नाथ सम्प्रदाय प्रदत्त हैं बुक्साड विद्या व कांवर धूल, चौबाट चुंगटी व गुंजमुंज्या बोली..!
नाथ सम्प्रदाय प्रदत्त हैं बुक्साड विद्या व कांवर धूल, चौबाट चुंगटी व गुंजमुंज्या बोली..!
(मनोज इष्टवाल)
बंगाल का जादू हो या फिर भावर की बुक्साड विद्या या फिर जौनसार बावर, जोहार घाटी सहित देवभूमि हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में ब्याप्त बागोई, जोयसा व बुक्साड विद्या! सभी के माध्यम को नाथ सम्प्रदाय से जोड़कर देखा जाता रहा है जबकि जोयसा और बागोई के बारे में यह कहा जाता है कि यह इस्लामिक या मंगोलियन विधा की विद्या है जिनका जिक्र विभिन्न देशों के हिमालयी क्षेत्र में माना जाता है जबकि बुक्साड, कांवर की धूल, गुंजमुंज्या बोली इत्यादि नाथ सम्प्रदाय की प्रसिद्ध विद्याएँ हैं जिन्हें नाथ सम्प्रदाय के उत्पयक गुरु मछन्दर नाथ व उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ द्वारा अपने नौ नाथ चौरासी सिद्धों को बांटी गयी विद्या है. जो सम्पूर्ण आर्यवर्त नेपाल, भारत, से लेकर इस्लामाबाद तक प्रचलित रही है. बाद में कई विदेशी संतों द्वारा नाथ सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण करने के कारण यह पूरे विश्व के विभिन्न देशों में प्रचलित हुई!
लेकिन यहाँ नाथ पन्थ में भ्रांतियां हैं . ज्यादात्तर नाथपंथियों का मानना है कि नाथ पंथ की स्थापना में आदिगुरू सिद्ध योगी श्री आदिनाथ ने इसे शुरू किया उनके पश्चात श्री मछन्दर नाथ जी (मछेन्दर नाथ), श्री गोरखनाथ जी, श्री गजाबेली गजाकंठर नाथ, श्री सत्यनाथ जी, श्री चौरंगी नाथ जी, श्री अचलाअचम्भे नाथ जी, श्री उदयनाथ जी एवं श्री संतोष नाथ जी नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक हुए जिन्हें नौ नाथ नाम से पुकारा जाता है.
नौ नाथों के 12 पंथ हुए जिनमें भुवनेश्वर नाथ पन्थ, कच्छ में धर्मनाथ पन्थ, गंगासागर में कपिलानीपन्थ, गोरखपुर में रामनाथी पन्थ, झेलम में लक्ष्मणनाथी पन्थ, राधा डूंगा पुष्कर में बैरागी पन्थ, जोधपुर में भीम नाथी पन्थ, दिनाजपुर में आईपन्थ, गुरुदासपुर में गंगानाथी पन्थ, अम्बाला में ध्वजनाथ पन्थ, बोहर इंद्रप्रस्थ में पागल पन्थ व रावलपिंडी में नागनाथ पन्थ की स्थापना हुई.
नौ नाथों के चौरासी सिद्ध हुए जिन्हें आज भी विदमान माना जाता है. कहा तो ये भी जाता है कि समाधि लेने वाले नाथ या फिर ये चौरासी सिद्ध आदिकाल से वर्तमान तक जीवित हैं. और यदा-कदा वे प्रयत्क्ष रूप में लोगों को दर्शन भी देते रहते हैं. इन्हीं चौरासी सिद्धों में एक नूरबक्स हुए जिन्होंने बुक्साड विद्या को प्रचलन में लाया जबकि कालाब्क्स ने कांवर की धूल और चौबाट चुंगटी व सोना मर्च्छयाण से गुंजमुंज्या बोली विद्या प्रचलन में लाई गयी!
अगर देखा जाय तो बुक्साड व कांवर की धूल व चौबाट चुंगटी विद्या को प्रचलन में लाने वाले दोनों ही सिद्ध नामों से मुस्लिम लगते हैं जबकि सोना मर्च्छयाण मारछा जाति की है. फिर भी इन सिद्धों की सिद्धियों से उत्पन्न ये विद्याएँ आज भी प्रभावशाली मानी जाती हैं! लेकिन जोयसा, बागोई को कौन प्रचलन में लाया यह शोध का बिषय है क्योंकि इनकी लिपि बेहद अलग है जिसे समझ पाना आम आदमी के वश की बात नहीं है. इस लिपि पर वृहद शोध आवश्यक है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रामनाथी पन्थ के माने जाते हैं जो गुरु गोरखनाथ प्रचलन में लाये थे कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ का जन्म भारत नेपाल सीमा के पश्चिमी नेपाल के देवीपाटन में हुआ था यही शक्तिपीठ है और यही गुरुगोरखनाथ ने घोर तपस्या की थी! जिसे पाटेश्वरी देवी के रूप में आज भी पाटन में बेहद सिद्धपीठों में गिना जाता है.
कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ ने गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर में ही समाधि ली थी इसलिए इस सिद्धपीठ को रामनाथी पन्थ कहा जाता रहा है जिसके वर्तमान पंथी योगी आदित्यनाथ हैं! आपको बता दें कि गुरु गोरखनाथ के रामनाथी पन्थ से सबसे ज्यादा 58सिद्धों का जन्म हुआ,तदोपरांत आदिगुरू सिद्ध योगी आदिनाथ के 11, मच्छेन्दर नाथ के 9, चौरंगी नाथ के 6, श्री गजेबली गजकंठरनाथ के 2, श्रीउदयानाथ के 2, व अन्य तीन के एक एक सिद्ध मिलकर चौरासी सिद्ध हुए!