित करो! जहाँ सब सुख सुविधाएं हैं वहां जिला घोषित करने की मांग हो रही है! भले ही कोटद्वार में जिला बनाने के लिए बिजनौर उत्तर प्रदेश का भू-भाग ज्यादा है! क्यों नहीं हम या हमारी सरकारें यह सोचती हैं कि इस सीमान्त क्षेत्र के इन दोनों तीनों अर्थात थैलीसैण, बीरोखाल व नैनीडांडा की सभी ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक जिला बनाया जाय ताकि इस सीमान्त क्षेत्र के विकास की बुनियाद रखी जाय! थैलिसैण ब्लाक में 107, बीरोखाल में 102 व नैनीडांडा में 88 ग्राम पंचायतें हैं! मेरे हिसाब से तो ये सभी एकाकार होकर जिले के रूप में प्रमोट होनी चाहिए तभी यहाँ के स्थानीय मूल्य बचेंगे व जिस लोक संस्कृति लोक समाज की पीड़ा आप बघार रहे हैं उसे जीवंत बनाया जा सकेगा! यह क्षेत्र पेयजल की समस्या से जूझता होगा! दिनों-दिन यहाँ भी लोग पलायन करते जा रहे हैं! फिर आप ही बताओ कि कहाँ यह पहाड़ी राज्य बचेगा!

थोड़ा शांत होने के बाद रतन असवाल बोले- पंडा जी, मैदानी जनपदों की कृषि जोत की सिंचाई के लिए जब पहाड़ की जमीन डुबाई जा सकती है तो पहाड़ियों की प्यास क्यों नही बुझाई जा सकती है।

बात तो ठाकुर साs सही बोले लेकिन प्रदेश के नीतिनियंताओं को कौन समझाये कि सिर्फ जेब भरकर अपने परिवार व अपना भला करने से कोई बड़ा नहीं होता! युगपुरुष बनने के लिए त्याग जरुरी है! फिलहाल नैनीडांडा महोत्सव ने मुझे दो चीजें तो समझा ही दी! एक यह कि कोई भी कार्य प्रारम्भ करने में जो परेशानियां सामने आती हैं वह कैसे मुंह उठाये खड़ी रहती हैं! दूसरा यह कि आपको निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि आपका भ्रमण आपको कुछ न कुछ बदले में दे ही जाता है! जैसे मुझे मेरे ट्रेवलाग में यहाँ का वर्तमान परिवेश दिखने को मिला!

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