निर्मल की पहल पर गाँव बसने को लौटे ग्रेट ब्रिटेन के नागरिक ! नैथाना गाँव को पुनर्जीवित करने का उठाया बीड़ा!

निर्मल की पहल पर गाँव बसने को लौटे ग्रेट ब्रिटेन के नागरिक ! नैथाना गाँव को पुनर्जीवित करने का उठाया बीड़ा!
(मनोज इष्टवाल)
यूँ तो कतार लम्बी है ! जिन्होंने नैथाना गाँव के पुरिया दादा को जीवंत करने के लिए बर्षों उन पर कार्य किया !
इत्तेफाक से इसी दौर में मैं भी उत्सुक था कि पुरिया नैथाणी पर कुछ कार्य कर सकूँ तब मैं पत्रकारिता के प्रथम चरण पर था! जानकारी मिली कि पुरिया नैथाणी पर दिल्ली सरकार के एक अधिकारी जनरत्न नैथाणी काफी समय से एक पुस्तक लिख रहे हैं ! मैं दिल्ली में चांदनी चौक स्थित व्यवसायी सतीश नैथाणी जी के यहाँ जा पहुंचा जिनका यहाँ इलेक्ट्रिकल कारोबार में बड़ा नाम है! उन्होंने जब बताया कि जनरत्न नैथाणी तो लोधी कालोनी में रहते हैं तो मेरे होंठ मुस्कराए दिए! जिन्हें मैं जगह जगह तलाश रहा था वो मेरे पड़ोस में रहते थे और मुझे पता तक नहीं! लोधी रोड के पार्क के पास उनका घर था जहाँ हम रोज क्रिकेट खेला करते थे!

वह शाम मुझे अच्छे से याद है जब मैं जनरत्न नैथाणी जी के आवास में पहुंचा! उन्होंने मेरे गले में लटके प्रेस कार्ड पर निगाह मारते हुए कहा कि ये कैसे आपको आपके सम्पादक ने बना कर दे दिया! सच कहूँ तो मैं तब डर गया जब उन्होंने कहा कि इस कार्ड से तो आपको व आपके सम्पादक को जेल हो सकती है! मैंने पूछा- ऐसा क्यों? तब उन्होंने जवाब दिया कि इस कार्ड में मिनिस्ट्री ऑफ़ इन्फोर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग ही नहीं गुदा हुआ है बल्कि इसमें भारत बर्ष का प्रतीक चिन्ह भी लगाया हुआ है जो कोई भी पत्रिका या अखबार को लगाने के लिए नहीं या लिखने के लिए नहीं होते! उन्होंने इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी दी और मैंने दूसरे दिन जब अपने सम्पादक को यहाँ बात बताई तब उनके माथे पर पसीने की बूंदे फूट पड़ी! उन्होंने तुरंत सभी के कार्ड मांगे अपना भी माँगा और उसे उसी समय फाड़कर जला दिया व प्रिंटिंग प्रेस वाले को खूब गालियाँ भी बकि!
उस दिन हमारी चाय की चुस्कियों में पुरिया नैथाणी ही सम्मिलित रहे! जनरत्न नैथाणी का गाँव से कितना लगाव था यह तो कह नहीं सकता लेकिन कुछ बर्षों बाद इतना जरुर दिखने को मिला कि उनकी एक पुस्तक
“ गढ़ चाणक्य वीर पुरिया” हम सबके हाथों की शोभा बनी! वहीँ दूसरी ओर कोटद्वार के डॉ.पुष्कर मोहन नैथाणी व सतीश नैथाणी जी सहित कुछ नैथाना वासियों ने एक पहल की ताकि सब साल में एक बार जुटे! वो पहल थी बिल्खेत के सान्गुड़ा (दैसण) नामक स्थान में माँ भुवनेश्वरी के मंदिर को बिशाल रूप देना और यह पहल कारगर साबित भी हुई ! यहीं एक धर्मशाला का निर्माण भी हुआ और अब जानकारी मिली है कि ग्रेट ब्रिटेन की नागरिकता लेने वाले इंजीनियर सतीश चन्द्र नैथाणी ने वहां हाल ही में 35 लाख रूपये में एक सत्संग भवन का निर्माण करवाया है!
लेकिन यह सबसे आश्चर्यजनक रहा कि ये लोग जाने क्यों अभी तक ढाडूखाल बनेख की चढ़ाई चढ़कर अपने खंडहर होते गाँवों के आवासों में नहीं लौट पाए! उत्तर प्रदेश के जमाने में नैथाना गाँव के दो युवाओं ने यहाँ जरुर एक पहल की थी! ये युवा थे इशमोहन नैथाणी व श्रीश नैथाणी (श्रीप्रकाश नैथाणी)! इन्होने यहाँ अंगोरा फ़ार्म बनाकर कोशिश की थी कि अंगोरा खरगोशों के माध्यम से ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देंगे जो उस दौर में चर्चाओं में भी रहा लेकिन जाने फिर क्या हुआ कुछ ही बर्षों में सब समाप्त हो गया! पहले नैथाना जाने से पूर्व नैथाना गाँव के कलावंत थुन्नी बादी के ढोलक की थाप में गूंजते सैदेई गीतों को बोल कानों को कर्णप्रिय बनाते थे तो आगे जाकर वीर पुरिया की थाती माटी के लिए उमड़ते घुमड़ते प्यार में इस गाँव की रौनक और मूसा की नाव का शीतल जल जो अमृत सा लगता था! पुरिया डांग स्थित हाथी का खूंटा और जाने क्या क्या सिर्फ और सिर्फ वीर पुरिया के प्रति आदर भाव प्रकट नहीं करता था बल्कि सभी नैथानियों के प्रति आँखों में श्रधा भाव उमड पड़ते थे! लेकिन फिर एक दौर आया न थुन्नी कलावंत ही ज़िंदा रहे और न नैथाना गाँव का वह वैभव! सब अपना पाना बोरिया बिस्तर समेटकर जाने कब मैदानों में दौड़ लगा गए और बचे सूने घर व उनकी उदास डण्डयाली! फिर वह समय भी उन्हें कि ये आवास सूखे दरख्त की भांति एक एक करके धाराशायी होते हुए खंडहर होने लगे !

