नग्न महिला का किला (बाणासुर किला) ! कोटल गढ़ यानि दैत्यराज बाणासुर की माँ कोट्टवि का निवास स्थान!
नग्न महिला का किला (बाणासुर किला) ! कोटल गढ़ यानि दैत्यराज बाणासुर की माँ कोट्टवि का निवास स्थान!
(मनोज इष्टवाल)
यों तो अक्टूबर 2015 में जब मैं चम्पावत जिले के लोहाघाट स्थित सुई-बिसुंग क्षेत्र में गया था तब भी मैंने इस किले पर “बलिपुत्र राजा बाणासुर का किला…!जहाँ आदिदेव महादेव और श्रीकृष्ण में हुआ था बिनाशक युद्ध” शीर्षक पर व्यापक खोजपूर्ण एक लेख अपने न्यूज़ पोर्टल हिमालयन डिस्कवर.कॉम में ही नहीं बल्कि देहरादून डिस्कवर नामक पत्रिका में भी लिखा था! लेकिन एक कसक और बाकी रह गयी थी कि कहीं न कहीं कुछ और भी इसके अतीत के गर्भ में छुपा है! आखिर वह चटपटाहट दूर हुई और मैं उसी निष्कर्ष पर जा पहुंचा जिस पर ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज “मेडन” ने अपने तत्कालीन शोध में स्पष्ट किया था!
(बाणासुर फ़ोर्स यानि कोटलगढ़ किला)
सुई-बिसंग क्षेत्र के युवा अपने को बाणासुर का परपौत्र कहलाने में खुश होते हैं! यह इत्तेफाक नहीं बल्कि सच है क्योंकि जब मैं 7 अक्टूबर 2015 को इस किले में पहुंचा तब यहीं के बहुत से नौनिहाल फ़ौज में जाने के लिए सडक से खड़ी चढ़ाई पर दौड़ लगाकर अपनी स्टेमना का प्रमाण दे रहे थे! पूछने पर उन्होंने कहा- सर, अगर ऐसा नहीं करेंगे तो हम राजा बाणासुर के नाती कैसे कहलायेंगे!
काली कुमाऊं के जिला चम्पावत के लोहाघाट से करीब 4 किमी. दूरी पर अवस्थित यह किला एक ऊँची शिखर पर स्थित है! जो समुद्र ताल से लगभग 6,327 फीट की उंचाई पर व 29-24’-30” अक्षांश और 80-6’-5” देशांतर पर स्थित है! यह अन्य पहाड़ियों की अपेक्षा लगभग 200 फिट ज्यादा उंचाई लिए है जहाँ से सम्पूर्ण सुई-बिसुंग पट्टी पर नजर रखी जा सकती है! कोटलगढ़ किला दक्षिण से उत्तर की ओर करीब 80 गज लम्बा और पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग 12 से 14 गज चौड़ा है!” (मिस्टर मेडन) वहीँ वर्तमान में सरकार की खानापूर्ति के लिए लगी तख्ती में इसकी लम्बाई 90 मीटर व चौड़ाई 20 मीटर आंकी गयी है!
(7 अक्टूबर 2015 को बाणासुर फोर्ड में)
इस किले में पानी के लिए एक जलाशय का निर्माण किया गया है जिसमें वर्तमान में पानी नहीं है वहीँ यहाँ के लोग बताते हैं कि यह जलाशय नहीं बल्कि यहाँ से करीब डेढ़ किमी नीचे नदी में उतरती हैं! इस किले को बाणासुर का किला भले ही वर्तमान में कहा जाने लगा है लेकिन ऐतिहासिक परिदृश्य में इसे कोटल गढ़ कहा जाता है! कोटलगढ़ का अभिप्राय नग्न महिला का घर या किला है! (मिस्टर मेडन)!
कहते हैं इस किले से बाणासुर नामक असुर ने कई युद्ध लडे लेकिन इसका बिच्छेदन कोई नहीं कर पाया क्योंकि बाणासुर ने अपने तप से वर पाया था कि उसके एक राक्षस के खून से 100 राक्षस पैदा होंगे! कहते हैं उनका व बिष्णु भगवान की सेना में कई युद्ध हुए और हर बार युद्ध बिना किसी नतीजे के समाप्त हुए! देवताओं ने उस को विजित करने के लिए सामूहिक शक्तियों से माँ काली की उत्पत्ति की और उसके रक्तबीजों को समाप्त किया! कहते हैं माँ शक्ति ने जिन-जिन को मारा उसमें बाणासुर की माँ कोट्टवि भी शामिल थी जिसका ऊपरी हिस्सा तो कवच से ढका रहता था लेकिन कमर से नीचे वह नग्न रहती थी! उसने माँ काली से बेहद भयंकर युद्ध किया और अंत में मारी गयी! कहा यह भी जाता है कि इस किले की स्थापना बाणासुर की माँ ने ही करवाई थी इसीलिए इसे कोतलगढ़ कहा गया है!
(सुई-बिसुंग पट्टी का भौगोलिक वैभव )
लेकिन पौराणिक मान्यताओं में इसे मद्रास के महाबलीपुरम के नीचे कोरोमंडल तट पर बताया गया है जबकि उत्तराखंड के विद्वान् पंडित इन स्थानों की प्रमाणिकता देते हुए कहते हैं कि सुई का अर्थ शोणितपुर है जो पुराणों में बर्णित है! और शोणितपुर ही बाणासुर का निवास स्थल था! सुई व बिसुंग की लाल मिटटी को वह इस बात की प्रमाणिकता मानते हैं और कहते हैं कि यहाँ जमीन खोदने पर खून की तरह लाल मिटटी मिलती है क्योंकि यह मिटटी दैन्त्यों के खून से ही लाल हुई है! इस क्षेत्र में बहने वाली नदी का नाम ही लोहू नदी है जिसके नाम से लोहाघाट पड़ा! बरसात में जब नदी भरकर बहती है तो पूरी नदी का पानी रक्त की तरह लाल होता है!
बहरहाल कोटलगढ़ के इस किले से आप चारों दिशाओं में देख व निगरानी कर सकते हैं! यहाँ से उतुंग हिमालय की शिखरें चमकती हैं! वहीँ सुई-बिसुंग की उपजाऊ मिटटी से इस क्षेत्र के लोगों को धनवान माना जाता है! यों तो बाणासुर का जन्मस्थल उत्तरकाशी जनपद के मनेरी भाली से आगे स्थित एक गाँव में माना जाता है! वहां के लोग आज भी उसे बाणा गाँव के नाम से जानते हैं! कोई उसे बाणासुर की तपस्थली मानता है तो कोई उसे जन्मस्थली! भूत के गर्भ में क्या छिपा है इसे वर्तमान व भविष्य के शोध ही स्पष्ट कर पायेंगे लेकिन अब लगता नहीं है कि इस वैज्ञानिक युग के नास्तिक ऐसी अवधारणाओं पर आगे मनन करेंगे! मुझे तो यह भी डर है कि हो न हो अतीत के पन्ने आने वाले समय में धीरे धीरे धूमिल होकर हमारी लोक समाज की परिकल्पनाओं को दीमक की तरह चाट जाएँ!
Manoj Istwal sir is doing wonderful efforts for the cultural history and heritage of Uttarakhand. I appreciate and congratulate him.
शुक्रिया जी।