तीलू रौतेली के लिए सज रहा है गुराड़ गाँव..! लेकिन "भैर ग्वला भित्तर ग्वर्ला अर्ज पुर्ज कैमा करला…!"
भैर ग्वला भित्तर ग्वर्ला अर्ज पुर्ज कैमा करला…!
(मनोज इष्टवाल)
चौन्दकोट का जब भी जिक्र आता है तो तीन जातियों के बर्चस्व की गाथाएं स्वर्णाक्षरों में इबादत की तरह लिखी दिखाई देती हैं अगर आप पूर्वी नायर से यानि ज्वाल्पा देवी के दूसरे छोर से कंपोलटिया पुल से चौन्दकोट में प्रवेश करेंगे तब आप रिंगवाडस्यूँ में प्रवेश करते हैं जहां रिंगवाड़ी के रिंगवाड़ा रावतों का बर्चस्व ऐतिहासिक पृष्टों पर दर्ज है।
वहीं अगर आप सतपुली के पास मलेथा से चौन्दकोट में प्रवेश करते हैं तब आप करीब पांच किमी आगे चलकर ऊपर चढ़ती चढ़ाई से एकेश्वर पहुंचते हैं जबकि नीचे वाली सड़क जो संगलाकोटी जाती है उसमें सीला- कबरा गांव के ऊपर सिपाही नेगियों का इड़ा क्वाठा (किला) अपनी दास्ताँ का जीता जागता उदाहरण पेश करता है। वहीं एकेश्वर पहुंचते ही गुराड़स्यूँ पट्टी में फैले चौन्दकोट गढ़ के गढ़पति गोर्ला रावतों का वह साम्राज्य दिखाई देता है जिसकी पृष्ठभूमि में भूपु गोर्ला की पुत्री तीलू रौतेली को झांसी की रानी जैसा महान यौद्धा माना जाता है जिसने पूरे साथ बर्ष तक कत्यूरी आक्रांताओं से युद्ध लड़े व जीते भी। आपको बता दें कि गुजरात के मालवा से संवत 817 ई. में गोरला परमार अपने परिवार के साथ आकर गढ़वाल बसे! जहाँ उन्हें चौन्दकोट क्षेत्र का अधिपतित्व दिया गया और साथ ही “रावत” (अकरी) की पदवी भी! अब अकरी पर आप उलझियेगा मत! अकरी उन्हें कहा जाता था जो अपने गढ़ क्षेत्र का कर राज दरबार को देने के लिए बाध्य नहीं थे या फिर जिनसे राजा कर नहीं लेते थे लेकिन उन्हें राज्य विस्तार में राजा के हर हुक्म का पालन करना होता था ! तब से इस जाति का परमार संबोधन हट गया और गोरला परमार की जगह उसके वंशज गोरला रावत कहलाने लगे! ठेठ वैसे ही जैसे असलपाल के वंशज असवाल और लोधी रिखोला के वंशज रिखोला नेगी! हेमदान के पुत्र हंसा हिंदवाण और आशा हिन्दवाण!
(ले.जनरल (अ. प्रा.) जे एस रावत का गुराड़ मल्ला स्थित आवास फोटो- कविन्द्र इष्टवाल)
अब इसी तीलू के गांव गुराड़ में तीलू के इतिहास को जीवंत करने के लिए एक बेटी तीलू सी वीरांगना की पटकथा लेकर आगामी 18 अगस्त को एक बड़ा झलसा करवा रही हैं। वसुंधरा नेगी नामक यह बेटी कुरख्याल गांव की है जिसने अपनी पटकथा से तीलू रौतेली को सर्वप्रथम जीवंत कर राजधानी देहरादून के टाउन हॉल में नाटक का प्रदर्शन कर वाहवाही लूटी।
रंगमंच में रची बसी पहाड़ की ही एक बेटी लक्ष्मी रावत ने इसे देश की राजधानी दिल्ली के श्रीराम सेन्टर में प्रदर्शित कर इसे व्यापक रूप दिया और अब 8 अगस्त को तीलू रौतेली के जन्मदिन पर दिल्ली में गढ़वाल सभा में अजय सिंह बिष्ट व वाईडब्लूसीए में रंगकर्मी संयोगिता ध्यानी इसे नाट्य मंच पर ला रहे हैं। लेकिन रंगकर्मी वसुंधरा नेगी द्वारा यह नाटक ठेठ तीलू रौतेली के गांव गुराड़ में ले जाने की बात आग की तरह पूरे चौन्दकोट में फैली हुई है और उत्सुकता के साथ लोग 18 अगस्त की उल्टी गिनती गिनना शुरू कर रहे हैं। फिलहाल तीलू रौतेली पर कहाँ क्या हो रहा है या क्या हुआ उस से इतर यह लेख गोर्लाओं के उस अहम पर है जिसका हर्जाना उन्हें आज भी भरना पड़ता है।
