थोलिंग मठ में पूजा जाते थे बदरीनाथ !
बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति
******** श्रृंखला 5 ********
वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट की कलम से-
भगवान बदरी नाथ का कभी तिब्बत में भी पूजे जाते थै। लोक श्रुति की माने तो भगवान बदरीनाथ जी थोलिंग मठ तिब्बत में भी पूजे थे । भारत के वर्तमान मध्य हिमालय से लेकर तिब्बत के उच्च क्षेत्र तक बदरी पुरी थी । तिब्बत में भी बदरी नाथ जी के होने की लोगों की अपनी मान्यता और धारणा है। हालांकि इसका कोई लिखित डाक्यूमेंन्ट संग्रहीत नहीं है। मगर थोलिंग मठ में भी बदरी नाथ थे इसके लिए एक शोध पूर्व अध्ययन की आवश्यकता है । बौद्ध धर्म भारत में सृजित हुआ । सनातन धर्म में कर्म कांड और अन्य विषयों से इतर महात्मा बुद्ध ने एक विचार दिया । उनके अनुयायियों ने इस पर चलना शुरू किया ।बुद्ध ब्यक्ति को पूजने के पक्ष में नहीं थे । मूर्ति पूजा के पक्ष मे नहीं थे । उनके महापरायण के बाद उनमें आस्था रखने वालों ने बुद्ध के मार्ग पर चलने के लिये ” बौद्ध धर्म ” को स्वरूप दिया । सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म को जीवन में अंगीकृत किया । और बौद्ध के विस्तार के लिए भारत के इस हिमालयी क्षेत्र से प्रयास किया । उनकी पुत्री संघमित्रा और दामाद इसी हिमालय से तिब्बत गये । बौद्ध धर्म को राजा श्रय मिला । मूर्तियों से . कर्मकांड से विलग होने के आदेश मिले ।
भगवान बदरी नाथ जो थोलिंग मठ में भी थे । तिब्बत में बौद्ध धर्म को राजा श्रय मिलने पर वहाँ से वह मूर्ति कहां गयी । कौन कहाँ लाया ? क्या है चवंर गाय की कथा ? भारत में बौद्ध धर्म को राजाश्रय मिलने इसके विस्तार और सनातन धर्म के महा आचार्य भगवान शंकराचार्य का जन्म उनके द्वारा सनातन धर्म को पुन: भारत में आलोकित करने इस हिमालय तक आने . भारत के चार कोनो में चार पीठ जिसमें हिमालय में बदरिका श्रम की स्थापना करने आदि विषयों पर आगे फिर कभी । यदि साक्षात शंकर के अवतार शंकराचार्य की कृपा और भगवान बदरी नाथ जी का आदेश हुआ तो लिखने का लघु प्रयास होगा
“” हर युग में बदरी विशाल
शास्त्रीय मान्यताओं की माने तो भगवान तो भगवान बदरी विशाल पूरे इस हिमालयी क्षेत्र जो हो सकता है तिब्बत तक भी रहा हो युग युग में अलग अलग नामों से रहे हैं । ‘ सतयुग मे बदरी विशाल ** मुक्तिप्रदा **।त्रेता युग में ** सिद्धदा *। द्वापर में ** विशाला **।( भगवान बदरीनाथ को बदरी विशाल सम्भवतया इसी लिए कहते हैं। ) ।और कलियुग में ** बदरीनाथ जी ** के नाम से पूजा जाता है ।
** जय बदरी विशाल