दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र व सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेज के सहयोग से लुप्तप्राय एवं अल्पज्ञात भाषाओँ पर कार्यशाला आयोजित!
देहरादून 21 फरवरी 2020 (हि. डिस्कवर)
दून लाइब्रेरी एवं रिसर्च सेंटर तथा लखनऊ स्थित सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेज के सहयोग से लुप्तप्राय एवं अल्पज्ञात भाषाओँ (ELKL-8) के आठवें सेमिनार का आयोजन दून लाइब्रेरी एवं रिसर्च सेंटर तथा लखनऊ में स्थित सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेज (सेल) के सहयोग से आज सोंग्स्टन पुस्तकालय, देहरादून में आयोजित हुआ.

आयोजन के प्रारंभ में दून लाइब्रेरी के डायरेक्टर बी.के. जोशी ने आयोजकों का स्वागत किया तथा भाषाओं के संरक्षण की दिशा में हो रहे प्रयासों के विषय में प्रतिभागियों को बताया. ELKL सेमीनार की सीरीज का आरंभ लखनऊ विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कविता रस्तोगी के द्वारा सन 2012 में किया गया था. उस समय से प्रतिवर्ष यह कार्यशाला भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित हो रही है और इस कड़ी की यह आठवीं कार्यशाला है. लखनऊ विश्वविद्यालय में 3 वर्षों तक आयोजित होने के पश्चात इस कार्यशाला का आयोजन आगरा विश्वविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, भारतीय भाषा संस्थान-मैसूरू आदि अनेक स्थानों पर हुआ है.
इस सेमीनार में मुख्य वक्ता के रूप में तेजपुर विश्वविद्यालय में भाषा अध्ययन केंद्र की डायरेक्टर प्रो. मधुमिता बारबोरा ने अपने वक्तव्य में पूर्वोत्तर क्षेत्र की भाषाओं की विशेषताओं की ओर प्रतिभागियों का ध्यान आकर्षित किया. भाषायी दृष्टि से यह एक विशाल क्षेत्र है जहां अनेक मातृभाषाएं एवं बहुत सी बोलियां बोली जा रही हैं. इस विशाल क्षेत्र में अनेक ऐसी भाषाएं हैं जो लुप्तप्राय हैं या धीरे-धीरे विलुप्त की ओर कदम बढ़ा रही हैं.
सेल संस्था पिछले 5 वर्षों से लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण एवं विकास के क्षेत्र में कार्य कर रही है. यह संस्था भाषाओं के डॉक्यूमेंटेशन और संरक्षण के लिए कार्य करने के साथ-साथ ऐसे शोध छात्रों के ट्रेनिंग का कार्य भी करती है जो इस क्षेत्र में भविष्य में काम करना चाहते हैं. सेमिनार के प्रथम सत्र में सेल संस्था के प्रेसिडेंट प्रोफ़ेसर कविता रस्तोगी ने संस्था की तरफ से सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा उन्होंने संस्था में हो रहे कार्यों से अवगत कराया. तत्पश्चात जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त पद्मश्री प्रोफेसर अन्विता अब्बी का प्रोफ़ेसर कविता रस्तोगी ने उनके कार्यों के लिए स्वागत एवं सम्मान किया.
द्वितीय सत्र में प्रोफेसर प्रोफेसर अन्विता अब्बी ने अपना वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने बहुभाषिकता के महत्व को रेखांकित किया. उनका कहना है की भाषा सिर्फ बातचीत का माध्यम नहीं होते बल्कि एक भाषा अपने वक्ता को उसके इर्द-गिर्द के संसार से जोड़ती है. उसके चतुर्दिक व्याप्तसंसार में होने वाले परिवर्तन उसी भाषा के माध्यम से प्रतिबिंबित होते हैं. भाषा का खोना उन सभी परिवर्तनों और उन सभी अवधारणाओं का भी खो देता है.
अंडमान द्वीप समूह में बोली जा रही भाषाओं पर काम करने वाली प्रोफेसर अन्विता अब्बी ने अपने वक्तव्य में ऐसे अनेक उदाहरण देकर यह बताने का प्रयास किया की लोग के साथ अंडमानी भाषाओं का लोप हो रहा है. कार्यशाला के अंतिम सत्र में देश के विभिन्न भागों से आए प्रतिभागियों ने भारत की संकटापन्न एवं लुप्तप्राय भाषाओं की संरचना के अलग-अलग पक्षों पर अपने विचार रखे.
कार्यक्रम में दून लाइब्रेरी के आनरेरी फेलो प्रो. एम. पी. जोशी., चंद्रशेखर तिवारी, सुन्दर सिंह बिष्ट, आकाशवाणी के पूर्व निदेशक विभूति भूषण भट्ट, सुरेन्द्र सजवान, अजय कुमार सिंह, अजीत चौधरी तथा सोंग्स्टन पुस्तकालय के निदेशक डॉ. ताशी सेम्फल आदि सहित अन्य प्रतिभागी उपस्थित रहे.