झांकी हिन्दुस्तान की- 51 अतुल्य भारत – नीलांचल की कामाख्या….!
झांकी हिन्दुस्तान की- 51
अतुल्य भारत – नीलांचल की कामाख्या….!
(वरिष्ठ पत्रकार एलमोहन कोठियाल की कलम से)
गुवाहाटी में नीलांचल की पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मन्दिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है और तन्त्र साधना के तीन पीठों में से एक। पूर्वात्तर भारत में गुवाहाटी में यह एक मात्र ऐसा मन्दिर है जहां असम ही नहीं अपितु देश के अनेक हिस्सों से लाखों की संख्या में हिन्दू धर्मावलम्बी आते हैं और दशर््ंान लाभ प्राप्त कर लौटते हैं।
शारदीय नवरात्र मके अलावा चैत्र माह के नवरात्र में भी यहां पर यह संख्या कुछ ज्यादा ही होती है। वहीं जून के अन्त में यहां लगने वाला अम्बूबाची मेला लगता है जब तीन दिनों के लिये मन्दिर बंद रहता है। इस दौरान यहां तान्त्रि़क पूजा होती है।
कामाख्या मन्दिर एक प्राचीन मन्दिर है जो इससे पहले बने पुराने मन्दिर के स्थान पर ही स्थापित है। वर्तमान मन्दिर को असम के अहोम राजाओं द्वारा 10वीं शती के आस निर्मित कराया गया था। इसके ही समीप पुराने मन्दिर की ध्वस्त दीवारों को देख यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है। मन्दिर के समीप खुदाई के उपरान्त यहां से कई मूर्तियां व खण्डित आकृतियां मिलती रही हैं जो मन्दिर के समीप ही एक कक्ष में संग्रहीत हैं। नवरात्र, के समय व जुलाई में यहां पर असाधारण रूप से भीड़ होती है।
ज्यादातर शक्तिपीठों की स्थापना की कथावस्तु व मान्यता एक ही है किन्तु कामाख्या में मन्दिर बनाने को लेकर एक अलग मान्यता भी है। दक्ष प्रजापति के द्वारा शिव के अपमान क्रोधित होकर पुत्री गौरी दुखित होकर अग्निकुण्ड में आत्मदाह कर लेती है। इस पर शिव उसके शरीर को लेकर परिभ्रमण कर निकल कर आसमान में ताण्डव करने लगते हैं इससे उनके शरीर के क्षत-विक्षत अंग कई स्थानों पर जा गिरते हैं। 51 स्थानों पर देवी बने मन्दिरों की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता हैं। कामाख्या में गौरी का योनि खण्ड गिरा इसलिये इसे योनिपीठ नाम से भी जाना जाता हैं। मन्दिर के बनने को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार दैत्य नरकासुर देवी के रूप पर मोहित हो उठा था और देवी से विवाह को व्याकुल हो उठा। देवी दैत्य से कैसे विवाह कर सकती थी इसलिये उसने ऐसी शर्त रखी ताकि यह विवाह न हो सके। उसे समीप नीलांचल की पहाड़ी पर उसका मन्दिर एक रात में बनाने को कहा। नरकासुर ने बड़ी तेजी से मन्दिर बनाना आरम्भ किया वह उसे सुबह तक पूरा कर भी लेता किन्तु देवी इसे भांप गई और माया के बल पर एक मुर्गे को भेजकर उससे बांग करवा दी। इससे दैत्यराज का ध्यान भटक गया और वह क्रोधित हो उठा और मुर्गे का वध कर दिया। इस बीच में सुबह हो गई और शर्त के अनुसार शक्ति ने विवाह से इंकार कर दिया।
नीलांचल की पहाड़ी पर स्थित यह मन्दिर परिसर अत्यन्त रमणीक स्थान पर है। मन्दिर से थोड़ी ही दूर पहाड़ी के शीर्ष पर एक शिवमन्दिर है जहां से बह्मपुत्र नदी के किनारे बसे गुवाहाटी का नजारा दिखाई देता है। न्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के साथ साथ अन्य मन्दिर भी है। मन्दिर के पीछे यह सरोवर है जहा कई लोग स्नान करते हैं। यहां पर मुख्य पूजा अवसरों पर बकरी, मुर्गे बतखों की बलि अब भी जारी है। कुछ साल पहले तक भैंसों की बलि आम थी किन्तु अब यह संख्या घट कर बहुत कम हो गई है।
कामाख्या मन्दिर गुवाहाटी से 10 किमी पहले पड़ता है। आज यहां पर उत्तर पूर्वी रेलवे का एक स्टेशन भी है जिसका विस्तारीकरण किया जा रहा है। जाने के लिये नियमित बस सेवायें चलती है तो कई बसं मन्दिर के आधार पर उतार देती है i जहां से 2 किमी. दूर मन्दिर के नियमित टैक्सियां चलती रहती हैं। पार्किग से उतर कर एक रास्ता आपको नीलांचल की पहाड़ी पर बने मन्दिर ले जाता है। असम राज्य परिवहन निगम मन्दिर तक जाने के लिये नियमित बसें चलता रहता है जो पान बाजार से लेकर पलटन बाजार दिसपुर, नारंगी, आमबाड़ी चांदमारी सब जगहों से मिल जाती हैं।
मन्दिर की अपनी अलग शैली है एक एक प्राचीन मन्दिर है। मन्दिर में गर्भगृह है जिसके बाहर मण्डप है। मण्डप के अन्दर बैठने का पर्याप्त स्थान है मन्दिर में भीड़ से बचने के लिये मन्दिर के चारों ओर गैलरी बनी है ताकि एक ही स्थान पर भीड़ जमा न हो सके। इसे इस प्रकार से बनाया है लोग लाइन से ही जा सकें ओर भगदड़ न मच सके। तो दूसरा भुवनेश्वरी के मन्दिर को जाता है जह जो इस पहाड़ी के शीर्ष पर बसा है। गुवाहाटी के चारों ओर का व्यू यहां से लिया जा सकता है।