“डांडू का जातरा मेरी बिजुमा बंठिया”  गीत का पर्वत क्षेत्र के जखोल गाँव से सम्बन्ध! (ट्रेवल लॉग)

 “डांडू का जातरा मेरी बिजुमा बंठिया”  गीत का पर्वत क्षेत्र के जखोल गाँव से सम्बन्ध! (ट्रेवल लॉग)

(मनोज इष्टवाल)
यात्राएं सिर्फ मनोरंजन का साधन बने यह ठीक नहीं हम यात्राओं से क्या कुछ मथकर बाहर निकाल लाते हैं यह सबसे अहम सवाल होता है ! लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जब यह गीत “ डांडू की जातरा मेरी बिजुमा बंठिया” गया होगा तब से अब तक यकीनन उन्हें यह जानकारी होगी भी कि नहीं कि यह गीत उत्तरकाशी जिले के कौन से क्षेत्र और कौन से गाँव का है लेकिन अब जबकि हमारी टीम (राजेन्द्र जोशी सीईओ देवभूमि मीडिया, दिनेश कंडवाल सम्पादक देहरादून डिस्कवर, इंद्र सिंह नेगी समाजसेवी जौनसार क्षेत्र व स्वयं मैं)  विगत 7-8 फरवरी 2018 को देहरादून से जखोल के मालदार गंगा सिंह रावत के बुलावे पर पर्वत क्षेत्र की पंचगाई पट्टी के जखोल गाँव जा पहुंचे जहाँ आजकल माघ त्यौहार में मेहमान नवाजी अपने आप में अनूठी होती है तब इस रहस्य से कुछ यूँ पर्दा उठा!

7 फरवरी को देहरादून से निकलते ही मैंने जौनसार क्षेत्र के समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी को फोन पर यमुना पुल आने को कहा और उन्हें यह भी आग्रह किया कि वे पुल पार बंगाली के यहाँ मच्छी भात की व्यवस्था करवा दें. बेचारे इंद्र सिंह नेगी न मांस खाते न मदिरा सेवन लेकिन मजबूरी है भाई दोस्तों का काफिला जो उनके इलाके से गुजरना था वहां पहुँचते ही उन्होंने वह व्यवस्था तो की ही साथ ही घंटे भर इन्तजार भी किया!
नैनबाग, डामटा, नौगॉंव, पुरोला, जरमोला धार, मोरी, नैट्वाड होते हुए हम सांकरी से लगभग 2 किमी पहले बांयी ओर कटती सड़क से लगभग 6 बजे शांय हम जखोल गाँव पहुंचे ! जहाँ मालदार गंगा सिंह रावत हमारे पूर्व से ही इन्तजार कर रहे थे! अभी भी गाँव में गिरी बर्फ गली नहीं थी. इसलिए अस्तांचल को गए सूर्यदेव के छुपते ही ठंड भी बढ़नी स्वाभाविक सी बात है! अभी सब घर की सीढियां चढ़ ही रहे थे कि मैं बेहद बेतकलुफ़ी के साथ सीधे गंगा सिंह रावत जी की रसोई में जा घुसा जहाँ चूल्हे की आग में प्रेशर सीटी बजाकर मेरे स्वागत में गुणगान करने लगा! दरअसल इस तरह रसोई में घुसना यूँ आसान नहीं है ! मैं पूर्व में भी यहाँ तब आ चुका था जब सोमेश्वर देवता की जातरा यहाँ से मीलों दूर हिमालय की यात्रा करने देवक्यार गयी थी! तब से यह परिवार मेरा घर जैसा हो गया है!

