दस्तक और फूलदेई के रंग सात साल का हो गया फूलदेई बालमहाकुम्भ
2010 से शुरू हुआ दस्तक का यह आयोजन सातवे साल मे प्रवेश करते हुऐ नयी परंपरा की नीव रख चुका है। बच्चो का उत्साह देखकर मिलने वाली खुशी असीमीत है और सबसे बड़ी खुशी इस बात कि इसे देखने भेटने के लिऐ दर्शक अब बड़ी संख्या में सड़को पर उमड़ने लगे है।
यह आयोजन अब विशाल रूप लेने लगा है इस बार बच्चो की संख्या 500 पार कर गयी, हमेशा की तरह इस बार भी तन मन धन से मदद करने वाले हाथ बड़ते जुड़ते रहे। इस बार के आयोजन के लिए स्वतंत्र निदेशक टीएचडीसी श्री मोहन सिह रावत ‘ गाववासी ‘ जी का सहयोग और आशीर्वाद जितनी आत्मीयता से मिला वह अभिभूत करने जैसा था। कुछ मित्रो ने म्यळाग कर चार हजार रूपये की सहायता राशि भी प्रदान की। कुछ इतने अच्छे साथी भी मिले जो बिना स्वार्थ के चुपचाप हमेशा की तरह अपनी भूमिकाऐ निभाते रहे।

यह आयोजन किसी संस्था, परिवार और मेरा आपका नही है बल्कि यह हम सभी का है, हमारी परंपराओ का है। अगस्त्यमुनि मंदिर सदियो से परंपराओ की केन्द्रस्थली रहा है, और घाटी के अपने आराध्य के चरणो में नन्हे मुन्हे के इस आयोजन को करने का उद्देश्य भी यही है कि परंपराऐ पोषित हो।

यह आयोजन किसी संस्था, परिवार और मेरा आपका नही है बल्कि यह हम सभी का है, हमारी परंपराओ का है। अगस्त्यमुनि मंदिर सदियो से परंपराओ की केन्द्रस्थली रहा है, और घाटी के अपने आराध्य के चरणो में नन्हे मुन्हे के इस आयोजन को करने का उद्देश्य भी यही है कि परंपराऐ पोषित हो।

सच कहू तो इन सात सालो में आज पहली बार आँखो मे आँसू भी आये, सही कहा है कि बच्चे भगवान का रूप होते है, और भगवती ने क्षणभर के लिऐ मुझे भी अपना स्वरूप दिखा दिया, सच में अदभुत थे वो पल। माँ फिर से हम सभी को भाव, शक्ति और प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।