धाद के मंच से बोले प्रो. पुष्पेश पन्त- मैं गौ मांस भक्षक हूँ।
देहरादून 4 जुलाई 2018 (हि. डिस्कवर)
सुप्रसिद्ध छायाकार व यायावर कहे जाने वाले कमल जोशी की प्रथम बरसी पर आयोजित “प्रथम कमल जोशी स्मृति व्याख्यान” में अध्यक्षीय भाषण में अपनी बात रखते हुए प्रो. पुष्पेश पन्त ने उस समय सबको स्तब्ध कर दिया जब वे मंच से बोले कि वे गौ मांस बड़े चाव से खाते हैं। कार्यक्रम की गरिमा देखते हुए भले ही मंचासीन डॉ. शेखर पाठक, लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, धाद के संस्थापक लोकेश नवानी, साहित्यकार मंगलेश डबराल, हैस्को के संस्थापक डॉ अनिल जोशी व धाद के केंद्रीय अध्यक्ष व्यास इस सबको सुनने के बाद भी चुप रहे लेकिन दर्शक दीर्घा में बैठे बुद्धिजीवी उनके इस बयान से बेहद असहज नजर आए।
धाद जैसी लोक समाज व लोक संस्कृति को समर्पित संस्था के मंच से प्रो. पुष्पेश पन्त द्वारा गौ मांस खाये जाने की पुष्टि करना क्या किसी नीतिगत तथ्य के तहत था या फिर जान बूझकर इस बात को जोर देकर कहना।
प्रो. पुष्पेश पन्त के अध्यक्षीय भाषण सुनने बैठे दर्शक दीर्घा के लोगों को सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उनका सारा उद्बोधन अपने बेटे अपने परिवार के मुद्दों पर फोकस रहा । हां इतना जरूर था कि वे बीच में कमल जोशी को जोड़कर अपने पारिवारिक सदस्य होने का दावा करते दिखे। उन्होंने एक ऐसे मंच से गौ मांस को चाव से खाने की बात की जहां हिमालयी संस्कृति के लोग बैठे थे जिनकी गाय सबसे पूजनीय है। यह बात वे किसी नार्थ ईस्ट के मंच से कहते तो शायद उनकी इस तरह कटु आलोचना नहीं होती।
बहरहाल प्रो. पन्त ने धाद जैसी गरिमामय संस्था को ही नहीं बल्कि गढ़ कुमाऊं के ब्राह्मणों को भी इस बयान से शर्मिंदा किया है क्योंकि ऐसी विकृत मानसिकता के बुद्धिजीवी कुमाऊँ या गढ़वाल के ब्राह्मण हों शंका पैदा करता है। सबसे आश्चर्यजनक यह है कि यह बयान न किसी न्यूज़ चैनल का अंग बना और न अखबार का। शायद पत्रकारिता में कहीं तो शून्यता आई है क्योंकि प्रो. पन्त से एक ने भी यह सवाल नहीं किया कि क्या गौ मांस खाने की बात इस मंच में रखना उचित था।
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ये भी गया।
ये बहुत ही अच्छा हुआ कि सठियाये हुए पंत जी को किसी ने भी तवज्जो नही दी, यह बिल्कुल ही एक मानसिक विकलांगता वाली बात थी, जो उम्र के साथ पंत जी मे आ गयी, उनको फुटेज देने से बचना चाहिए, भले ही कभी वो हमारे आदर्श रहे या न रहे हों।
बिलकुल
दाढ़ी सफेद हो गयी जरूर लेकिन असभ्यता वही की वही। उन्हें लगा होगा कि ऐसी गलीज़ बातों से उन्हें मीडिया में जगह मिल जाएगी । अच्छा हुआ जो मीडिया ने भाव नही दिया। जाहिल बुढ़ऊ
पुष्पेश पंत को सीधे कहना चाहिए कि वे इस्लाम अपना चुक हैं। धन्य है इनके जैसे महानुभाव वैसे उन्होंने ऐसा क्या कहा होगा कोई किसी से प्रमाणपत्र थोड़े ही मांग रहा था कोई अपनी निजी जिंदगी में कुछ भी खाता हो उससे किसी को कोई इत्तेफाक होना भी नहीं चाहिए था। वैसे अगर गाय का मांस खाते हों वैसे सुवर भी खाते हों पर वे डर से इसे कहेंगे नहीं । यदि किसी मुस्लिम सम्मेलन में उन्होंने इसी तरह विपरीत बात कह दी होती तो शायद ही वे सही सलामत वापसी कर पाते। अब समय आ गया है इन लोगों को जलील करने का जो भेड़िये के खाल में छिपे बैठे हैं। वैसे जेएनयू के प्रोफेसर हैं जाहिर है यही सब इन्होंने वहां भी किया होगा। इनकी रोपी पौध ही आज भारत तेरे टुकुड़ें होंगे के नारे बुलंद कर रही है। जाहिर है कि इनका परिवार भी ऐसे ही संस्करों में पला बढा इसके साथ उन्होंने खुले सैक्स के बारे में भी बता देना चाहिए था।
डूब मरना चाहिए इसे और वहां बैठे इसको सुनने वालों को जो इसे सही सलामत जाने दिया।
Please refer Vedas for Beef eating, you will find it’s a part of ritual and it is cure in some deseas , it was not an daily routine food . But I don’t know in what context he said this.
वेद में कहीं गौ मांस की कभी चर्चा नहीं हुई है! ये कुछ पाखंडी तथाकथित सेक्युलर लोगों के दिए हुए श्लोक हैं जो वेद पुरानों में कहीं नहीं मिलते. इन्हें जबरदस्ती जोड़ने का यत्न किया गया है!