टेथिस सागर में हैं भगवान बद्रीश विराजमान!

“”” बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति
********* श्रृंखला 5****

वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट की कलम से-
भगवान बदरी विशाल ” नारायण ” हैं। श्री हरी अर्थात भगवान विष्णु स्वरूप बदरी विशाल को “” नारायण ” भी कहा जाता है । यहाँ का मूल मंत्र ” ऊं नमो नारायण ” है । .”” दुनिया में जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । ” श्री हरि विष्णु जल अर्थात सागर में क्षीर सागर में रहते हैं। इसलिए”” नारायण ” नाम भी भगवान का है । नारायण अर्थात “” नार ( पानी ) है जिनका आयन ( निवास )। जल . और नारायण तथा जीवन एक दूसरे के पूरक हैं। हर पूजा में आचमन जल और विष्णु विष्णु का ध्यान होता है ।बदरी नारायण और हिमालय के रिश्ते को खंगालें तो कल्पना और धारणा के द्वार उस बिन्दु पर पहुंचते हैं जहां पर वैज्ञानिक “” हिमालय को कभी सागर था बताते हैं। । *
*** क्या यह वही क्षेत्र है जिसे क्षीर सागर माने ” ।
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भू वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय का जो वर्तमान स्वरूप है वह पूर्व में ऐसा नहीं था । 5 लाख वर्ष पूर्व यह “” टेथिस सागर ” था । पृथ्वी पर समय समय पर होते परिवर्तनों के कारण ” टेथिस सागर ” हिमालय के रूप में आया । सनातन धर्म के अनुसार भगवान नारायण ” समुद्र क्षीर सागर में निवास करते हैं। तो क्या वही क्षीर सागर ” टेथिस सागर था जो अब हिमालय बना और जहां “” बदरी नारायण विराजमान हैं । ?? हो सकता है यह मेरी आस्था से उपजी कल्पना मात्र हो . इसका कोई प्रमाणिक आधार न हो । पर बदरी नाथ में समुद्रीय अवशेष . नार ( पानी ) . आयन (निवास .) इसे टेथिस सागर मानना . मान्यताओं के अनुसार भगवान की क्षीर सागर में रहना मस्तिष्क को कौंधाता जरूर है ।
“” तुलसी और बदरी नाथ “”
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भगवान बदरी विशाल ” श्री हरि ” को तुलसी बहुत प्रिय है। तुलसी और भगवान के सानिध्य की कथा से सब परिचित है। प्रायः हमारे घरों में श्यामा और रामा तुलसी होती है । पर बदरीनाथ में जो तुलसी उगती है वह भी दिब्य औषधीय गुणों और पवित्रता को लिए होती है। भगवान के प्रात: स्नान के बाद पहले तुलसी माला ही पहनायी जाती है । फिर अभिषेक में भी तुलसी माला। मन्दिर में संकल्प में भी तुलसी । प्रसाद में भी तुलसी ।भोग की पवित्रता बनाने के लिए भी तुलसी ।यहाँ तक कि ब्रह्म कपाल में जब तर्पण पित्रों कै किया जाता है वहाँ भी चावल . अलकनन्दा का जल और तुलसी दल ही हाथ में दिया जाता है।
“”‘ बदरी नाथ में श्रद्धा और भक्ति तथा यहाँ आने के संयोग आदि बिन्दु पर शेष
यदि भगवान बदरी विशाल ने आज्ञा दी । लगातार ….

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