दानवीर कर्ण के दक्ड्याण मेले में देवरा गांव में भव्य आयोजन। कफुआ के साथ हुआ मेले का समापन।
(मनोज इष्टवाल)
जब भी तमसा यमुना घाटी सभ्यता की बात होती है तब यह तय माना जाता है कि वहां की पांडव कालीन सभ्यता पांच हजार बर्ष पूर्व से लेकर वर्तमान तक बदस्तूर जारी है। अगर ऐसा नहीं होता तो न यहां दानवीर कर्ण, शल्य, दर्योधन की बात सामने आती न लाखामंडल या पांडवकालीन लोकसमाज की बहुपति प्रथा तमसा नदी के बाएं छोर पर जहां रूपिन सुपिन संगम पर फोखु देवता का मंदिर अवस्थित है व जहां से कर्मनाशा या टोंस या तमसा नदी का विस्तार होता है वहीं से लगभग एक मील की दूरी पर देवरागांव में कर्ण महाराज का मंदिर अवस्थित है।

दानवीर कर्ण की जहां तपोस्थली कर्णप्रयाग मानी जाती है वहीं कर्मस्थली या महल अवस्थापना पर्वत क्षेत्र के देवरा ग्राम में माना जाता है जिसके प्रांगण में हर बर्ष हर ऋतु मास प्रारम्भ होने पर एक मेला आयोजित होता है। कर्ण मंदिर देवरागांव समिति के अध्यक्ष राजमोहन सिंह रांगड़ (वजीर) गैंच्वाणगांव बताते हैं कि कर्ण महाराज की मूर्ति थाती चंपावत कुमाऊ से लाकर पूरे विधिविधान से यहां स्थापित की गई है। यहां हर बर्ष ऋतु परिवर्तन के साथ महाराज कर्ण के मंदिर में माघ मास (जनवरी), मकर संक्रांति को हिंडोला/गेंद मेला लगता है, वहीं आषाढ़ मास यानि जुलाई माह में दक्डयाण मेला व अगस्त (भादो मास) में नाग चौथ मेला आयोजित होता है जिसमें पर्वत क्षेत्र के 25 गांवों के अलावा हिमाचल, जौनसार, रवाई व बावर क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग महाराज कर्ण के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं।

पैंसर गांव के जोत सिंह सयाणा व गैंच्वाणगांव के सूरत सिंह सयाणा जानकारी देते हैं कि दक्डयाण मेले में कर्ण महाराज का कफुआ लगता है जिसमें उनकी डोली मन्दिर से बाहर दर्शन हेतु निकाली जाती है। उनकी पूजा शान्यकाल 4 बजे के आस पास तब लगाई जाती है जब पृथ्वी के सभी पशु पक्षी प्राणी अपना भोजन कर चुके होते हैं।
वहीं वजीर राजमोहन सिंह रांगड़ बताते हैं कि कर्ण महाराज शिब जी के अनुनय भक्त हैं, यही कारण भी है कि वे 121 बर्षों से लगातार केदारनाथ की पैदल यात्रा करते आ रहे हैं। उनके साथ उनके रथ चालक शल्य देवता व गुरुमाता रेणुका माई हमेशा ही होती हैं साथ ही पोखु देवता उनके द्वारपाल के रूप में विराजमान होते हैं। इस मेले में महाराज कर्ण, शल्य व पोखु देवता कफुआ गीत वादन में कफ्वाया नृत्य करते हैं जो आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है। कोटगांव के पंडित रामकृष्ण उनियाल बताते हैं कि उनकी ससुराल भी देवरा है और यहां की बेटियों को कर्ण महाराज का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है। उनके विवाह के अवसर पर कर्ण महाराज उन्हें आशीर्वाद स्वरूप स्वर्णदान देते हैं।
आपको यदि कर्ण महाराज के दर्शन करने हों तो कृपया आप हिमाचल से त्यूणी, हनोल होकर मोरी नैटवाड़ मार्ग से देवरा पहुंच सकते हैं जबकि देहरादून से आप यमुनोत्री राजमार्ग के नौगांव से पुरोला, जरमोलाधार धार, मोरी नैटवाड़ होकर देवरा गांव पहुंच सकते हैं। कर्ण महाराज सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं।