ज्योतिषशास्त्र के प्रकांड विद्वान हैं बाडाहाट के कंडार देवता।
सावित्री सकलानी उनियाल की कलम से-
कहते हैं बाड़ाहाट ,उत्तरकाशी के भूमि के देवता कण्डार देवता हैं।बहुत साल पहले बाड़ाहाट उत्तरकाशी में एक किसान अपने खेतों में हल लगा रहा था। हल लगाते हुए उस के हल की फाल (जो धातु का बना हुआ हिस्सा होता है हल के नोक पर) किसी धातु के टकराने से आवाज करता हुआ रुक गया। हली ने हल को रोक कर उस स्थान को खोदा तो वहां पर अष्ट-धातु की बनी एक सुंदर सी मूर्ति निकली जिसको हली ने वह मूर्ति राजकोष में जमा करवा दी। पर कुछ समय बाद मूर्ति की सकारात्मक उपलब्धि को देखते हुए इस मूर्ति को बाड़ाहाट ,उत्तरकाशी का भुदेवता मनोनीत कर दिया गया और देवता का मंदिर संग्राली ग्राम में बना दिया गया लेकिन वर्तमान में इनका एक मंदिर जिलाधिकारी कार्यलय के निकट भी बना दिया गया है। जिस स्थान से देवता प्रकट हुए थे।
कण्डार देवता को शिव का अवतार माना जाता है साथ में इनको प्रखंड ज्योतिष भी माना जाता है। जो जन्मपत्री कोई नहीं समझ पाता या शादी के लिए नहीं जोड़ पाता वह देवता मिनटों में बता देता है।बहुत ही सौम्य ,भावुक, बुद्धिमान, सहनशक्ति, सरल देवता है। बच्चे भी खेल लेते हैं देवता के साथ।
बाड़ाहाट उत्तरकाशी में होने वाले प्रत्येक कार्य को देवता को आगे रखकर किया जाता है या देवता की आज्ञा ली जाती है। किसी भी पर्व पर सबसे पहले देवताओं में गंगा जी में नहाने का अधिकार कण्डार देवता को ही है। माघ मेले का उद्धघाटन इसी देवता के द्वारा होता है। कई समस्यों का हल देवता निकाल लेता हैं।
देवता को डोली में रखा जाता है तब छोल्या जाता है। हर बर्ष कंडार देवता का मेला उसके मूल मन्दिर संग्राली गांव मे लगता है.!
कहा जाता है कि जितनी भी बाड़ाहाट की लड़कियां हैं वो सब कण्डार देवता की दिशा द्यानियाँ हैं । इस देवता की पूरा इतिहास उत्तरकाशी थाने में जरूर होंगे ऐसा मेरा मानना है।