नारी सशक्तिकरण! — 12 नाली बंजर भूमि पर उगा दिया जंगल, 65 वर्ष की उम्र में भी पेड़ों से लगाव। सात समंदर पार से बहु का सास के पर्यावरण संरक्षण को सैल्यूट। 

नारी सशक्तिकरण! — 12 नाली बंजर भूमि पर उगा दिया जंगल, 65 वर्ष की उम्र में भी पेड़ों से लगाव।
सात समंदर पार से बहु का सास के पर्यावरण संरक्षण को सैल्यूट। 
संजय चौहान की कलम से-
महिलाएं आज भी पहाड़ की जीवन रेखाएं है। या यों कहिये की यहाँ की आर्थिकी उसी के इर्द गिर्द घुमती है। आज भी उसके सामने पहाड़ जैसी चुनौतियों का अम्बार लगा हुआ है। जिसका वह बरसों से डटकर मुकाबला कर रही है। ऐसी ही एक महिला है मेरी सासु मां श्रीमती प्रभा देवी जिनके अथक प्रयासों ने बंजर भूमि को हरियाली में तब्दील कर हरा भरा जंगल खड़ा कर दिया। गौरतलब है की उत्तराखंड के लोगो का जल, जंगल और पर्यावरण से अटूट प्रेम सदियों से रहा है। यहाँ के आम लोगो की जिंदगी से जुड़े अधिकतर कार्य जंगलो से ही जुड़े हुए होते है। जंगल यहाँ की आवश्यकता भी है और रोजमर्रा के जीवन से जुडी एक प्रयोगशाला भी। पहाड़ी लोगो का प्रकृति प्रेम किसी से छुपा नहीं है। वह चाहे चिपको आंदोलन या मैती आंदोलन। पहाड़ के जनमानस पर गर्व और होता है जब यहाँ के लोग बिना किसी स्वार्थ के जंगलो को बचाना अपना उद्देश्य समझने लगते है। मेरी सासू मां श्रीमती प्रभा देवी सेमवाल जी नें अपने रोजमर्रा के जीवन में जंगल की उपयोगिता को समझते हुए अपनें दूर खेतो में बरसो से पेड़ो को लगाकर आज एक जंगल उगा दिया है।

बहुत पहले जब ग्राम पंचायत के जंगल में अवैध कटाई और भूस्खलन के कारण जंगल से रोजमर्रा की जिंदगी को मिलने वाले संसाधनो में कठिनाई आने लगी तो मेरी सासू माँ ने अपने कुछ खेतो के समूह में जंगल उगना शुरू कर दिया था। जहां उन्होंने पहले अपने जानवरो के लिए घास उगाई और धीरे धीरे पेड़ो को उगाकर आज एक जंगल ही उगा दिया। आज उनके द्वारा उगाये गए जंगल में पेड़ो की संख्या ५०० से अधिक है। जिसमे विभिन्न तरह के पेड़ है। जहां इमारती लकडियो से लेकर जानवरो को घास में देने वाले पेड़ो, रीठा, बाँझ, बुरांस, दालचीनी आदि सभी स्थानीय पेड़ो को लगाया गया है। वे बचपन से ही लकड़ी और घास के लिए जाती रही है पर जीवन में कभी उन्होंने किसी छोटे पेड़ को जड़ से नहीं काटा। आज उनके बेटे बेटिया देश विदेश में अपने कामो में लगे है पर उन्होंने कभी पहाड़ नहीं छोड़ा न देश विदेश में रह रहे अपने बेटे बेटियो के यहाँ गए। ६५ साल की उम्र में भी आज भी उनकी दिनचर्या अपने खेत, जानवरो और पेड़ो के ही इर्द गिर्द घूमती है। उन्हें अपनें पहाड और पेडों से प्यार है। मुझे दुःख है कि मैंने कभी उनके इस पुण्य काम में उनका हाथ नहीं बांटा। पर गर्व है कि वह मेरी सास है। मेरा आप सभी से बिन्रम निवेदन है की पर्यावरण संरक्षण के लिए बृक्षारोपण को बढ़ावा दें और हर साल एक पेड़ जरुर लगायें।
– रीना सेमवाल, जकार्ता(इंडोनेशिया)।
(ये मनीष सेमवाल जी की धर्मपत्नी है जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के पसालत गाव के निवासी है। ३ भाई ३ बहिनों में सबसे छोटे मनीष वर्तमान में इंडोनेशिया के जकार्ता शहर में शिक्षविद्द के रूप में कार्य करते है। इनका अपना देश और मात्रभूमि से बेहद लगाव है। जिस कारण वे सात समंदर पार रहकर भी अपनी माटी को नहीं भूले है। हर साल ये २ बार अपने घर जरुर आते है )।

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