डिजिटलाइजेशन से आपको नींद नहीं आती! पुस्तकें पढ़कर नींद आ जाती है- मुन्ना सिंह चौहान
देहरादून 8 जनवरी 2017 (हि. डिस्कवर)
“उनके हिस्से की धूप” व “अलबेली चमेली” नामक दो पुस्तकों का एक साथ लोकार्पण कर जहाँ एक प्रकाशक के रूप में समय साक्ष्य ने हिम्मत जुटाई वहीँ लेखिका सुनीता चौहान ने कहानियों के संग्रह को दो हिस्सों में बाँट माना अपना बचपन अलग रखा हो व यौवन से लेकर वर्तमान तक अलग!
14 कहानियां “उनके हिस्से की धूप” कहानी संग्रह में गयी जबकि 19 कहानियां बाल पोषित कहानियों का एक ऐसा आवरण है जो आपको आपके बचपन के पल ताजा करने में सहायक सिद्ध होती नजर आती हैं, बशर्ते की स्टोरी टेलर के रूप में कैलाश कंडवाल जैसा शख्स हो! उनके हिस्से की धूप उन संवेदनाओं की पोटरी है जो भौतिकी के बदलते परिवेश में इंसानियत की तश्वीरों को उकेरती चली जाती है!
“अलबेली चमेली” में जितनी भी कहानियां हैं वे सुनीता चौहान ने उन आभावों से जूझते नौनिहालों को समर्पित की हैं जो सामाजिक त्रिष्कारों की परिणति कही जा सकती है अब चाहे उनमें कूड़ा बीनने वाले हों या फिर वे अनाथ जिनको ये स्वयं पता नहीं होता कि उनका बाप-कौन है व माँ कौन!
सुनीता चौहान लिखती हैं – निशांत नियति और उन सभी बच्चों को जो अभावों से जूझते हुए एक अलग मुकाम बनाने में कामयाब हो जाते हैं, जिनको वही सभी समाज पलकों पर बिठाता है जी कभी उन्हें हे दृष्टि से देखता था! कचरा बीनते या जूठन धोते हाथ जब पेन-कापी थामते हैं तब उनको देखकर जिस ख़ुशी की अनुभूति होती है उस अहसास को शब्दों में बयान करना मुमकिन नहीं! कुछ ऐसी ही छोटी-छोटी कोशिशें मेरी जिन्दगी का हिस्सा बन गई…..!
पुस्तक का लोकार्पण करते हाथों में चकराता क्षेत्र के विधायक मुन्ना सिंह चौहान, पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, साहित्यकार वीणापाणी जोशी, कथाकार जितेन ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत व लेखिका सुनीता चौहान मौजूद रहे! सुप्रसिद्ध लेखिका बीना बेंजवाल ने मंच संचालन में जिस चातुर्य और शब्दों का घालमेल किया वह लाजवाब था!
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने जहाँ साहित्यिक चर्चा में सुनीता चौहान के क्षेत्र की लिपि पर बात रखते हुए कहा कि जौनसारी लिपि का होना अपने आप में अद्भुत है वहीँ कथाकार जितेन ठाकुर ने सुनीता चौहान के बाल कहानी संग्रह अलबेली चमेली की कहानियों को ज्यादा तबज्जो देते हुए कहा कि वह मर्म छूने को काफी हैं! वरिष्ठ साहित्यकार बीणापाणी जोशी ने सुनीता चौहान के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने उस लोक को छुवा जो वर्तमान में आँखों के आगे धुंधला होता चला जा रहा है!
मुख्य अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए विकास नगर क्षेत्र के विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने जौनसार बावर क्षेत्र के साहित्यकार रतन सिंह जौनसारी की रिक्तता का आभास कराते हुए कहा कि सुनीता चौहान की इन पंक्तियों ” नन्हीं हथेली में सिमटी है कल की तकदीर, कुछ में साफ़ दिखती है मगर कुछ में धुंधली है तस्वीर” का उदाहरण देते हुए कहा कि ये दुनिया भर में सबसे ज्यादा बिकने वाली लेखक की किताब से भी बढ़कर हैं !
शायद लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की उन पंक्तियों की तरह ये भी अजर अमर हों जो उन्होंने बच्चों को समर्पित माँ के बोलों में उकेरी हैं और वे अमर बन गई! ” तेरी गुंदक्याळई हत्युं की मुठयूँ मा मेरा सुपिन्या बुज्यान!…मेरा सुपिन्या बुज्याँन! (तेरे नर्म हाथों की मुट्ठी में मेरे सपने बंद हैं! ..मेरे सपने बंद है!)
मुन्ना सिंह चौहान ने एक बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि किताबें डिजिटलाईजेशन होकर मोबाइल लेपटॉप या कम्प्यूटर में बंद हो गयी हैं! जिन्हें जहाँ मर्जी खोलो और पढो! क्या ऐसा डिजिटलाईजेशन महत्वपूर्ण है या फिर मैन्युअल ! यानि किताबें..! उन्होंने कहाँ डिजिटलाइजेशन आपको सोने नहीं देता जबकि किताबें पढ़कर आप भरपूर नींद सोते हैं और वह आपके तन-मन को स्वास्थ्य बनाए रखती हैं!
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने सुनीता चौहान के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह बेहद विलक्षण है कि दो किताबें एक साथ प्रकाशित कर समयसाक्ष्य व सुनीता चौहान ने बड़ी हिम्मत जुटाई है ! उनकी नजर में बच्चों की कहानियां ज्यादा बेहतरीन हैं! वे अपनी बातों को सरलता से रखते हुए बोले कि चाहे पुरुष हो या महिला अगर वह इंजिनियर है तो उसे इंजिनियर ही बोलेंगे फिर लेखक से महिला लेखिका कैसे हो जाती है यह समझ से परे है! उन्होंने उम्मीद जताई है कि सुनीता चौहान की इन पुस्तकों का सन्दर्भ आने वाले समय में कई लेखक साहित्यकार लेंगे साथ ही उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी सीनियर लेखक को आज भी पुस्तकें अपने डीएम पर प्रकाशित करनी पढ़ रही हैं जबकि यह उत्तराखंड सरकार के भाषा संस्थान जैसे माध्यमों से प्रकाशित होनी चाहिए थी!
पुस्तक लोकार्पण में भारती पांडे , नीलम प्रभा वर्मा, श्रीमती जौनसारी, रानू बिष्ट, उमा जोशी, डॉ.मधु थपलियाल, कान्ता घिल्डियाल, कल्पना बहुगुणा, गीता गैरोला, पूनम नैथानी, मंजू भट्ट, रमाकांत बेंजवाल, सुशील उपाध्याय, सुरेंद्र पुंडीर, दिनेश कंडवाल, मनोज इष्टवाल, प्रवीण भट्ट, कलम सिंह चौहान, माया सिंह चौहान, मुकेश नौटियाल, दिनेश जोशी, सुंदर बिष्ट सहित कई साहित्यकार व पत्रकार मौजूद रहे!