निर्मात्री उर्मी नेगी की गढ़वाली फीचर फिल्म "सुबेरो घाम" कनाडा मूवी क्लब फेस्टिवल में..! 16जुलाई को होगी प्रदर्शित..!
निर्मात्री उर्मी नेगी की गढ़वाली फीचर फिल्म “सुबेरो घाम” कनाडा मूवी क्लब फेस्टिवल में..! 16जुलाई को होगी प्रदर्शित..!
(मनोज इष्टवाल)
नैनीताल /मुंबई/ फ्रांस 12 जुलाई (हि. डिस्कवर)
निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखिका व फिल्म अभिनेत्री उर्मी नेगी की गढ़वाली फीचर फिल्म “सुबेरो घाम” ने उत्तराखंडी फिल्म निर्मातों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर में फिल्म उद्योग के दरवाजे खोल दिए हैं. वह भी सिनेमा के ऐसे संक्रमण काल में जब पूरा विश्व सिनेमा के पायरेसी से बेहद परेशान है.
आपको याद दिला दें कि विगत 2015 में उर्मी नेगी अपनी इस फिल्म को उस समय परदे पर लाई जब कोई भी निर्माता गढ़वाली फिल्म उद्योग पर लाखों रूपये लगाना ऐसा जुआ समझता था जिसमें उसे नुक्सान ही होना है. उर्मी ने साहस के साथ एक अच्छी पटकथा भी तैयार की व अपनी पूरी जिन्दगी भर की कमाई को एक जुए की तरह अपनी इस पटकथा के साथ फिल्म बाजार में फैंक दिया कि देखी जायेगी, लेकिन यह गढ़वाली सिनेमा के लिए शुभ निकला और फिल्मी परदे पर कौथीग की अभिनेत्री उर्मी को देखने हर जगह भीड़ उमड़ पड़ी. उर्मी का ऐसा सिक्का चला कि फिल्म ने सफलता की बुलंदियां छू ली.
उर्मी नेगी की फिल्म “सुबेरो घाम” की पटकथा उसका सबसे सशक्त पहलू है। नारी संघर्ष के बीच जूझती यह एक ऐसी कहानी है, जो पहाड़ में शराब और जुए की समस्या को प्रभावी ढंग से रखा है। फिल्म ने हर जगह पहाड़ से जुड़े ऐसे प्रश्न उठाये गये हैं, जिनका निदान होना जरूरी है। शुरूआत में फिल्म एक डाॅक्युमेंट्री जैसी लगती है, लेकिन उसके बाद एक भी पल ऐसा नहीं आता कि दर्शक बोरियत महसूस करे। उस वक्त तो आँख में आँसू आ जाते हैं, जब नायिका अपने पिता के साथ बहू के दुर्व्यवहार को देखते हुए उनसे कहती है कि क्यों न बहू को वे भाई के साथ शहर भेज देते। तब पिता कहता है कि काश वह किसी फैक्ट्री में होता। वह तो किसी होटल में बर्तन माँजकर जैसे-तैसे अपना भरण-पोषण कर रहा है। फिर लम्बी आह लेकर कहता है, घर के खेत खलिहान बंजर पड़े हैं। यहाँ अपना काम करने में शर्म है, लेकिन बर्तन माँजने में नहीं।
खुशी की बात है कि पौड़ी गाँव से निकली और मुंबई इंडस्ट्री में वर्षों से काम कर रही उर्मी नेगी ने पहाड़ के समसामयिक यथार्थ को बहुत ही कुशल ढंग से पकड़ा है। अपने अभिनय में उन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया है। फिल्म में 34 शॉट उर्मी नेगी के हैं, जो उन्होंने बिना रिटेक के दिए हैं। इससे पता चलता है कि उन्होंने न इस फिल्म में अपनी समस्त जमा पूँजी लगाईं है, बल्कि इस काम को बेहद गंभीरता से लिया है। अभिनय में बलदेव राणा (खलनायक) अपने चिरपरिचित अंदाज से कुछ अलग नजर आये, वहीं चाॅकलेटी हीरो की पहचान वाले बलराज नेगी (नायक) ने अपने अनुभव के कारण आक्रामक और शराबी के बेहद अच्छे किरदार निभाये। अलबत्ता मुंशी की भूमिका में घनानन्द में वे तेवर नजर नहीं आये, जिनके लिए वे जाने जाते हैं। गणेश बिरान ने बिना डायलॉग भी शराबी के रूप में खूब गुदगुदाया। सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की गीत रचना हो, संगीत संयोजन हो या फिर स्वर दिया हो, उनकी बात ही निराली है। ‘‘मारी गे मारी गे..तेरी करली आंख्युं’’ जैसे गीत को सुनने के बाद दर्शक बाहर आकर उसे गुनगुनाना नहीं भूलता. अनुराधा और नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों ने समाँ बाँधे रखा।
मुंबई से उर्मी नेगी की पी.ए. शांता खोचर ने फोन पर जानकारी देते हुए बताया कि उनकी यह फिल्म “एंडोमेंटन मूवी क्लब फिल्म फेस्टिवल कनाडा ” के लिए चुन ली गयी है ! ज्ञात हो कि यह पहली पहाड़ी फिल्म है जो विश्व स्तर पर अपना प्रदर्शन आगामी 16 जुलाई को करेगी. यही नहीं शांता खोचर ने फ़्रांस में डिस्कवरी चैनल की शूटिंग में ब्यस्त उर्मी नेगी से भी दूरभाष पर बात करवाई.
