तो क्या भुकुंड भैरव के कारण हुई केदारनाथ की 2013 की जलप्रलय?
(मनोज इष्टवाल)
अब जबकि केदारनाथ आपदा को बीते लगभग पांच बर्ष व्यतीत होने वाले हैं स्थानीय लोगों का मानना है कि वहां की तबाही में भकुण्डी भैरव का कहीं न कहीं नाराज होना शामिल है। हर यात्री केदारनाथ तो पहुंच जाता है लेकिन केदारनाथ से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी तय कर भकुण्डी भैरों के दर्शन करने का साहस नहीं कर पाता क्योंकि केदारनाथ क्षेत्र में कम ऑक्सीजन होने व केदारनाथ तक पहुँचने की थकान तीर्थ यात्री का साहस यहीं दर्शन कर समाप्त कर देती है जबकि पुराणों व जनश्रुतियों के आधार पर बिना भैरों के दर्शन के यह यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। कौन है भकुण्डी भैरव व क्या है इसकी पूरी कहानी आइये आपको बता दें।

भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ से आधा किमी की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर विनाश के हिन्दू देवता शिव के एक गण भगवान भैरव के समर्पित है। 3001 ईसा पूर्व पहले रावल या राजपूत श्री भिकुण्ड ने मन्दिर में इष्टदेव की स्थापना की थी। मन्दिर के इष्टदेव को क्षेत्रपाल या क्षेत्र का संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार जब सर्दियों में बाबा केदार नाथ का मंदिर बन्द कर दिया जाता है तब भैरवनाथ मन्दिर परिसर की रखवाली करते हैं।

भैरवनाथ का यह स्थान केदारनाथ मन्दिर से दक्षिण दिशा की तरफ आधा किमी की दूरी पर स्थित है । ये मूर्तियां भगवान भैरव की हैं जो इसी प्रकार विना छत की रहती हैं । भैरव को भगवान् शिव का ही एक रूप माना जाता है। प्रत्येक शिव व शक्ति पीठों में समस्त देवों के दर्शन के अन्त में भैरों बाबा के दर्शन करने अनिवार्य माने जाते हैं।

केदारपुरी के रक्षक (क्षेत्रपाल) भुकुंट भैरव की पूजा-अर्चना की गई। इस मौके पर बाबा भैरव से की गई गलतियों की क्षमा याचना करते हुए धाम की सुरक्षा की मनौतियां मांगी गई।
पुजारी बागेश लिंग ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। भैरवनाथ की पूजा केवल मंगलवार व शनिवार को की जाती है।
भुकुंट भैरव बाबा केदार के पहले रावल थे। इसके अलावा भुकुंट भैरव केदारनाथ के क्षेत्रपाल देवता हैं। केदारबाबा से पहले केदारनाथ में भुकुंट भैरव की पूजा की जाती है।
बताया जाता है कि आपदा के बाद केदारनाथ में पुनः कपाट खुलने पर बुधवार के दिन हुई पूजा के दौरान भुकुंट भैरव ने अवतरित होकर तीर्थ पुरोहितों को चेताया था। भुकुंट भैरव ने तीर्थ पुरोहितों को सुधरने की नसीहत दी और यह भी कहा कि ऐसा ना हुआ तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम भुगतने पडेंगे, जून में आई आपदा तो केवल संकेत भर थी।
जिसे भुकुंट को केदारनाथ धाम का प्रथम पुजारी बताया जाता है उसकी यह चेतावनी यहां के तीर्थ पुरोहित समाज के लिए थी या पूरे उस हिन्दू समाज के लिए जो यहां तीर्थ यात्रा को सिर्फ और सिर्फ हनीमून स्थल या फिर मनोरंजन का स्थान समझकर यहां पहुंचता है कहा नहीं जा सकता क्योंकि सिर्फ पुरोहित समाज को ही नहीं हमें भी यह बड़ी चेतावनी समझनी होगी कि हम हिन्दू विधि विधानों के साथ किसी भी धाम की यात्रा करें क्योंकि यहां प्रकृति के अनुशासन को बरकरार रखना व धर्म स्थलों की मर्यादा का ख़्याल रखना हमारा कर्तब्य है न कि वहां के पुरोहित या पंडा समाज का। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे अध्याय दुबारा न दोहराये जाएं इसका हमें ख्याल रखना होगा।