मूर्धन्य कवि स्व. कन्हैय्या लाल डंडरियाल की 14वीं पुण्य तिथि पर साहित्यकारों ने कुछ यों किया याद।
देहरादून 2 जून 2018 (हि. डिस्कवर)
हिमालय लोक साहित्य एवं संस्कृति विकास ट्रस्ट के तत्वावधान में प्रेस क्लब में मूर्धन्य कवि स्व. कन्हैय्या लाल डंडरियाल की 14वीं पुण्य तिथि पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना की अध्यक्षता में उनके कृतित्व व उनसे जुड़े संस्करणों पर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर समय साक्ष्य की रानू बिष्ट द्वारा मग पर कन्हैया लाल डंडरियाल की काव्य सृजना को प्रकाशित कर स्मृति चिन्ह के रूप में भेंट किये।
मूलतः पौड़ी गढ़वाल के नैली, मवालस्यूँ, चौंदकोट में 11 नवम्बर सन 1933 में बेहद गरीब परिवार में जन्मे कवि कन्हैया लाल डंडरियाल मामूली से अध्ययन के बाद 20 बर्ष की उम्र में वक्त के थपेड़े खाते-खाते दिल्ली पहुंचे और बिरला मिल में बुनकर के रूप में अपनी आजीविका शुरू की।
1982 में बिरला मिल बन्द होने के बाद यह यायावर व्यक्तित्व दिल्ली में रहकर दिल्ली के हिसाब से स्वयं की रोजी-रोटी की जद्दोजहद कर नंगे पैर साइकिल में घर घर चाय की पत्ति बेचनी शुरू की।
कम पढ़े लिखे होने के बावजूद इनकी घुमकडी ने जो काव्य और गद्य साहित्य के रूप में पूरे गढ़वाल को दिया शायद ऐसा बिरला साहित्य किसी और कवि और साहित्यकार की कलम से बहा हो। पूर्वी नयार जोकि इनके गांव के तल से बहती है से बहते इनके कलम के आखर पश्चिमी नयार से मिलकर गंगा के बेग में बहकर पूरे गढ़वाल ही नहीं बल्कि देश भर में जहां जहां भी गढवाली समुदाय की बसागत थी वहां आचमन करते हुए आगे बढ़े। जिसका प्रतिफल यह हुआ कि बर्ष 1960 में इनकी पुस्तक “मंगतू” (खण्डकाव्य), 1978 में अंज्वाल (कविता संग्रह), 1990 में कुएडी (गीत संग्रह), 1993 में नागरजा (महाकाव्य भाग-1), 1998 में चांठों का घ्वीड़ (यात्रा वृतांत), 1999 में नागरजा (महाकाव्य भाग-2), सन 2001 में नागरजा (महाकाव्य भाग-3/4) प्रकाशित हुआ।
ज्ञात हो कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा “झम झम ले दादू मेरी उलरिया जिकुड़ी, दादू मी पर्वतुं कु वासी” गीत जब गाया गया था तब बहुत कम जानते थे कि यह गीत कन्हैया लाल डंडरियाल की पुस्तक अंज्वाल का अंतिम पृष्ठों में अंकित गीत है। और जब इसकी खबर बाजार तक पहुंची तब इसकी डिमांड बढ़ी और सन 2004 में इस किताब का दूसरा संस्करण तब बाजार में आया जब शायद कन्हैया लाल डंडरियाल अपनी जिंदगी की अंतिम सांस गिन रहे थे या गिन चुके थे।
आज भी उनकी कई रचनाएं अप्रकाशित हैं जिनमें गढ़वाली हिंदी शब्दकोश, बागी उपनै लड़ै (खण्डकाव्य), उडणी गण (खंड काव्य), कंसानुक्रम (मंचित नाटक), स्वयम्बर (मंचित नाटक), भ्वीचल (मंचित नाटक), अबेर च अंधेर नी (नाटक), रुद्री (उपन्यास) और सैकड़ों कविताएं हैं। उन्हें उनकी विभिन्न कृतियों पर 8 पुरस्कार मिले।जिनमें गढ़ भारती पुरस्कार, पण्डित टीका राम गौड़ पुरस्कार, पण्डित पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल नामित पुरस्कार , पंडित आदित्य राम नवानी गढ़वाली भाषा प्रोत्साहन पुरस्कार, गढ़ रत्न पुरस्कार, जयश्री सम्मान , उत्तराखण्ड गौरव व साहित्य शिरोमणी सम्मान प्रमुख हैं।
स्व. कन्हैया लाल डंडरियाल के कृतत्व व संस्मरणों सम्बन्धी इस आयोजन में जहां कार्यक्रम की अध्यक्षता रोशन धस्माना ने की वहीं विशिष्ठ अतिथि के रूप में भगवान प्रसाद घिल्डियाल, सानिध्य नंदकिशोर हटवाल व संचालन की जिम्मेदारी दिनेश शास्त्री ने निभाई।