(निर्मल नैथानी का पूरा परिवार)
ऐसे में जबकि गाँव की सडक के ऊपर जागरी खोला जो दरअसल जागृति विहार है के अलावा सड़क नीचे सिर्फ हरिजन मोहल्ला व एक आध सवर्ण परिवार के अलावा कोई नहीं दीखता था तब इसी थाती माटी के एक पुत्र ने अपनी मांजी का आंचल सम्भाला और बेहद मशक्कत के बाद जुट गया अपने गाँव को बसाने जुगत में ! और वह शख्स हुए निर्मल नैथाणी !

निर्मल नैथाणी फ़ौज में इंजीनियर हुए और देहरादून के पंडितवाड़ी में आ बसे! सेवानिवृत्ति के बाद शुकून की जिन्दगी जी रहे निर्मल नैथाणी ने सोचा कि क्यों न गाँव में वे “पुरिया नैथाणी” के नाम से एक ट्रस्ट बनाएं ताकि हम गर्व कर सकें कि गढ़वाल नरेश के सेनापति चाणक्य पुरिया नैथाणी के हम वंशज हैं!

उनका धेय यह था कि एक ट्रस्ट की स्थापना कर पुरिया नैथाणी से समबन्धित दस्तावेज व उनके अंग वस्त्र, कवच, तलवारें व अन्य यादों को संग्रहित कर ट्रस्ट के माध्यम से स्मारक का रूप दें! इस जुगत में वे लग गए और उसके लिए उन्होंने भाग दौड़ शुरू भी कर दी! आपको बता दें कि निर्मल नैथाणी के एक पुत्र विदेश में मैकेनिकल इंजिनियर हैं व दूसरे पुत्र देहरादून स्थित इन्द्रेश हॉस्पिटल के एच आर हेड ! साधन सम्पन्न इस परिवार ने अचानक गाँव में बसने की क्यों चिंता महसूस की इस पर निर्मल कहते हैं कि जब वे पुरिया दादा प्रकरण को लेकर गाँव पहुंचे तो देखा गाँव लगभग खंडहर में तब्दील हो चुका है उनका पैत्रिक आवास भी टूटकर बिखरने लगा है! उनके वे बालपन के सब सपने आँखों में तैरने लगे जो उन्होंने ग्रामीण परिवेश में कभी देखे थे! उन्होंने तय कर लिया कि वे अब गाँव में एक मकान अवश्य बनायेंगे!

(निर्मल नैथानी द्वारा बर्ष 2016 में नैथाणा में बनाया गया आवास)
उन्होंने अपनी अर्धांगनी राजेश्वरी नैथाणी के समक्ष जब यह बात रखी तो वह भी ख़ुशी ख़ुशी राजी हो गयी! फिर पुत्रों ने भी रजामंदी दी तब उन्होंने सड़क के नजदीक एक पक्का मकान सन 2016 के अंत तक बना डाला! माँ साथ गयी तो माँ की आँखों में पैत्रिक मकान के प्रति उदास भाव देख उन्होंने माँ की आँखें पढ़ ली! मां से पूछा कि माँ तुम्हे घर आकर अच्छा नहीं लगा क्या?

