तम्बोला घुघूती के बच्चों का बदला लेते हुए सूर्यवंशी गोल्जू देवता ने ऊँचा डोटी गढ़ उजाड़ डाला! अपनी वंशावली में 22 वें राजा हुए गोरिल या गोलू राई..
तम्बोला घुघूती के बच्चों का बदला लेते हुए सूर्यवंशी गोल्जू देवता ने ऊँचा डोटी गढ़ उजाड़ डाला! अपनी वंशावली में 22 वें राजा हुए गोरिल या गोलू राई..
(मनोज इष्टवाल)
कुमाऊं मंडल का चमत्कारी देवता गोरिल/गोल्जू कितना न्याय प्रिय रहा यह हम सब जानते हैं. अक्सर हम चम्पावत, चितई और घोडाखाल के तीन मंदिरों के बारे में जानकारी ही इतिश्री कर देते हैं कि गोल्जू के ये तीन स्थान हैं लेकिन इतिहास के पन्ने पलटते- पलटते आप जब गोल्जू पर पूरे मनोयोग से कार्य प्रारम्भ करते हैं तब पतान लगता है कि गोरिल/गोलू/गोल्जू/ग्वेल सहित दर्जनों नामों से पुकारे जाने वाले गोरिल को उच्च हिमालयी से लेकर मध्य हिमालयी क्षेत्र के सभी लोग पूजते हैं. चाहे असम मेघालय, शिलोंग हो या फिर गढ़ कुमाऊं हिमाचल नेपाल व जम्बू कश्मीर! फर्क इतना आया कि इस न्याय प्रिय देवता के हर स्थान पर नाम बदलते रहे जिन्हें संजोने की आज तक इतिहासकारों ने जरुरत महसूस नहीं की.
गोरिल देवता की वंशावली में उनके दादा हलराई पिता झलराई व माँ कलिंका व छ: अन्य माँ का जिक्र है. हर कदम पर बदलते इतिहास की अपभ्रंशता ने अवश्य ही यहाँ इतिहासकारों के लिए परेशानी पैदा की होगी. लेकिन इमानदारी से कहें तो गोरिल देवता पर कार्य करने का इमानदार प्रयास आज तक किसी भी इतिहासकार ने नहीं किया तभी तो जितनी किताबें उठाओ सब में एक से सन्दर्भ मिलते हैं और चुनिन्दा कुछ मंदिर!
गोरिल की जागरों को कभी किसी ने फोकस नहीं किया और यही कारण भी रहा कि हम उस गूढ़त़ा से लिख नहीं पाए. यूँ भी गढ़-कुमाऊं का इतिहास या उस से सम्बन्धित जितने भी लोक कथाएं दन्तकथाएं प्रचलित थी वे 1797 से पहले सिर्फ भाट, चारण, भद्दी, या गुनिजन आवजी के मुखार्बिंदु से बहकर एक सदी से दूसरी सदी तक टहलती रही. अंग्रेजी लेखक जी ए गरिएर व अटकिन्सन ने तत्कालीन बीए पास बृजमोहन घिल्डियाल के माध्यम से इस बिखरे हुए इतिहास को लिपिबद्ध या कलमबद्ध करने का जिम्मा उठाया और उसके बाद जो हमें मिला वह लगातार मिलता रहा.
एक जागर जोकि टिहरी रियासत में गाई व बजाई जाती थी जिसमें गोल्जू देवता को नचाया खिलाया जाता था या कहें उनकी आत्मा को अवतरित किया जाता था उसमें तम्बोला नामक घुघूती का बर्णन आता है जो जम्बू द्वीप से चलकर गोरिल चौड़ (चम्पावत) आती है जहाँ गोलू देवता का मंडोला था वहीँ रूईणी वृक्ष में वह अपना आवास बनाकर रहना शुरू कर देते है. इस पक्षी से गोरिल देवता को इतना प्यार होता है कि वे उसे अपनी धर्मबहन बना देते हैं.
(दिपायल/डोटी गढ़ के गोल्जू मंदिर की बटुकनाथ पूजा)
अपना घोंसला बनाकर अब तम्बोला घुघूती उसमें अंडे देती है. फिर उसके बच्चे होते हैं जिन्हें वह अपनी चोंच में पाणी लाकर पिलाती है बाजू में दबाकर लाया दाना चुगाती है. अब वे घोंसलें से छोटे छोटे पंख भी फडफडाने लगते हैं. गोरिल अपने भांजों को अपनी जां से ज्यादा मानता है.
एक दिन जब तम्बोला-घुघूती बच्चों के लिए दाना लेने गयी होती है तब डोटीगढ़ नेपाल के ग्वाले आकर रुईणी के पेड़ में उन बच्चों का कलरव सुनते हैं. वे उदंडी घोंसला उजाड़ देते हैं व बच्चों को वहीँ पटकर मार डालते हैं. जब तम्बोला घुघूती आकर अपनी बच्चों को मृत पाती है तब वह खूब रोती बिलाप करती है. उसके आंसू गोलू देवता के त्रिशूल में पड़ते हैं. गोलू देवता तम्बोला से बोलता है कि आखिर ऐसी किसकी शामत आ गयी जिसने मेरी बहन को इस तरह रुलाया है.
(जीवन चंद जोशी (घोड़ाखाल गोलू मंदिर के पुजारी परिवार) गोल्जू /बटुक भैरव मंदिर डोटी गढ़ नेपाल में)
घुघूती अपनी ब्यथा सुनाती है और सूर्यवंशी गोरिल देबता बदला लेने डोटी गढ़ आ धमकता है. राजा व उसके द्वारपाल सफ़ेद घोड़े में सवार होकर आये इस नौजवान का दुखड़ा सुनने की जगह उसे दुत्कारते हैं तो गोरिल का गुस्सा भड़कजाता है. भयंकर युद्ध छिडता है और गोल्जू ऊँचे डोटी गढ़ को तहस-नहस कर देता है.
गमशारी का घाम साधने के बाद गोरिल जब वापस गोरिल चौड़ पहुँचता है तब वह अपने कलश से अमृत जल छिडककर तम्बोला घुघूती के बच्चों को जीवित करता है. तब से गोरिल महिलाओं की फ़रियाद पहले सुनता है और उनके साथ हुए अन्याय के लिए अन्यायी को उतना ही कठोर दंड देता है.
(डोटी गढ़ नेपाल के भग्नावशेष)
गोरिल देबता की दुर्लभ वंशावली आखिरकार अपने शोध से मैं जुटा पाया हूँ. क्योंकि आज तक हम सब सिर्फ गोरिल की माता कालिंका, भाई कलुवा, हरुवा, छ; सौतेली माँ, दादा हलराई और पिता झलराई के बारे में ही जानते थे जबकि उनकी वंशावली में श्रृष्टि निर्माण के समय से लेकर वर्तमान तक का दृश्य परिलक्षित होता है. उनकी वंशावली इस प्रकार है-
- उन्वाकार (ओंकार), 2- ध्वान्कार, 3- धुमियाकार, 4- बेकरतार, 5- श्रृष्टिकरतार, 6- अग्निराई, 7-शीशराई, 8- कंसराई, 9- सूरजमल, 10- कटारमल, 11- दूधराई, 12- उदराई, 13- गोपीपाल, 14- पृथ्वीपाल, 15- सिलराई, 16- पिलराई, 17- आसवराई, 18- कासवराई, 19- गौतम राई, 20- हालू राई (हलराई) 21- झालूराई (झलराई) 22- गोलू राई (गोरिल/गोल्जू/ग्वेल/ग्वल)
उनकी माँ का नाम हम किताबों में कलिंका पढ़ते आये हैं. या फिर कई जागरों में भी उन्हें कालिंका कहा गया है लेकिन यहाँ उन्हें माता कलंदरा नाम से पुकारा गया है. विगत 14 जून 2016 को दिपायल (नेपाल) के ऊँचे टीबे में स्थित डोटी गढ़ के खंडहरों तक हमारी टीम पहुँचने में कामयाब रही जहाँ आज भी गोल्जू को बटुकनाथ भैरव के रूप में पूजा जाता है.
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में॥
जै गुरु-जै गुरु
माता पिता गुरु देवत
तब तुमरो नाम छू इजाऽऽऽऽऽऽ
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में॥
तै बखत का बीच में,
संध्या जो झुलि रै।
बरम का बरम लोक में, बिष्णु का बिष्णु लोक में,
राम की अजुध्या में, कृष्ण की द्वारिका में,
यो संध्या जो झुलि रै,
शंभु का कैलाश में,
ऊंचा हिमाल, गैला पताल में,
डोटी गढ़ भगालिंग में…
गोरिल देवता का कुछ इस तरह का आवाहन किया जाता है.