नन्हे हाथों ने थामे ढोल..!कहा ढोल से परहेज न करें गुनिजन आवजी!

नन्हे हाथों ने थामे ढोल..कहा ढोल से परहेज न करें गुनिजन आवजी!

(मनोज इष्टवाल)
विकास नगर 23 अप्रैल (हि. डिस्कवर)
स्वरांजली संगीत विद्यालय के नन्हे कंधों पर जब ढोल लदे और उनके शब्द गूंजे  तब सब भौंचक रह गये. ढोल जोकि सागर से भी गहरा है और जिसकी गहराई नापने के लिए कई युग बीत जाते हैं आज उसी ढोल को कंधों में लाधे जब इन छात्रों ने  दीपचंदी (चांचर) “धा धी न, धा धा धी न, धा ती न, धा धा धी न”  झैंता “धी नन, धी नन, धी नन, तिरकिट धिन-धिन” , दादरा ” धा धि न, धा ति न, नाटी “धी नन, धीधी नन, धीधी नन धिन्ता तिरकिट, कहरवा  ” धा गे न ति ना के धिन्न न” व   मंडाण (चलत दादरा)  की धुन बजाई तो सब आश्चर्यचकित रह गए.
और तो और जो इस विधा के सानी थे वे भी कान पर हाथ रखकर बोल पड़े वाह…! इन छात्रों के हाथों में लान्कुड ढोल के बेस पूड़ा पर पड़ती और हाथ की थाप चांटी वाली पूड़ा पर पड़ती तो लग ही नहीं रहा था कि ये कोमल हाथ चमड़े को पीट रहे हों क्योंकि उनसे उभरने वाले शब्द हवाओं में जिस तरह गुंजायमान हो रहे थे तब लग रहा था मानों श्रृष्टि पालक स्वयं चलकर उनके पास आकर शाबाशी दे रहे हों.

स्वरांजली के जब इन छात्रों से मैंने बात की तब इनमे सरदार जसकरण बोले- सर हमें ज्ञात हुआ कि हमारी देवभूमि के गुनिजन आवजी अब इन ढोल के बोलों से परहेज करने लगे हैं! क्योंकि उन्हें इस पेशे में हीन भाव दिखाई देते हैं. हमारा मकसद है कि ऐसे देवतुल्य मानवों की ऐसी नींद को पुन: जागृत करें जो ढोल सागर के ज्ञाता हैं.
वहीँ कार्तिक धीमान कहते हैं – सर हमारी मैडम जोकि प्रधानाचार्य हैं बिमला भंडारी , वो कहती हैं कि इसे माँ पार्वती और आदिदेव महादेव से जोड़कर देखो. यही ढोल श्रृष्टिपालक है. जिसे यह बजाना आ गया मानों उसने जग जीत लिया. इसीलिए हमारी हमेशा ही रूचि रहती है कि हम अन्य साजों के साथ ढोल भी बजाना सीखें.
अमृत धीमान कहते हैं कि शान्ति वर्मा मैडम कहती हैं कि ढोल स्वयं में एक ऐसा शास्त्र व शस्त्र है जो अनादिकाल से अजेय रहा है. जाने क्यों आज ढोली समाज व आवजी गुनिजन इसके महत्व को कम समझ रहे हैं जबकि वर्तमान युग में ढोल प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं. अत हमारा अनुरोध है कि ढोल सागर के ज्ञाता आवजी गुनिजन इस श्रृष्टि के अनोखे वाद्य यंत्र से परहेज न करें.
 

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