(माँ व पत्नी राजेश्वरी नैथानी के साथ)
90 बर्षीय माँ अपना दुःख छुपा न सकी और बोल पड़ी- काश… हमने वह मकान ही ठीक किया होता जिस में मैं आई थी व मेरे पुरखों की निशानी थी! फिर क्या था निर्मल नैथाणी को यह बात घर कर गई व उन्होंने अपने पुराने आवास को नई शक्ल देकर बर्ष 2017 के मध्य तक उसे भी बना डाला! निर्मल कहते हैं- जब भी हम घर होते हैं माँ के लिए मैं ही खाना बनाता हूँ! बड़ा शुकून मिलता है जब माँ का रसोइया बनता हूँ!

(निर्मल नैथानी का नवीनीकृत पैतृक आवास)
उन्होंने कहा आज गाँव में मकान बनाना किसी महाभारत से कम नहीं! शुरूआती दौर में सब जुड़ते हैं लेकिन जो ठेठ ग्रामीण परिवेश के खांटी लोग हुए वे रोज यह सोचते हैं कि पीने के लिए कुछ मिल जाय तो वाह…! जोकि सम्भव नहीं हो पाता! पैंसा होने के बाद भी आपको श्रमिक ढंग के मिल जाएँ ये मुश्किल है! ऊपर से पाणी की समस्या! वे केन भर भर कर अपनी कार से पाणी लेकर आते हैं! भले अब उन्हें असगढ़ गाड़ से नैथाना आई पाइपलाइन से 500 लीटर पाणी मिल जाता है जो उनके लिए पर्याप्त है और वह हफ्ता भर आराम से चल जाता है! लेकिन शुरूआती दौर में गाँव में पुन: पाँव पसारने की दिक्कतें महसूस जरुर होती हैं जो बाद में ग्रामीण आवोहवा में शुकून का जीवन यापन करने के लिए प्रसन्न रखती हैं!

(निर्मल नैथानी व सतीश चन्द्र नैथानी)
उन्होंने बताया कि ग्रेट ब्रिटेन की नागरिकता लेने वाले सतीश चन्द्र नैथाणी जब 6 माह के प्रवास पर हर साल अपने पूना के आलिशान महलनुमा हवेली में आते हैं तो उन्हें अपना गाँव याद आने लगता है! विगत कुछ बर्ष पूर्व जब उन्होंने सान्गुड़ा में सत्संग भवन  निर्माण के लिए 35 लाख दिए तब वे अपनी मातृभूमि आये और मेरा मकान देखकर इच्छा व्यक्त की कि वे भी गाँव में अपना आवास बनाकर अपनी यादों को जीवित रखना चाहते हैं!

(सतीश चन्द्र नैथानी का नवनिर्मित नैथाणा आवास)
मैंने उनका यह हुक्म सिर माथे लिए और उनके आवास की तैयारी में जुट गया आज रिवर्स माइग्रेशन के उनसे बड़े उदाहरण कौन होंगे जिन्होंने ग्रेट ब्रिटेन की नागरिकता के बाद पुन: अपने गाँव में आ बसने की सिर्फ इच्छा ही नहीं जताई बल्कि पहल भी की! निर्मल नैथाणी बताते हैं कि अब तो जैसे प्रतिस्पर्दा हो रही हो. लगभग 5 से 7 परिवार और यह इच्छा जाहिर कर रहे हैं कि वे भी अपने गाँव आकर बसना चाहते हैं!
निर्मल नैथाणी कहते हैं हम सब रिवर्स माइग्रेशन के लिए तैयार हैं चाहे शहर एकदम न छोड़ पाए लेकिन साल के तीन माह कम से कम अगर अपने गाँव को देना शुरू कर देंगे तो गाँव के कम संसाधनों वाले हाल ही के प्लावित लोग पुन: घर लौट सकते हैं यह मेरा सोचना है!
निर्मल नैथाणी जी की पहल के बाद अगर चार लोग भी वापस आकर गाँव में अपने खंडहर आवासों का पुनर्निर्माण करना चाह रहे हैं तो यह एक ऐसी पहल है जो एक ऐसे गाँव के उखड़ते प्राणों के लिए संजीवनी का काम करेगी जिसके पूर्वज पुरिया नैथाणी ने इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाया है!

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