दस्तूर-उल-अमल के तहत दंडनीय अपराध घोषित किया गया जौनसार-बावर का जादू टोना! साथ ही समाप्त हुआ चौंतरा न्याय व्यवस्था!
दस्तूर-उल-अमल के तहत दंडनीय अपराध घोषित किया गया जौनसार-बावर का जादू टोना! साथ ही समाप्त हुआ चौंतरा न्याय व्यवस्था!
(मनोज इष्टवाल)
यों तो यह प्रकरण तभी से शुरू हो गया था जब सन 1830 में कर्नल यंग ने बाकिर अली को ब्रितानी हुकुमत ने देहरा का तहसीलदार नियुक्त कर दिया था और कालसी क्षेत्र की देखरेख के लिए नियुक्त दीवान पद समाप्त कर दिया था! तब घटनाएँ ज्यादा बढ़ गयी जब जौनसार बावर क्षेत्र के बूढ़े जमानती लाला दीनदयाल राम (वर्तमान में इनका परिवार पुरानी कालसी में रहता है)! की मृत्यु हो गयी व उसके बेटे कृपा राम व जौनसार बावर के चार चौन्तरू के बीच आपसी झगड़ा शुरू हो गया!
ऐसे में कालसी क्षेत्र में कोई ऐसा प्रभावी अधिकारी नहीं था जो इस झगडे को शांत कर पाता! बर्ष 1844 में इस मामले की शिकायत लेकर चार चौंतरु मिस्टर वैन्सिलेट के पास गए जिनकी दलील पर कृपा राम को उनके पद से हटा दिया गया लेकिन पांचवें –छटे बंदोबस्त को देख रहे मिस्टर ए. रौस ने पुनः 1946 में कृपा राम को उसके पद पर बहाल कर दिया! जिस पर चार चौंतरु ने ऐतराज जताया व कृपाराम के प्रतिद्वन्दी के रूप में एक नया जमानती नियुक्त कर दिया! मामले को बढ़ता देख अधीक्षक द्वारा चौंतरु को उनके कार्यों से मुक्त कर दिया जिसकी शिकायत लेकर वे लेफ्टनेंट गवर्नर के पास आगरा जा पहुंचे जिसके लिए उन्होंने जौनसार बावर के लोगों से एक बड़ी रकम वसूल की. इस दौरान महासू का वजीर भी क्षेत्र से वसूली करता रहा! इस सब की जानकारी मिस्टर ए. रौस ने सन 1849 में जौनसार बावर के सभी कर दाताओं से जुटा ली थी व इसी बर्ष गवर्नर जनरल के क्षेत्रीय दौरे में आने से ग्रामीणों को अपनी बात रखने का मौक़ा मिला! जहाँ आकर गवर्नर जनरल को पता चला कि चौंतरु द्वारा नियुक्त जमानती ग्रामीणों से ज्यादा कर वसूल रहा है व चौंतरु अपने अच्छे खेतों का तो कम राजस्व कर लगा रहे हैं और गरीबों से ज्यादा वसूली कर रहे हैं!
गवर्नर जनरल के पास इस पैरवी को लेकर मिस्टर ए. रौस ने ग्रामीणों की पुरजोर वकालत की जिसका परिणाम यह निकला कि गवर्नर जनरल ने चार चौंतरु के पद समाप्त कर क्षेत्र में न्याय ब्यवस्था को लचीला बनाते हुए हर खत्त में खत्त सयाणा की नियुक्ति करने के आदेश दिए जिसका लाभ यह हुआ कि हर हिस्सेदार की संयुक्त जिम्मेदारी उसके खत्त के सयाणों पर आ गयी! तब से लेकर आज तक यह ब्यवस्था सुचारू रूप से चली आ रही है ! भले ही अब कर वसूली खत्त सयाणा के हाथ नहीं रही लेकिन न्याय ब्यवस्था में आज भी यहाँ ज्यादात्तर मामले ग्राम सभाओं में या खत्त में खत्त सयाणा के निर्देश पर निबटा दिए जाते हैं!
