धन सिंह घरिया ! -– 'पेड वाले गुरूजी' की अनूठी मुहिम! गाँव, स्कूल, धार्मिक तीर्थ स्थलों, और बुग्यालों में दे रहे हैं पर्यावरण संरक्षण का संदेश।

धन सिंह घरिया ! -– ‘पेड वाले गुरूजी’ की अनूठी मुहिम! गाँव, स्कूल, धार्मिक तीर्थ स्थलों, और बुग्यालों में दे रहे हैं पर्यावरण संरक्षण का संदेश।
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान की बेबाक कलम से-
— लीजिये इस बार ग्राउंड जीरो से आपका परिचय कराते हैं बैकुंठ धाम बदरीनाथ के, पेड़ वाले गुरु जी से। जो आखर का ज्ञान देने के साथ साथ समाज को पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संदेश भी दे रहें हैं ।
(चिपको आंदोलन के 43 बरस पर पेड़ों वाले गुरूजी को ये लेख पर्यावरण संरक्षण के अनुकरणीय कार्य हेतु)
१९७४ में गौरा देवी के नेतृत्व में पूरे विश्व में चिपको आन्दोलन अपना परचम लहरा रहा था और इसकी सफलता की कहानी ६ महीने बाद भी घर घर में हर रोज सुनी जा रही थी। इसी दौरान १० अगस्त १९७४ को बैकुंठ धाम बद्रीनाथ के समीप बसे गांव बेनाकुली- धनतोली में श्रीमती पुन्नी देवी और दलीप सिंह घरिया के घर एक बालक ने जन्म लिया। माता पिता ने अपने इस बालक का नाम गाँव के नाम धनतोली से धन सिंह घरिया रखा। बचपन से ही धन सिंह ने चिपको आन्दोलन के बारे में घर से लेकर गांव तक हर किसी से सुना। हर रोज चिपको और गौरा के बारे में सुनने से इसका इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रारंभिक से लेकर ५ वीं तक की शिक्षा बेनाकुली घनतोली से और ६ वी से लेकर स्नातक तक की शिक्षा गोपेश्वर से ग्रहण की। जिसके बाद परास्नातक और बीएड की डिग्री बडौत मेरठ से की और २००४ में बतौर प्राथमिक शिक्षक के रूप में सरकारी सेवा में आ गये। २००५ में इनका चयन सहायक अध्यापक(एलटी) और २००६ में प्रवक्ता पद (नागरिकशास्त्र) हेतु हुआ। वर्तमान में ये चमोली जनपद के पोखरी ब्लाक के दूरस्त विद्यालय राजकीय इंटर कॉलेज गोदली में प्रवक्ता के पद कार्यरत है।
बचपन से ही इन्हें पेड़ों से ख़ासा लगाव था। साथ ही इन्हें साफ़ सफाई बेहद पसंद थी। इसलिये जहां भी इन्हें गंदगी दिखाई देती वहां तत्काल साफ़ सफाई में जुट जाते। गर्मियों की छुटियों में वे अक्सर बैकुंठ धाम जाया करते थे। वहां पर इधर उधर बिखरे पड़े पॉलथिनों से इन्हें बेहद दुःख होता था। इसलिए वो बैकुंठ धाम पहुंचकर बिखरे पॉलीथिनों को एकत्रित करके साफ़ सफाई करते। पढाई के दौरान भी वो अक्सर विद्यालय में सफाई अभियान चलाते। समय की कमी के कारण वे इसे ज्यादा ब्यापक रूप नहीं दे सके। लेकिन जब उनका चयन २००७ में प्रवक्ता पद के लिए हुआ। तब से उन्होंने इस ब्यापक स्तर पर शुरू कर दिया।