(तल्ला ईड (ईडा) स्थित सिपाही नेगियों के क्वाठा का एक हिस्सा फोटो- उदय सिंह रावत)
चौन्दकोट गढ़ के थोकदार रहे गोर्ला राजपूतों की वीरता के साथ जाने कितने किससे जुड़े रहे. इन्हीं के सानिध्य में गढ़-नरेश को हरी हिन्दवाण और हंसा (आशा) हिंदवाण जैसे पराक्रमी भड़ मिले लेकिन इन्हीं के वंशजों ने कुछ निरंकुशता भी दिखाई है ..। जिस से त्रस्त होकर आम जनता अपने को बेबस और लाचार समझने लगी थी. और उस पीड़ा को झेलने वाली जनता ने कहना शुरू कर दिया- भैर ग्वला भित्तर ग्वर्ला अर्ज पुर्ज कैमा करला…! यानि द्वारपाल भी गोर्ला, चपरासी भी गोर्ला, बाबू भी गोर्ला और जज भी गोर्ला तो उनके विरुद्ध सुनवाई किस से करवाएं।
हर अति का अंत होता है यही गोरला रावतों के साम्राज्य के साथ भी हुआ एक समय ऐसा भी आया कि चौन्दकोट गढ़ के गढ़पतियों का यह साम्राज्य कब भर्र-भराकर गिर गाया पता भी नहीं चला जबकि एक समय गोर्ला थोकदार की शक्तियां इतनी बढ़ गई थी कि उसने गढ़ नरेश के चाँदपुर गढ़ की तर्ज में चौन्दकोट गढ़ की स्थापना कर डाली और कहा जाता है कि यह गढ़ चांदपुर गढ़ से भी ज्यादक खूबसूरत था।
(दरबार गढ़ परसोली बीरोंखाल में गोर्ला रावतों का क्वाठा फोटो- जगमोहन सिंह रावत परमार)
इन सब राजपूतों का गौरव इतिहास तब धूमिल हो गया जब चौन्दकोट के गढ़पति भूपु गोर्ला के घर पुत्री जन्मी जिसका नाम तीलू रौतेली रखा गया। तीलू रौतेली की शौर्य गाथा के नीचे गोर्ला थोकदारों का वजूद दबकर रह गया और यही कारण है कि वीरता की पराकाष्ठा के रूप में जाने, जाने वाले एक भी गोर्ला थोकदार का जिरह स्वयं गोर्ला वंशजों के पास नहीं है जिन्होंने अपना सीमा विस्तार कुमाऊ के कत्यूरी व चंद वंशज राजाओं की सीमा छीनकार बढ़ाया था।
(तल्ला गुराड़ तीलू रौतेली का गांव फोटो-वसुंधरा नेगी)
इसमें कोई दोहराय नहीं कि ईड़ा चौन्दकोट गॉव के सिपाही नेगियों ने जिस तरह का किला अपने लिए बनाया था तल्ला ईडा में आज भी वह साक्ष्य के रूप में खड़ा है जबकि पूरा गॉव सिपाही नेगी वंशजों से सूना हो गया है।
इन सिपाही नेगियों की बदौलत ही गोर्ला थोकदार ने बहुत सी लडाइयां झेली और यही कारण भी था कि इन्होने तीलू रौतेली की मंगनी सिपाही नेगियों के थोकदार के पुत्र भवानी सिंह से कर दी थी जिसकी मृत्यु कुमाऊ के राजाओं के साथ एक लड़ाई में हो गई और तभी से बाल-विधवा तीलू रौतेली ने कमान अपने हाथ में लेकर न सिर्फ वह क्षेत्र कुमाऊ के राजाओं से छीना बल्कि पूरी फ़ौज को नाकों चने भी चबवाए।
(तल्ला गुराड़ तीलू का खण्डहर क्वाठा जिसमें शोध के दौरान मैं जाने कितनी बार रुका हूँ बर्ष 2000 तक यह घर खूब आबाद था आज इसका यह हाल देखकर बहुत बुरा लग रहा है। फोटो-वसुन्धरा नेगी)
यह घर तीलू रौतेली का बताया जाता है. जिसने बाद तक कई अच्छे अफसर दिए हैं लेकिन यह घर मल्ला गुराड़ जाने के रास्ते में निर्मित है और यह ज्यादा पुराना निर्मित भी नहीं लगता..! यह बमुश्किल सौ बर्ष पुराना है! जबकि तल्ला गुराड़ में आज भी क्वाठा है जिसे लोग तीलू रौतेली का क्वाठा मानते हैं। बर्षों पहले मैंने वहां का भ्रमण किया था और वह अंधेर गुफ़ा की जेल भी देखि थी जहाँ हैड-हिन्गोड़ पर दुर्दांत कैदियों को बाँधा जाता था वह हैड-हिंगोड आज भी है कि नहीं कह नहीं सकता। जन मान्यता ही कि थोकदारों के अहम के कारण ही गढ़वाल का विनाश हुआ। 