जहाँ मिस्टर रोष ने भू-प्रबन्धन में आमूल-भूत परिवर्तन किये वहीं न्याय ब्यवस्था के लिए न्याय पंचायतों द्वारा लाई गयी न्याय प्रणाली और प्रक्रिया की रूप रेखा यहाँ के रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए तैयार की! सिर्फ महापराधों को सयाणा की न्याय व्यवस्था से इसलिए हटा दिया गया ताकि ह्त्या जैसे जघन्य अपराधों पर पैंसे लेकर फैसले न लिए जा सकें! उन्होंने जादू-टोना या टोना टोटका वाली जौनसार की काला जादू या कश्मीरी विद्या के समस्त पंडितों को चेतावनी दी कि अगर कोई ऐसा अपराध करता दिखाई दिया जो किसी के परिवार के लिए घातक सिद्ध हुआ तो यह बेहद गंभीर व दंडनीय समझा जाएगा! भले ही उन्होंने जनता की भलाई में इस्तेमाल होने वाले टोने-टोटके पर वस्तुतः रोक नहीं लगाईं लेकिन बदले की भावना से ऐसी विद्याओं से दूसरों को नुक्सान पहुंचाने की परम्परा को दंडनीय अपराध श्रेणी में शामिल किया गया जिसका तेजी से असर हुआ व आये दिन कश्मीरी विद्या, जोयसा, बागोई व बुक्साडी विद्या की किताबें हनोल स्थित महासू मंदिर में चढ़नी शुरू हो गयी ! भले ही तब बड़े बड़े क्षेत्रीय पंडितों ने इसके पीछे यह तथ्य रखे कि उन्हें अब यह विद्या नुकसान पहुंचाने लगी है क्योंकि इस करामाती विद्या का काम ही यह होता है कि वह महीने पन्द्रह-दिन में अपनी करामात दिखाए और बदले में मानव बलि से लेकर भेड़ बकरा या मुर्गा बलि पाए! इसमें सत्यता कितनी है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरुर है कि सन 1849 में मिस्टर रौस ने सिर्फ क़ानून ही नहीं बनाया बल्कि ऐसा करने वाले पंडतों पर निगरानी के लिए ख़ुफ़िया तंत्र भी सक्रीय करवाया जो जौनसार बावर के आम लोग ही हुआ करते थे जिन्हें खबरी कहा जाता रहा! आपको बता दें कि ऐसी विद्याओं के जानकारी सिर्फ जाति के पंडित नहीं होते थे! यह विद्या किसी भी जातिवर्ण के व्यक्ति के पास हो सकती थी इसीलिए उसे पंडित नहीं बल्कि पंडत पुकारा जाता रहा है! भले ही यह सब टोने-टोटके सदियों पहले ज्यादात्तर समाप्त हो गए थे लेकिन इस क़ानून के बाद पूरे गढ़वाल मंडल में जौनसार बावर क्षेत्र के जादू-टोने की परम्परा की जानकारी मिलते ही लोग जौनसारी जादू में आदमी को बकरा बना देने जैसी अफवाह फैलाने लेगे जिसके अपवाद आज भी लोगों की जुबान पर गाहे-बगाहे सुनाई देते हैं और जौनसारी समाज के बुद्धिजीवी चुस्कियां लेकर उन्हीं का मजाक उड़ाते दिखाई देते हैं जो ऐसी बातें फैलाने का काम करते हैं! यह सच है कि हिमालयी भू-भाग ही नहीं बल्कि पूरे संसार में तंत्र मन्त्र हर जगह हर काल में रहा! लेकिन जौनसार बावर व बंगाल का काला जादू इसीलिए बिख्यात हुआ क्योंकि इन्हें क़ानून के दायरे में शामिल किया गया जिस से इसकी चर्चाएँ होती रही!