तीन तलाक पर रंग लाया सायरा बानो का संघर्ष!
तीन तलाक पर रंग लाया शायरा बानो का संघर्ष…!
(अवधेश नौटियाल)
उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। उनकी शादी 2001 में हुई थी और 10 अक्टूबर 2015 को उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। अर्जी में शायरा ने कहा था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने शायरा की मांग मानते हुए तीन तलाक को अंसवैधानिक घोषित कर दिया है। केंद्र की मोदी सरकार हमेशा से तीन तलाक के खिलाफ रही है। ऐसे में शायरा को मिले इंसाफ को राजनीतिक तौर पर भी कोई खतरा नहीं है। शायरा के साथ संघर्ष में आफरीन रहमान, अतिया साबरी, गुलशन परवीन और इशरत जहां जैसी महिलाएं भी शामिल रहीं।
तीन तलाक मामले में 10 महत्वपूर्ण तथ्य
1. सुप्रीम कोर्ट ने के तीन जजों जस्टिस कुरियन, जस्टिस जोसेफ, जस्टिस नरीमन और जस्टिस ललित इन तीनों ने बहुत से तलाक को गैर संवैधानिक और मनमाना करार दिया और इसे खारिज कर दिया। इन तीनों जजों ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है।
2. वहीं चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। हालांकि दोनों जजों ने माना कि यह पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनना चाहिए। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा।
3. तीन तलाक के खिलाफ से आवाजें हमेशा उठती रहीं हैं, लेकिन कथित तौर पर धर्म से जुड़ा मसला होने की वजह से किसी राजनीतिक दल या सरकार ने इस पर कभी खुला स्टैंड नहीं लिया। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 7 अक्टूबर, 2016 को राष्ट्रीय विधि आयोग ने जब इस मसले पर लोगों की राय मांगी तो इस मुद्दे पर देश में एक नई बहस की शुरुआत हुई
4. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की। बाद में इससे संबंधित छह अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुईं जिनमें से पांच में तीन तलाक को खत्म करने की मांग की गई। तीन तलाक के विरोध और पक्ष में दलीलें रखी गईं। केंद्र सरकार ने तीन तलाक को महिलाओं के साथ भेदभाव बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की।
5. 30 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि इससे जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ करेगी। अदालत सभी पहलुओं पर विचार करेगी। अदालत ने जोर देकर कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता। कोर्ट ने सभी संबधित पक्षों से लिखित में अपनी बात अटॉर्नी जनरल के पास जमा कराने को कहा।
6. इस केस को समानता की खोज बनाम जमात उलेमा-ए-हिंद नाम दिया गया। रोचक बात यह रही कि केस की सुनवाई करने वाले पांचों जज अलग-अलग समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे एस खेहर सिख समुदाय से हैं, तो जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई हैं। आर. एफ नरीमन पारसी हैं तो यू.यू. ललित हिंदू और अब्दुल नजीर मुस्लिम समुदाय से हैं।
7. 11 मई 2017 को इस मसले पर संविधान बेंच ने सुनवाई शुरू की। सुनवाई लगातार 6 दिन चली। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच जोरदार बहस देखने को मिली और अदालत की ओर से भी काफी दिलचस्प टिप्पणियां की गईं। कुरान, शरीयत और इस्लामिक कानून के इतिहास पर तगड़ी बहस हुई। साथ ही संविधान के अनुच्छेदों पर विस्तार से दलीलें पेश की गईं। 6 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 18 मई को कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
8. ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है। कुरआन में तलाक के लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है। पैगंबर की मौत के बाद हनीफी में जो लिखा गया, वह बाद में आया है। उसी में तीन तलाक का जिक्र आया है। कुरआन में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है। कुरआन इस्लामिक शास्त्र है।
9. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है। उन्होंने इसे आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म से की। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में आस्था है कि राम अयोध्या में पैदा हुए हैं। ये आस्था का विषय है। उन्होंने यह भी कहा कि तीन तलाक पाप है और अवांछित है, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए।
10. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कपिल सिब्बल से पूछा- क्या यह संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय यह अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी? कोर्ट ने पूछा कि क्या सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें। कोर्ट ने कहा था कि भले ही इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं में तीन तलाक को वैध बताया गया हो, लेकिन यह शादी खत्म करने का सबसे घटिया और अवांछनीय तरीका है।
वहीँ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार को ट्वीट कर तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते हुए साइरा बानो सहित समस्त मुस्लिम बहनों को बधाई दी है। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि बहन साइरा बानो ने महिला समाज के लिए एक बड़ी जीत हासिल की।