धन सिंह घरिया विगत १० बरसों से सामाजिक पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रहें हैं। इस दौरान इन्होने विभिन्न स्थानों पर ३० हजार से अधिक पेड़ लगाएं हैं। साथ ही धार्मिक स्थलों और पर्यटक स्थलों में पाॅलीथिन उन्मूलन कार्यक्रमों के जरिये स्वच्छता अभियान भी चलाया और तृतीय केदार तुंगनाथ में दुर्लभ प्रजाति के भोज पत्र का भी रोपण किया। इसके अलावा इन्होने विभिन्न गांवो, जलस्रोतों, गाड़ गदेरों, में लोगों के साथ मिलकर सफाई अभियान भी चलाया। नंदा राजजात यात्रा २०१४ की समाप्ति के बाद इन्होने बेदनी बुग्याल में खुद के पैंसों से १५ कुंतल कचरा एकत्रित करके स्वच्छता अभियान चलाया। इसके अलावा तुंगनाथ से लेकर बद्रीनाथ में भी सफाई अभियान अनवरत रूप से चलाते रहतें हैं। वहीँ जब भी ये किसी जंगल में आग लगी हुई देखतें है तो बेहद दुखी होते हैं, और खुद चले जातें है आग बुझाने।
धन सिंह घरिया ने गोदली विद्यलय में ५० से अधिक विभिन्न प्रजाति के पेड़ों को लगाकर एक मिश्रित वन तैयार किया है। अवकाश के समय वो इसकी देखभाल किया करतें हैं। वहीँ इन्होने ६ किमी लम्बी मसोली- कलसीर सडक मार्ग के किनारे थुनेर, अंगू, पांगर, देवदार, सुराई, टेमरू के पेड़ लगाएं है। ताकि आने वाले समय में ये पेड़ भूस्खलन रोकने में मदद साबित हो सके, पर्यावरण संतुलित रहे और लोगों को इसका फायदा मिले।
पर्यावरण गतिविधियों के साथ साथ ये सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुये हैं। ये बेसहारा बच्चों के लिए किसी देवदूत से कम नहीं हैं। अभी तक ये अपने वेतन से २०० जरूरतमंद बच्चों की मदद कर चुके हैं। जिसमे स्कूल ड्रेस से लेकर फीस, कॉपी, किताब, पेन, बिस्तर, बर्तन इत्यादि शामिल है।
पेड़ों वाले गुरु जी से लम्बी गुफ्तगू करने पर कहतें हैं की धार्मिक तीर्थ स्थलों की स्वच्छता बढ़ने से लोगों का विश्वास भी इन स्थानों पर बढेगा। हमें कोशिस करनी चाहिए की सामजिक पर्यावरण कैसे स्वच्छ हो। गांवो से लेकर मठ मंदिरों में हरियाली और स्वच्छता होगी तो पर्यावरण अपने आप संतुलित होगा। मैं चाहता हूँ की हमारे बुग्याल, धार्मिक स्थल, पर्यटन केंद्र पाॅलिथिन मुक्त हो, जिससे इनकी गरिमा भी बनी रहे। और वातावरण भी स्वच्छ रहे। इसलिए ऐसे स्थानों पर सरकार को पाॅलिथिन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। कहते हैं कि जंगल के बहाने जंग छेड़ दी थी जिस साक्षात गौरा ने जिनके पास न स्वार्थ था फिर वी वो दुनिया को प्रकृति के प्रति गौर करने के लिए मजबूर कर गयी। और दुनिया को अंग्वाल चिपको का जादुई मंत्र दे गयी। आज हम सब कुछ जानते हुए भी प्रकृति के प्रति निष्क्रिय है क्यों –?? कुछ तो सीख लेनी पड़ेगी हमें गौरा के अंग्वाल चिपको आंदोलन से। धन्य है हम की हमारे बीच गौरा देवी जैसी सख्सियत थी। नमन गौरा को।आओ धरती बचाए खुद बचे।
वास्तव में अगर देखा जाय तो इनके कार्यों का वर्णन करने के लिए शायद शब्द ही कम पड जाये। आखर के साथ पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे पेड़ों वाले गुरु जी धन सिंह नेगी का कार्य अनुकरणीय है। साथ ही अन्य लोगों के लिए एक मिशाल भी। इस आलेख के माध्यम से धन सिंह घरिया जी को उनके कार्यों के लिए एक छोटी सी भेंट
 

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