दून के संस्कृतिकर्मी व साहित्यकर्मियों ने दी डॉ. शेर सिंह पांगती को श्रद्धांजलि।
देहरादून 25 अक्टूबर (हि. डिस्कवर)
देहरादून के साहित्यकारों व संस्कृतिकर्मियों ने दिवंगत साहित्यकार डाॅ. शेर सिंह पांगती को श्रंद्धाजलि दी व उन्हें याद किया। मूल रूप से मुनस्यारी जनपद पिथौरागढ़ के निवासी डाॅ. शेर सिंह पांगती देहरादून के नींबूवाला में रहते थे। डाॅ. पांगती का देहरादून में ही 24 अक्टूबर को निधन हुआ।
समय साक्ष्य प्रकाशन के कार्यालय में हुई श्रृद्धांजलि सभा में 20 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। वयोवृद्ध साहित्यकार भगवति प्रसाद नौटियाल की अध्यक्षता में हुई शोक सभा का संलाचन साहित्यकार गीता गैरोला ने किया। इस अवसर पर बोलते हुए लोक के जानकार डाॅ. नन्द किशोर हटवाल ने कहा कि शेर सिंह कार्की जैसे लोक के मर्मज्ञ व धुन के पक्के बिरले ही लोग होते हैं। हटवाल ने बताया कि श्री पांगती ने जोहार क्षेत्र की लोक संस्कृति के साथ ही समाज, लोकसाहित्य, पर्यटन इत्यादि विषयों पर 20 से अधिक पुस्तकें लिखीं।
उत्तराखंड भाषा संस्थान के उपसचिव डाॅ. सुशील उपाध्याय ने कहा कि डाॅ. पांगती ने शिक्षक के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी सारी कमाई मुनस्यारी में एक संग्रहालय बनाने में खर्च कर दी। यही संग्रहालय आज मुनस्यारी में ट्राइबल हैरीटेज म्यूजियम नाम से प्रसिद्ध है। डाॅ. योगम्बर वत्र्वाल ने उन्होंने जिद का पक्का शोधकर्ता बताया। प्रवीन कुमार भट्ट ने बताया कि जोहार के स्वर, राजुला मालूशाही एक समालोचनात्मक अध्ययन, मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति, लोक गाथाओं का मंचन, जोहार ज्ञान कोष आदि उनकी चर्चित किताबें हैं।
दून पुस्तकालय के शोध अधिकारी चन्द्र शेखर तिवारी ने कहा कि उनका स्थापित किया गया म्यूजियम आगे भी सुचारू रूप से चलता रहे इस दिशा में सभी को मिलकर सोचना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भगवति प्रसाद नौटियाल ने कहा कि डाॅ. शेर सिंह पांगती ने अपना पूरा जीवन सक्रियता से सीमांत जोहार क्षेत्र की सेवा में बिता दिया। उनके ज्ञान और लेखन को नई पीढ़ी तक पहुंचाए जाने की जरूरत है। उनके साहित्य को उत्तराखंड के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर सुरेन्द्र पुण्डीर, मदनमोहन डुकलाण, प्रेम साहिल, हेमचन्द्र सकलानी, पे्रम पंचोली, रानू बिष्ट, डाॅ. डीएन भटकोटी, कुलानन्द घनसाला आदि उपस्थित थे।