1802 का प्रलयकारी भूकम्प तो बाद की बात है उस से पहले ही यहां के गढ़पति झीर्ण शीर्ण हो गए थे। 1804 में ऐसा भूकम्प आया कि पूरा चौन्दकोट गढ़ तहस नहस होकर खण्डहर हो गया जिसके बिशालकाय पत्थर आज भी नौगांव के नीचे गदेरा में अलग से दिखाई देते हैं। कहते हैं कि चाहे गोर्ला हों या सिपाही नेगी दोनों ही थोकदार अपने समकक्ष किसी अन्य थोकदार को नहीं मानते थे। गर्व और अभिमान की यह परकाष्ठा इतनी थी कि ये लोग पुत्री के जन्म होते ही उसे दफना देते थे ताकि उन्हें किसी के आगे झुकना न पड़े। तीलू के वंशज गुराड़ से आकर बीरोंखाल के नजदीक पड़सोली में या परसोली में आकर क्यों बसे उसके पीछे भी यही कहा जाता है कि तीलू की मौत के बाद उनके भाईयों ने यहाँ से लौटना उचित नहीं समझा और यही गढ़ (दुर्ग) बनाकर रहने लगे! परसोली के थोकदार जगमोहन सिंह रावत परमार बताते हैं कि परसोली स्थित दरबारगढ़ जहाँ 17वीं सदी के अंत में निर्मित हुआ वहीँ इसे पाने के लिए तीलू रौतेली की मौत के बाद उसके वंशजों में स्वामित्व की लड़ाई शुरू हुई ! हिमतु गोरला और जीतू गोरला दो भाइयों के आज भी यहाँ पंवाडे व गीत गाये जाते हैं! जिनमें वर्णन मिलता है कि दोनों भाइयों में ऐसा मनमुटाव हुआ कि उसके लिए दोनों की तलवारें निकल गयी व धुमाकोट से 5 किमी. दूरी पर दिगोलीखाल में संघर्ष में जीतू गोर्ला की मौत हो गयी! आज भी उस स्थल को “जीतू रावत का थौळ” नाम से जाना जाता है जबकि हिमतु रावत के वंशज परसोली के दरबार गढ़ क्वाठा के अधिकारी बने व जीतू के दरबार गढ़ से बाहर के!
यह प्रकरण तीलू रौतेली के बलिदान के बाद का माना जाता है क्योंकि तीलू रौतेली की नहाते वक्त रामु रजवार नामक कत्यूरी द्वारा गर्दन काट देने की घटना से ये थोकदार इतने क्षुब्ध हुए कि इन्होंने निश्चित कर दिया कि अब ये बेटियां पैदा नहीं होने देंगे। कहते हैं जिनमें किसी का भी साहस नहीं हुआ कि तीलू रौतेली की लाश नदी से बाहर निकाल सकें जिसके कारण तीलू की आत्मा रणभूत बन हर गोर्ला के घर नाचने लगी। कहते हैं कि तीलू की माँ मैणा देवी ने तब गोर्ला वंशजों को श्राप दिया कि जिस उम्र में मेरी पुत्री मरी और तुम उसकी रक्षा की जगह विजय जश्नन मनाते रहे उसी उम्र में हर घर से लाश उठे। अब इसमें कितनी सत्यता है यह कहना कठिन है क्योंकि गढ़वाल के इतिहास की ज्यादात्तर गाथाएं मुंह जुबानी हैं जिनमें भड़ लोधी रिखोला की माँ का श्राप दिया भी शामिल है जिसने धोखे से लोधी रिखोला के मारे जाने पर श्राप दिया था कि “इस भूमि में अब कोई भड़ पैदा न हो।” कहते हैं इसके बाद वास्तव में गढ़ भूमि में कोई भड़ पैदा नहीं हुआ। वहीं यह भी कहा जाता है कि मैंणा देवी का श्राप भी गोर्ला राजपूतों में बर्षों तक रहा। और उसी की एक कड़ी में यह कहावत भी शामिल हुई कि “भैर गोर्ला भित्तर गोर्ला, अर्ज पुर्ज कैमा करला।”