उनकी अर्धांग्नी जोकि क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं से अभी दुआ सलाम ही हुई थी कि गंगा सिंह रावत अन्य तीनों मित्रों को लेकर आग के पास रसोई में ही आ गए! चाय पाणी पीने के बाद यह कैसे सम्भव था कि ऐसा माहौल हो और राजेन्द्र जोशी मेरे कसीदों के चुटकीले बुलंद न करे! तीनों मित्र खूब ठहाके लगाएं और कभी कभी साथ में गंगा सिंह भी हंस दें! अब तक गाँव के तीन बुजुर्ग व दो अन्य महिलायें जिनमें एक गंगा सिंह की साली व उनके पति व एक जींदा लखवाड़ी की वंशज महिला शामिल थी! यानि रसोई में पूरी रौनक थी! मालदार के घर हों और मेहमान नवाजी में कमी आये ऐसा भला कहाँ सम्भव था ! इधर हर बात घुमाकर राजेन्द्र जोशी मेरे ऊपर बाउंसर डालते तो मेरे पास चारा कुछ नहीं होता सिर्फ डिफेन्सिव खेलने के अलावा. वहीँ इंद्र सिंह नेगी की तो मानों मन की मुराद पूरी हो गयी हो! वह ऐसे ठहाके लगाते मानों आज पहली बार उन्हें खुलकर हंसने की इजाजत मिली हो. दिनेश कंडवाल जी के साथ उनका यह पहला इत्तेफाक था इसलिए वे असमंजस में थे कि यात्राएं सिर्फ मनोरंजन का साधन बने यह ठीक नहीं हम यात्राओं से क्या कुछ मथकर बाहर निकाल लाते हैं यह सबसे अहम सवाल होता है ! लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जब यह गीत “ डांडू की जातरा मेरी बिजुमा बंठिया” गया होगा तब से अब तक यकीनन उन्हें यह जानकारी होगी भी कि नहीं कि यह गीत उत्तरकाशी जिले के कौन से क्षेत्र और कौन से गाँव का है लेकिन अब जबकि हमारी टीम (राजेन्द्र जोशी सीईओ देवभूमि मीडिया, दिनेश कंडवाल सम्पादक देहरादून डिस्कवर, इंद्र सिंह नेगी समाजसेवी जौनसार क्षेत्र व स्वयं मैं)  विगत 7-8 फरवरी 2018 को देहरादून से जखोल के मालदार गंगा सिंह रावत के बुलावे पर पर्वत क्षेत्र की पंचगाई पट्टी के जखोल गाँव जा पहुंचे जहाँ आजकल माघ त्यौहार में मेहमान नवाजी अपने आप में अनूठी होती है तब इस रहस्य से कुछ यूँ पर्दा उठा!

7 फरवरी को देहरादून से निकलते ही मैंने जौनसार क्षेत्र के समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी को फोन पर यमुना पुल आने को कहा और उन्हें यह भी आग्रह किया कि वे पुल पार बंगाली के यहाँ मच्छी भात की व्यवस्था करवा दें. बेचारे इंद्र सिंह नेगी न मांस खाते न मदिरा सेवन लेकिन मजबूरी है भाई दोस्तों का काफिला जो उनके इलाके से गुजरना था वहां पहुँचते ही उन्होंने वह व्यवस्था तो की ही साथ ही घंटे भर इन्तजार भी किया!
नैनबाग, डामटा, नौगॉंव, पुरोला, जरमोला धार, मोरी, नैट्वाड होते हुए हम सांकरी से लगभग 2 किमी पहले बांयी ओर कटती सड़क से लगभग 6 बजे शांय हम जखोल गाँव पहुंचे ! जहाँ मालदार गंगा सिंह रावत हमारे पूर्व से ही इन्तजार कर रहे थे! अभी भी गाँव में गिरी बर्फ गली नहीं थी. इसलिए अस्तांचल को गए सूर्यदेव के छुपते ही ठंड भी बढ़नी स्वाभाविक सी बात है! अभी सब घर की सीढियां चढ़ ही रहे थे कि मैं बेहद बेतकलुफ़ी के साथ सीधे गंगा सिंह रावत जी की रसोई में जा घुसा जहाँ चूल्हे की आग में प्रेशर सीटी बजाकर मेरे स्वागत में गुणगान करने लगा! दरअसल इस तरह रसोई में घुसना यूँ आसान नहीं है ! मैं पूर्व में भी यहाँ तब आ चुका था जब सोमेश्वर देवता की जातरा यहाँ से मीलों दूर हिमालय की यात्रा करने देवक्यार गयी थी! तब से यह परिवार मेरा घर जैसा हो गया है!