उर्मी नेगी ने बताया कि वह इस फिल्म को लेकर पहले से ही निराश नहीं थी जबकि उस वक्त गढ़वाली फिल्म उद्योग में कोई भी हाथ डालने को तैयार नहीं था. उन्हें कई उनके शुभचिंतकों ने भी सलाह दी थी कि यह मेरे लिए घाटे का सौदा हो सकता है लेकिन उत्तराखंड की जनता ने उन्हें सर माथे बिठाया और मैं फिल्म के 60 -70 लाख निकालने में ही सफल नहीं हुई बल्कि मैंने गढ़वाली सिनेमा के वे बंद द्वार भी खोलने के प्रयास किये जो लम्बे समय से बंद थे.
यह बात सच भी है कि उर्मी नेगी की फिल्म के बाद विगत डो सालों में गढ़वाली सिनेमा जगत में काफी उछाल आया है व कई फ़िल्में प्रदर्शित हुई हैं. लेकिन वे इतनी सफल नहीं हो पाई क्योंकि किसी की पटकथा बेहद कमजोर था तो किसी का तकनीकी कार्य! ऐसे में भला कैसे आप पब्लिक को उस युग में सिनेमा हाल तक ले जाओगे जिस युग में अरबों की लागत से फिल्म निर्माण का कार्य हो रहा हो!
उर्मि नेगी ने कहा कि “सुबेरो घाम” फिल्म के एंडोमेंटन मूवी क्लब फेस्टिवल कनाडा” में सेलेक्शन होने के बाद उन्हें कनाडा से भी कई बधाई सन्देश व फोन आये हैं. वह कहती हैं कि यह उत्तराखंडी जनमानस का प्यार ही है कि उन्होंने मुझे इतना सम्मान दिया. उन्होंने कहा कि उनकी मजबूरी है कि वह फ्रांस में एक वृत्तचित्र के शूट पर हैं और उन्हें इतनी लम्बी छुट्टी नहीं मिल पाएगी कि वे कनाडा अपनी फिल्म के प्रदर्शन के लिए जा पायें लेकिन कनाडा में रह रहे भारतवंशी लोग बड़ी बेसब्री से 16 जुलाई का इन्तजार कर रहे हैं. उन्हें ख़ुशी इस बात की है कि उनकी माटी की सौगात के रूप में उनकी फिल्म “सुबेरो घाम” उन प्रवासियों तक पहुँच रही है जिन्हें अपनी मातृभूमि से अगाध प्यार है व उसकी खुद उनके गले मी भाडूली बन हमेशा उनके मैन मस्तिष्क में मंडराती रहती है.
उर्मी नेगी ने बताया कि वे इससे पूर्व भी सिंगापुर में “सुबेरो घाम” का प्रदर्शन करवा चुकी हैं और आगामी समय में लन्दन, न्यूजीलैंड, थाईलैंड में भी यह फिल्म सिनेमा घरों में लगेगी! उन्होंने फिल्म निर्माताओं से अपील की है कि लोक संस्कृति से जुडी अच्छी पटकथा को लेकर फिल्म बनाए ताकि आने वाली पीढ़ी हमें याद कर सके.