फिलहाल हमें इतिहास के कई सुनहरे वो पन्ने तलाशने होंगे जिन्हें ब्रिटिश गढ़वाल में शासन करने के दौरान अंग्रेज मिटा चुके हैं। अब इन गढ़ के अवशेषों को कौन संग्रहित करे यह सोचने वाली बात है। क्या यह कर्तब्य गोर्ला थोकदार या सिपाही नेगी थोकदारों के वंशजो का नहीं है कि वे अपनी पुरखों की शौर्य गाथा को सम्भालकर रखने के लिए एक जुट हों। अब जहाँ अकेले चौबटाखाल विधान सभा में गोर्ला रावतों के 63 गॉव हैं अगर इन 63 गॉव की ही कोई समिति बनाई जाय तो गुज्डू गढ़, गवनी गढ़ से लेकर गोर्लाओं द्वारा स्थापित अन्य गढ़ों के संरक्ष्ण की बात हो सकती है। और ठीक उसी तरह सिपाही नेगियों की भी।
(इतिहास के आखरों में क्या कुछ सत्यता रही वह समस्त जानकारी या यह समस्त जानकारी सच ही हो कहा नहीं जा सकता लेकिन किंवदन्तियों के आधार पर यह तमाम बातें शोध के बाद सामने ला रहा हूं इस अनुरोध के साथ कि आपके पास भी कोई जानकारी हो तो शेयर करें ताकि तर्क वितर्क से सारी बातें और अधिक साफ हो जाएं।)
बहुत सुंदर लेख सर
धन्यवाद सती जी।
Excellent!!!
शुक्रिया विपुल जी।
तीलू रौतेली के युद्धों के बारे मे थोड़ा विस्तार से अध्ययन कर लोगों तक पहुचाने का कष्ट करें
जी जरूर।
Sir aapk pass aager ringwada rawat k bare me bi jankari h to kirpay use bi saja kre aapki badi kirpa hogi
जी कोशिश करूँगा।
लेख बहुत ही सुंदर है किंतु जाने किस कारण वश यह लिखा गया कि गोर्ला रावत और सिपाही नेगी वंशजो ने तीलू रौतेली की वीर गति के बाद कन्या के जन्म को अभिशाप समझ लिया ऐसा सिर्फ इस पोस्ट से ही ज्ञात हुआ तभी लगा कि कही गलत मंशा से तो नही लिखा गया । बचपन से हमने अपने परिवार में कन्या को पूजा ही है हर रूप में चाहे बेटी बहन माँ हो या बीवी ।
गोर्ला रावतों से रिश्तेदारी और संबंध आज भी कायम है और वहां भी कन्या को देवी स्वरूप ही दर्जा दिया जाता है । मैं भी सिपाही नेगी वंश का ही हूँ और इड़ा दुर्ग के बाद हमारे कुछ परम पूजनीय राजपूत पितरों ने घेरवा गांव का रुख किया जो आज तहसील सतपुली से लगभग 20 km दूर है दुधारखाल रोड पर ।शेष फिर कभी किन्तु वीरता का वर्णन करे कोई भी भ्रामक बात न लिखे चूंकि वंश बेल निरंतर बढ़ ही रही है गोर्ला रावत और सिपाही नेगी थोकदार गढ़वाल की ।
ये सत्य है अतुल नेगी जी ! चाहें तो अपने दादा की उम्र के या दादाजी/दादी जी से इसकी पड़ताल कर सकते हैं!
bahut sundar lekh likha hai. main ek request karna chahta hu ki jab bhi iss terh ke lekh likhe plz google map location jaroor daal de , isse jageh ki jaankari achi milegi. Thanks
हिम्मत नेगी जी आपकी बात पूरी नहीं आई! इस तरह के लेखों का मुझे क्या करना होगा? आपका लिखा सिर्फ ये पहुंचा मुझ तक -bahut sundar lekh likha hai. main ek request karna chahta hu ki jab bhi iss terh ke lekh likhe plz…
Manoj ji aapka bahut bahut dhanywad is aitihaasic jaankari Ko sajha karne ke liye.
शुक्रिया जी।
ईष्टवाल जी बहुत ही सुंदर जानकारी दी आपनी
धन्यवाद जी।
Kanda mlla Se tilu roteli ka kya touch h……
Veha unki Marti b h Aur Mela b hota h specly tilu roteli ke nam pr
Vo Ek Mhan virangna thi unke bare me stik jankari Hmare pass nhi h…
ji दुर्गेश जोशी जी, तीलू के वंशज कांडा में भी रहते हैं! और यहीं उनका अंतिम युद्ध भी था! शायद कांडा और पुरसोली दो जगह उनके आवास रहे! व्यक्तिगत रूप में तीलू का जन्म स्थान गुराड़स्यूं माना जाता है!