उनकी अर्धांग्नी जोकि क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं से अभी दुआ सलाम ही हुई थी कि गंगा सिंह रावत अन्य तीनों मित्रों को लेकर आग के पास रसोई में ही आ गए! चाय पाणी पीने के बाद यह कैसे सम्भव था कि ऐसा माहौल हो और राजेन्द्र जोशी मेरे कसीदों के चुटकीले बुलंद न करे! तीनों मित्र खूब ठहाके लगाएं और कभी कभी साथ में गंगा सिंह भी हंस दें! अब तक गाँव के तीन बुजुर्ग व दो अन्य महिलायें जिनमें एक गंगा सिंह की साली व उन किस तरह रिअक्ट करें यही हालत कुछ घर की महिलाओं के भी थे! क्योंकि उन्हें क्या पता कि ये मित्र आपस में कितने कमीने किस्म के हैं!
खैर बिषय बदलने में मैं पहले से एक्सपर्ट रहा हूँ और अगर ऐसे सीमान्त क्षेत्र में गया और वहां से स्टोरी बेस कुछ नहीं निकाल पाया तो लानत है खुद पर..! मैंने लामणों के गायन की बात क्या छेडी गीत बुजुर्गों की गायकी से शुरू हुए और महिलाओं के कोमल सुर तक पहुँच गए! गंगा सिंह रावत के ससुर जोकि जखोल मंदिर के पुजारी भी हैं माघ के त्यौहार की रौनक और मेहमानों के आगमन से बेहद प्रसन्न थे व बेहद मदमस्त अंदाज में दिख रहे थे! खाना-पीना समाप्त हुआ और तीनों थके मेरे मित्र सोने के लिए चल दिए ! उसके बाद महफिल तो अब सजी..! भला मैं चुप कहाँ बैठने वाला था गीतों और नृत्य की जो छटा बिखरी वह अपने आप में अद्भुत थी!
अचानक मेरे मुंह से गीत निकल पड़ा – “डांडू की जातरा मेरी बिजुमा बंठिया”…..! गंगा सिंह रावत की पत्नी तपाक से बोल पड़ी कामेटी की जातर मेरी बिजुमा बंठिया! फिर बोली- सर, ये गीत तो हमारे गाँव के ही नकदूण मेले का है ! आप पिछली बार सरू ताल गए थे न! बस वहीँ तो इस जातर पर मेले जुटता है!
मुझे तो मानों मुंह मांगी मुराद मिल गयी हो! फिर गंगा सिंह ने बताया कि नकदूण 27 गते सावन में जुटता है! 26 गते सावन ढोकरी (पकवान) बनते हैं ! व 26 गेट रात भर पर्वत क्षेत्र के 22 गाँव की महिलायें सोमेश्वर देवता के आँगन  तांदी नृत्य/गीत प्रस्तुत  करती हैं!
27 गते सावन की सुबह 4 बजे सारी महिलायें आँगन से ही नकदूण ढूँढने निकल जाती हैं और छोटी-छोटी कुदाल लेकर झुंडों में विभक्त होकर नकदूण खोदती हैं! जबकि पुरुष 4 बजे प्रात: अपने अपने घरों में लौट आया करते हैं!  यह आश्चर्य की बात ही है कि नकदूण नामक यह औषधीय पादप सिर्फ और सिर्फ इसी दिन निकलता है  वह भी सैकड़ों मील फैले पर्वत क्षेत्र के जखोल गाँव के सिर्फ इसी क्षेत्र में जहाँ मेला आयोजित होता है!  इस औषधीय पादप को मुश्किल से एक महिला दो या तीन किलो ही ढूंढ पाती है जिसे कंडी में रखकर लाया जाता है! 12 बजे के आस-पास जखोल के गाजे-बाजों के साथ पुरुष नकदूण मेला जुटाते हैं जिसे कमोटी की जातर या भी डांडू की जातर के नाम से भी जाना जाता है!
शांय 4 बजे तक यहीं खूब गीत नृत्य चलते हैं जिसके पश्चात 4 बजे कामटी सरू ताल से सब लोग जखोल गाँव वापस लौटते हैं व फिर सोमेश्वर मंदिर परिसर में मेला जुटता है! अब बिषय यह आता है कि आखिर यह नकदूण है क्या?

इसके बारे में गाँव की क्षेत्र पंचायत सदस्य श्रीमती रावत बताती हैं कि यह एक छोटे से हरे पौधे की जड़ होती है जैसे आलू के पौधे पर आलू होता है वैसे ही नकदूण के पौधे पर नकदूण! इसे कच्चा नहीं खाया जा सकता क्योंकि यह जहरीला होता है अत: इसे घर में लाकर पहले गर्म पाणी में उबाला जाता है फिर इसे सिलबटे या मिक्सी में पीसकर महीन बनाया जाता है ! बाद में इसे घी व शहद मिलाकर खाया जाता है ! इसकी दूध में मिलाकर खीर भी बनाई जाती है जो बेहद स्वादिष्ट होती है!
नकदूण पर बेहद रोग निरोधक क्षमता होती है यह पौष्टिक होने के साथ साथ स्त्री पुरुष दोनों के पौरुष वृद्धि के लिए भी बहुत कारगर माना जाता है व इसके खाने से हिमालयी क्षेत्र में जीवन यापन कर रहे इस क्षेत्र के वासियों को मौसम परिवर्तन से उपजने वाले रोगों से मुक्ति मिल जाती है! यह भी आश्चर्यजनक है कि यह औषधीय पादप सिर्फ इसी दिन अपनी सारी शक्तियों का पूरक माना जाता है व इसी दिन इसका सेवन करना सबसे अधिक ऊर्जा प्रदत्त करता है!
(डांडू की जातरा मेरी बिजुमा बंठिया….! क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *