ढाई सौ लोग रोज कर रहे हैं पहाड़ से पलायन! वोटर लिस्ट से एक साल में हेट डेढ़ लाख से ज्यादा लोग..!

(मनोज इष्टवाल)
चकबंदी करेंगे या पलायन रोकेंगे जैसे नारों से अजीज आ चुके पहाड़ी समाज के मुट्ठी भर लोग अब इन बातों को उन्ही हवाई किलों के सामान समझते हैं जिन्हें सब्जबाग़ के तौर पर चुनाव के दौरान पार्टियां भोंपू से लेकर घोंपू तक चिल्लाते चीखते दिखाई देते हैं. सचमुच अगर आंकड़ों पर नजर डाले तो उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों से बदस्तूर हो रहे पलायन आपकी आँखों में आंसू ला देते हैं!
निर्वाचन आयोग से प्राप्त जानकारी के आधार पर विगत एक बर्ष में अर्थात अक्टूबर 2016 से सितम्बर 2016 तक जो आंकड़े सामने आये हैं वे वास्तव में बेहद चौंकाने वाले हैं!
इस एक बर्ष की अवधि में उत्तराखंड से 1,57, 672 लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाये गए जबकि 11,704 डुप्लीकेट पाए गए हैं. वहीँ 9,822 नाम शिफ्ट किये गए हैं! कुल नए नाम 3,13,096 वोटर लिस्ट में चढ़े हैं जो ज्यादात्तर मैदानी भागों से हैं. पहाड़ से सबसे ज्यादा नाम वोटर लिस्ट से हटने से यह चिंता स्वाभाविक है कि विगत बर्षों से अंधाधुंध पलायन अभी भी जारी है. और प्रतिदिन 246 लोग पहाड़ से पलायन कर रहे हैं. इस एक साल में कुल 56, 148 मृत्यु हुई हैं व प्रतिदिन मृत्यु का आंकडा 135 है!
अब तक लगभग 17 लाख लोग सीमांत क्षेत्रों व जनपदों से पलायन कर चुके हैं जो यकीनन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। ये आंकड़े इन 17 बर्षों के राज्य निर्माण के बाद बड़ी तेजी से बढे हैं. पहाड़ के लिए बने राज्य ने सचमुच इन 17 बर्षों में पहाड़ ही खाली करवा दिया. जिससे साफ़ तौर पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पहाड़ के लिए जितनी भी सरकारें अब तक आई हैं सारी नकारा साबित हुई! वहीँ पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की यह बात आज भी जेहन में घूमती है कि उन्होंने आखिर क्यों कहा था कि “उत्तराखंड उनकी लाश पर बनेगा”?