उनकी संस्मरण व काव्य पाठ की शुरुआत जहां साहित्यकार देवेश जोशी ने उनकी पुस्तक नागरजा का काव्य सृजन सुनाकर किया वहीं लोकसंस्कृति के चितेरे साहित्कार नन्दकिशोर हटवाल ने उनकी काव्य शैली पर प्रकाश डालते हुए इसे गढ़वाली साहित्य के लिए दुर्लभ माना।
अपनी रौ के व्यंग्य काव्य सृजक व कवि हरीश जुयाल कुटुज ने उनकी अंज्वाल पुस्तक की एक काव्य सृजना सुनाकर की। पेशे से अध्यापक व रचनाकार धर्मेंद्र नेगी ने भी अंज्वाल में चुसणा काव्य सृजना का सबको रसोवादन करवाया वहीं यायावर पत्रकारिता के नाम से जाने गए वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल ने कन्हैयालाल डंडरियाल से जुड़े अपने संस्करणों को सुनाते हुए कहा कि 1988-89 में उनकी मुलाकात घमण्डपुर कोटद्वार में इस फकीर टाइप व्यक्तित्व से नामी गिरामी साहित्यकार बद्रीश पोखरियाल के घर में हुई थी और आज वही फकीर उनके लिए उत्तराखण्ड के साहित्य का भगवान है।
लेखक गीतकार अभिनेता कवि मदन मोहन डुकलान ने स्व. कन्हैयालाल डंडरियाल की कृतित्व एवम व्यक्तित्व पर जहां एक ओर विस्तृत प्रकाश डाला वहीं उन्होंने बताया कि वे समय साक्ष्य प्रकाशन के माध्यम से शीघ्र ही बड़े मंच पर कन्हैयालाल डंडरियाल का बेहद दुर्लभ उपन्यास “रुद्री” के लोकार्पण पर विचार कर रहे हैं । वहीं उन्होंने समय साक्ष्य द्वारा मग पर कन्हैयालाल डंडरियाल की कृति को उकेरने के लिए समय साक्ष्य की रानू बिष्ट व परवीन भट्ट का आभार व्यक्त किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे भगवान प्रसाद घिल्डियाल ने उनकी सुप्रसिद्ध कृति “झम झम ले दादू मेरी उलरिया जिकुड़ी, दादू मी पर्वतुं को वासी ” गाकर सुनाई। वहीं श्रीमती बीना कण्डारी ने 1990 में एक कवि सम्मेलन में सुनाई गई पलायन पर अपनी कविता का कविता पाठ सुनाया जिसे उन्होंने कन्हैयाल लाल डंडरियाल की उपस्थिति में सुनाया था वहीं प्रेम लता सजवाण के भी उनकी एक काव्य संरचना को गीत के रूप में गाकर संस्मरणों को ताजा किया। जबकि समाजसेवी रघुवीर बिष्ट ने कहा कि जितना उन्हें यहां आकर कन्हैया लाल डंडरियाल के बारे में जानने को मिला उस से यही महसूस होता है कि ये युग पुरुष सदी में एक ही पैदा होते हैं। मंच का संचालन कर रहे दिनेश शास्त्री ने दिल्ली में कन्हैयालाल डंडरियाल की मृत्यु से पहले के संस्मरण रखते हुए कहा कि वे हॉस्पिटल से ठीक होकर घर लौट भी आये थे लेकिन लगातार डायलिसिस न करवाने के बाद आखिर मौत ने उन्हें दबोच ही लिया । उन्होंने बताया कि “अंज्वाल” पुस्तक के लोकार्पण के समय वे किस तरह द्वार तक वापसी को लौट चुके मेजर जनरल भुवन चन्द खण्डूरी को वापस लाये और कैसे उन्होंने सहृदय इस पुस्ततक का लोकार्पण किया। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर है गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना ने कहा कि कन्हैया लाल डंडरियाल जैसे कवि व साहित्यकार की गढ़वाली हिंदी शब्दकोश प्रकाशन के लिए गढ़वाल सभा ने पहल भी की लेकिन कोटद्वार जिन सज्जन के पास वह पांडुलिपि है उन्होंने देने से इनकार कर दिया और न अभी तक उसे स्वयं ही प्रकाशित कर पाए। उन्होंने सभी का कार्यक्रम में पहुंचने पा आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें भरसक कोशिश करनी चाहिए कि हम कन्हैयालाल डंडरियाल जी जैसे कवि के लिए आगे आएं उन्होंने कहा उनसे जितनी भी जहां सहायता हो पाएगी वे अपने व सरकार के स्तर से करने के लिए सबके साथ खड़े हैं।
इस अवसर पर अशोक डंडरियाल, रानू बिष्ट, संगीतकार राजेन्द्र चौहान, गिरधर शर्मा, प्रवीण भट्ट, रंगकर्मी वसुंधरा नेगी, रविन्द्र कोटनाला, ललित मोहन लखेड़ा, सुरेंद्र भंडारी, श्रीमती बबिता नेगी, वीर सिंह कण्डारी इत्यादि मौजूद थे।