नेपाल से सम्बन्ध सुधार….एक चुनौती!

(उषा नेगी)
हाल ही में सम्पन्न हुए नेपाल के संसदीय चुनावों में विजयी रहा वामपंथी गठबंधन के नेता के पी ओली ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए चीन से लगे सीमा क्षेत्र का दौरा किया और नेपाल -चीन के बीच कारोबार और आवाजाही के लिए एकमात्र सीमाई रास्ते रसुवागढ़ी -केरुंग को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित करने का ऐलान किया |यह सब उन्होंने वामपंथी गठबंधन और नई दिल्ली के बीच मनमुटाव पैदा करने के लिए भारतीय मीडिया के एक वर्ग की आलोचना के बाद किया जबकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने औपचारिक रूप से नेपाल
चुनाव के नतीजों का स्वागत किया था |फिलहाल यह कहा जा सकता है कि नये साल में विदेश नीति के मोर्चे पर जो तमाम चुनौतियाँ हैं ,उनमें से एक चुनौती नेपाल के साथ सम्बन्धों को पटरी पर लाना भी है |

नेपाल में पुष्प कमल दहल [प्रचंड ]की अगुवाई वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल [माओवादी सेंट्रल ]और के पी ओली के नेतृत्ववाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल [एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी ]के गठबंधन की निर्णायक जीत के बाद भारत -नेपाल के सम्बन्धों में एक नया दौर शुरू हो गया है |
भारत समर्थक मानी जाने वाली नेपाली कॉंग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से बेदखल हो गयी |संविधान पारित होने के बाद सितम्बर 2015 में नेपाल -भारत सीमा की मधेसियों द्वारा नाकेबंदी कर दी गयी और इसके लिए नेपाल के एक बड़े वर्ग ने भारत को जिम्मेदार ठहराया था |यही वह दौर था जब ओली नेपाल को लेकर नई दिल्ली की नीति के मुखर आलोचक बनकर उभरे |मधेसी
संकट से भारत -नेपाल सीमा की नाकेबंदी के कारण न सिर्फ नेपाल की एक बड़ी आबादी भारत से नाराज हुई ,बल्कि इसने चीन को भारत का विकल्प बनने का अवसर भी प्रदान कर दिया ,उसने नेपाल को न सिर्फ इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराई ,बल्कि वैकल्पिक कारोबारी मार्ग भी उपलब्ध कराया |बीजिंग ने उसे सड़क और पनबिजली परियोजना के निर्माण के लिए 8 .3 अरब डॉलर का कर्ज दिया है वहीं
भारत ने भी उसे 31 .7 करोड़ डॉलर की राशि मुहैया कराई है |चीन अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड यानी ओबोर इनिशिएटिव के तहत आठ अरब डॉलर की अनुमानित लागत से काठमांडू को तिब्बत में ल्हासा से रेल नेटवर्क के जरिये जोड़ने की सम्भावना टटोल रहा है! यह भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग मार्च 2018 में नेपाल दौरे पर आ सकते हैं , हालांकि उम्मीद है नई दिल्ली चौकन्नी होकर नेपाल में बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रख रही होगी क्योंकि नेपाली नेता भी भारत के सत्य अपने ऐतिहासिक ,सांस्कृतिक और भौगोलिक जुड़ाव को अच्छी तरह जानते हैं! नई दिल्ली को यह भी पता होना चाहिए कि नेपाल की सभी सरकारों ने भारत के साथ कमोबेश चीनी कार्ड खेला है |

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