दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम रही "तीलू रौतेली"! वीरांगना तीलू के अभिनय में वसुंधरा ने दिल जीता..!
दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम रही “तीलू रौतेली”! वीरांगना तीलू के अभिनय में वसुंधरा ने दिल जीता..!
(मनोज इष्टवाल)
कत्यूरियों से संघर्ष की गाथा लिखने वाली व कत्यूरियों को गढ़वाल से रामगंगा पार खदेड़ने वाली वीरांगना तीलू रौतेली उस झांसी की रानी से कम नहीं जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे किये थे. अपने मंगेतर पति, पिता भूपू गोर्ला, भाई भक्तु व पत्वा की मौत का बदला लेने के लिए पौड़ी गढ़वाल के चौन्दकोट गढ़ के गढ़पति की यह बेटी व गुराड़गाँव (तल्ला) की इस वीरांगना की कहानी यूँ तो बेहद लम्बी है लेकिन वसुंधरा नेगी की पटकथा, डॉ. सुवर्ण रावत के निर्देशन व वीरेंद्र नेगी के संगीत से सजे इस नाटक को देखने देहरादून के टाउनहाल पहुंचे दर्शकों को निराश नहीं होना पड़ा!
मात्र 15 बर्ष की उम्र में तीलू रौतेली ने चौन्दकोट पिंगलापाखा तक पहुंचे कत्युरी राजाओं व उनके सेनापतियों को अपनी हुंकार और वीरता से न इडियाकोट से कालिंका तक न सिर्फ खदेड़ा बल्कि उन्हें बुरी तरह हराया भी व अपने छीने हुए राज्य को पुन: प्राप्त किया!राजपूताना हुंकार की यह देवी आज भी जब रणभूत के रूप में नाचती है तो कत्युरी वंशजों को उस स्थान से हटना पड़ता है.
यूँ तो “तीलू रौतेली” के सशख्त अभिनय का वसुंधरा ने खूब लोहा मनवाया लेकिन वसुंधरा के डायलॉग डिलीवरी में वह नाट्य मंचन के एक नाट्यकर्मी की मामूली सी कमी जरुर खली! इस रंगकर्मी या नाट्यकर्मी को जब आप मंच पर देखते हैं तब कहीं से भी यह नहीं लगता कि इसने अपने अभिनय के साथ इन्साफ नहीं किया है. वसुंधरा अपने अभिनय की गहराई में उतरकर हमेशा हि उसे जीवंत बनाती है लेकिन सिर्फ डायलॉग डिलीवरी में कहीं न कहीं कुछ क्षणिक सा अखरता जरुर है!
बहरहाल सम्पूर्ण मंचन ने जो वाहवाही लूटी उसका सारा क्रेडिट वसुंधरा की पटकथा, डॉ. सुवर्ण रावत के बेहतरीन निर्देशन के अलावा सभी नाट्यकर्मियों की मेहनत का नतीजा रहा. सभी ने अपने अपने किरदार को बखूबी निभाया. मामूली सी स्टेज सज्जा में परिवर्तन की अव्यवस्थाओं को अगर नजर अंदाज किया जाय तो यह नाटक देहरादून वासियों के दिल में उतर गया. उम्मीद है इसका दुबारा निकट भविष्य में फिर मंचन होगा क्योंकि अब भी दर्शक इसकी सुन्दरता की आत्ममुग्धता में खोना चाहेत हैं.
मंच पर तीलू रौतेली की भूमिका में वसुंधरा नेगी के अभिनय ने दर्शकों का मैन मोहा. वहीँ भूपू रौत के रूप में दर्शन सिंह रावत, मैणा देवी के किरदार में गीता गुसाई नेगी, भक्तु-अनुज कश्यप, पत्वा- धीरेन्द्र शर्मा, रामू रजवार- रविन्द्र रावत, घिम्डू- रमेश ठंगरियाल, शिबू पोखरियाल- अजय सिंह बिष्ट, सुर्जी- लक्ष्मी रावत, बेलु- साधना, देवकी- शेफाली ठंगरियाल, राजा पृथ्वी शाह- हरेन्द्र रावत, राजा धाम शाही- /गुरु गोरीनाथ- अभिशेक मैंदोला, दरबान सिंह- वीरेंद्र अमोला, गायत्री- कुसुम बिष्ट, भवानी सिंह- सुमित भरद्वाज, दरवारी नंदन इत्यादि ने अपनी अपनी भूमिका के साथ पूरा इन्साफ किया है. वहीँ परदे के पीछे नृत्य निर्देशिका- लक्ष्मी रावत पटेल, प्रस्तुती प्रबन्धक- रमेश चन्द्र घिल्डियाल, मंच प्रबन्धक- खुशबु, मंच संचालिका- शर्मिला अमोला, ध्वनि संयोजक- अनुज कश्यप, प्रकाश संयोजन – अभिषेक मैंदोला, मेकअप- शिबेन्द्र सिंह रावत व छायांकन हिमांशु बिष्ट का था!