जौनसारी जी के जन्म के बहाने, जौनसारी जी की याद!
जौनसारी जी के जन्म के बहाने, जौनसारी जी की याद!
अप्रैल 01! (हि. डिस्कवर)
अजीम जी प्रेम जी फाउंडेशन के तत्वावधान में आज मूर्धन्य कवि साहित्यकार/ गीतकार व गायक स्व. रतन सिंह जौनसारी के 81वें जन्मदिवस पर उन्हें याद किया गया जिसमें देहरादून के चुनिंदे साहित्यकार व समाजसेवियों,रंगकर्मियों ने शिरकत किया.
वहीँ धाद संस्था द्वारा अजीमजी प्रेमजी फाउंडेशन के साथ मिलकर उनकी याद में एक कवि सम्मलेन भी आयोजित किया गया. तय समय से लगभग आधा घंटा देरी से शुरू हुए इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में “लोक साहित्य और शिक्षा” पर विचार रखे गए साथ ही इसी दौरान जौनसारी जी पर भी परिचर्चा हुई.
कार्यक्रम का शुभारम्भ भारत की पहली सुप्रसिद्ध काशवाणी कम्पोजर माधुरी बडथ्वाल व उनकी टीम द्वारा “ऋतु म ऋतु क्व़ा ऋतु बड़ी…” गढ़वाली चौम्फला से की गयी तत्पश्चात अजीम जी प्रेम जी फाउंडेशन के कैलाश कांडपाल लोक साहित्य और शिक्षा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोक साहित्य समाहित नहीं है उसे आम सृजन में समाहित करना ही होगा. वहीँ कार्यक्रम का संचालन कर रहे संचालक ने बताया कि पहले जौनसारी जी अपने नाम के पीछे रतन सिंह उत्साही लिखते थे लेकिन एक मंच पर उन्हें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जौनसारी कहकर पुकारा तो उन्होंने तब से अपने नाम के पीछे उत्साही के स्थान पर जौनसारी लिखना प्रारम्भ कर दिया.
जौनसारी पर अपनी यादें समेटते उनके मित्र सोमवारी लाल उनियाल ने जौनसारी जी से सम्बन्धित कई यादगार पल साझा किये. उन्होंने कहा कि उनकी और जौनसारी जी की दोस्ती लगभग ४ दशक की रही. एक दिन मुख्यमंत्री के यहाँ से लौटते समय उन्होंने जब जौनसारी जी से पूछा कि अब वापसी कैसे होगी तब जौनसारी जी ने उन्हें बताया कि वे आज भी अपने स्कूटर से चलते हैं. जबकि तब जौनसारी जी की उम्र लगभग 79 बर्ष रही होगी. इसके बाद उन्होंने उनके स्वर्ग सिधारने की घटना के बारे में जब सुना तो वे आवाक रह गए कि भला ऐसा कैसे संभव हुआ.
उन्होंने कहा कि जौनसार-बावर की पहचान अपने गीतों से कराने वाले जौनसारी जी का हिंदी साहित्य पर भी जबर्दस्त काम था. उनकी कविताएं आत्ममुग्ध कर देने वाली थी. जब वे जौनसारी जी से जुड़े प्रसंगों पर चर्चा कर रहे थे तब जौनसारी जी की श्रीमती उन यादों में खोकर सुबक लेती थी.
वहीँ उनके अभिन्न मित्र व जौनसारी जी की ज्यादातर पुस्तकों के प्रकाशक रहे नेम चंद जैन ने कहा कि मैं कभी जौनसारी जी को श्रधान्जली नहीं देताक्योंकि मैं उन्हें अपने आस-पास ही महसूस करता हूँ. कई बार उनसे आज भी गपियाता हूँ. उन्होंने सोमवारी लाल उनियाल द्वारा कही गयी जौनसारी की एक कविता को शुद्ध करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य के उनके ये बोल हमेशा उनकी जुबान में तैरते हैं जिन्हें सोमवारी लाल उनियाल आगे पीछे बोल रहे थे-
मेरा बिस्तर फटा पुराना है,
अब तुम मुझको प्यार करो या ठुकरा दो!
यही मेरे जीवन की शैली है!
उन्होंने बताया कि जौनसारी जी हमेशा कहा कारते थे कि जौनसारी भाषा की अपनी लिपि है लेकिन कोई आज तक उस लिपि को प्रकाशित करना तो दूर ढून्ढ कर सामने नहीं रख पाया. वहीँ उन्होंने उस दौर की बात भी कही जब मजाक में जौनसारी जी कहा करते थे कि मैं ऐसा मन्त्र जानता हूँ जो आदमी को मक्खी बना देता है लेकिन मक्खी से आदमी बनाने का मात्र मुझे नहीं आता. वे ऐसे ही खुश मिजाज और सरल व्यक्तिव के धनी रहे.
जौनसारी जी पर चर्चा के पश्चात पुन: माधुरी बडथ्वाल व उनकी टीम ने बारहों महीने के लोक त्यौहारों से जुडी लोक रचना बारामासा सुनाई जो चौंफला को प्रदर्शित करती है व जिसके बोल थे-
बारा मैनों की क्या ख़ास बात, बारा मैनों की चा ऋतु चैत!
तत्पश्चात कवि सम्मलेन शुरू हुआ और कविताओं में भी जौनसारी जी का स्मरण किया गया.