तीन साल बाद भी बौंसाल पुल के वही हाल..! पूर्व मुख्यमंत्री के निर्देशों की वह फाइल जाने कहाँ गुम हुई!
तीन साल बाद भी बौंसाल पुल के वही हाल..! पूर्व मुख्यमंत्री के निर्देशों की वह फाइल जाने कहाँ गुम हुई!
(मनोज इष्टवाल)
सच तो यह है कि पहाड़ में रहने जीने वाला मानस व उसका हृदय पहाड़ सा ही है और अगर ऐसा नहीं होता तो क्या उसे रोजमर्रा की जिन्दगी को दांव पर लगाने वाले इस पुल का ध्यान नहीं आता! इस बार गीता जब दुबई से अपने गाँव के लिए निकली थी तो वह मन ही मन खुश थी कि चलो मार्च 2015 की उसकी वह भागदौड़ सफल हो ही गयी होगी जिसमें उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से गुजारिश कर बौंसाल पुल मरम्मत के आदेश जारी करवाए थे लेकिन यह क्या जब तीन साल बाद वह उसी पुल से होकर गुजरी तो पाया इसकी हालत तो बद से बदत्तर है!

ज्ञात होकि गीता डोभाल चंदोला का नाम तब सुर्ख़ियों में समाज सेवा में आया था जब 2013 में केदार आपदा के लिए वह दुबई से केदारनाथ के समीपवर्ती गाँव पहुंची थी व वहां के कुछ बच्चों की पढ़ाई का खर्च वहन करने की बात कही थी! गीता तब से लेकर लगातार समाजसेवा करती आ रही है ! वह अब एक बिशेष मुहीम के तहत मेंटली डिसऑर्डर लोगों के लिए काम कर रही है व गरीब असहाय लोगों को निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएँ देती आ रही है!

गीता चंदोला जब इस बार अपने पैत्रिक गाँव मलाऊ असवालस्यूं उसी पुल से होकर गयी जिसके मरम्मत के आदेश की फाइल वह तीन साल पहले मुख्यमंत्री से विभागों तक पहुंचाकर दुबई लौट गयी थी और उसे शुकून था कि चलो बौंसाल का यह पुल पूरी असवालयूँ को जोड़कर कई छोटे कस्बों से होता हुआ इसका सडक मार्ग पौड़ी पहुँचता है अब तक बनकर तैयार हो गया होगा! लेकिन जब तीन साल बाद उसी पुल से होकर वह गुजरी तब उन्होंने बिना एक शब्द लिखे पुल के हालातों का बयान सोशल साईट पर साझा किया! गीता का कहना है कि क्या जिस परदेश का निर्माण ही पहाड़ के लिए हुआ है वहां पहाड़ियों के लिए हमारी सरकारों के पास सिर्फ जान खतरे में डालकर निर्वहन करना ही रह गया है! एक ओर सरकार हर दिन पलायन को रोकने की कसरत में जुटी पड़ी है ऐसा उसके विज्ञापनों वायदों और भाषणों में नजर आता है लेकिन लगभग 100 गाँवों को जोड़ने वाले इस झूलापुल पर तीन साल से तीन पैंसे का काम न होना आखिर क्या इंगित करता है?

गीता चंदोला कहती हैं यह सचमुच शर्मसार कर देने वाली बात है कि सरकार के कारिंदे ये अफसर आखिर ऐसी कौन सी डस्टबिन रखते हैं जिसमें समाजिक सरोकारों की ऐसी सभी फाइलें दफन हो जाती हैं जिनसे आम जनता को सुख सुविधा मिल सके! उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहते हुए कहा कि सिर्फ एक गीता चंदोला ही इस प्रकरण को लेकर व्यथित नहीं है बल्कि इतने गाँव के लोग दुखी हैं ! कहीं न कहीं एक न एक दिन सरकारी महकमा इस ताक पर बैठा नजर आ रहा है कि कोई दुर्घटना हो तब बड़ा बजट मिले तब जाकर पुल की मरम्मत का कार्य प्रारम्भ करें! गीता कहती हैं वह इस बार फिर मुख्यमंत्री से मिलने का मन बना रही हैं इस उम्मीद के साथ कि यह पुल दुर्घटना का सबब बनने की जगह सुगमता का सबब बने!