जोत सिंह डुंगरियाल कंडी में काली-कुमाऊ से लेकर आये थे गोरिल कंडोलिया को…!
जोत सिंह डुंगरियाल कंडी में काली-कुमाऊ से लेकर आये थे गोरिल कंडोलिया को…!
मनोज इष्टवाल
जनपद पौड़ी की उतुंग शिखर में अपना स्थान चुनने वाले गोरिल कंडोलिया देवता पर पूर्व में कई लेख लिखे जा चुके हैं लेकिन किसी ने भी उस पर व्यापक शोध करने की कोशिश नहीं की, किसी ने उसे शिब मंदिर कहा तो किसी ने उसे फुलदेई के फूल चढ़ाकर ग्राम देवता के रूप में पूजा.
दरअसल गोरिल कंडोलिया की पहचान तब हुई जब गोरिल देवता पौड़ी के ही एक नौजवान कमल किशोर रावत पर अवतरित हुए और उन्होंने नाचना खेलना शुरू कर दिया. यह तब का दौर हुआ जब सुप्रसिद्ध निर्देशक अनिल बिष्ट अपनी ऑडियो वीडियो भजन कैसेट जय बाबा कंडोलिया की शूटिंग करने इस स्थान पहुंचे.
(कंडोलिया मंदिर पौड़ी )
अनिल बिष्ट बताते हैं कि हमने कुछ भूल की जिसका हर्जाना हमें तुरंत चुकाना पड़ा. हमें यह पता नहीं था कि कंडोलिया देवता के आँगन में जूठन नहीं होती और हमने वहीँ बैठकर खाना खाया. शूटिंग निबटते ही देखा शुरू और आखिरी की टेप ठीक थी बीच की सब साफ़. इसी दौरान कमल किशोर रावत पर देव अवतरित हुए और उन्होंने बताया कि हमने क्या किया.
वहीँ च्वींचा गॉव निवासी सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य मनबीर सिंह रावत बताते हैं कि उन्हें क्या गॉव वाले कई लोगों को पता नहीं था कि यह भूमिया देव गोरिल देवता हैं जिन्हें हम गोलज्यू, गोलू, ग्वेल सहित कई अन्य नामों से जानते हैं, कन्डोलिया देवता को पहले हम अन्यार देवता के रूप में पूजते थे जब बचपन में गाय चुगाने जाते थे और गाय बैल भूलवश अन्यार खा लेते थे तब हम वहीँ खिचड़ी बनाकर अन्यार देवता की पूजा करते थे.
(कंडोलिया मंदिर पौड़ी )
सुप्रसिद्ध लेखक साहित्यकार कवि/गीतकार व लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी बताते हैं कि उनके पिताजी बताया करते थे कि उनके पूर्वज जोत सिंह डुंगरियाल ने सर्वप्रथम पौड़ी की खोज की थी तब यहाँ घनघोर जंगल हुआ करता और वे ही कंडोलिया देवता को कंडी में लेकर सर्वप्रथम पौड़ी गॉव के पंचायती आँगन (जो वर्तमान में है) जोकि एक पोड़ (पहाड़ी ढाल का पट्ठारी हिस्सा) के ऊपर है में उन्होंने विश्राम किया तब गोरिल देवता ने सपने में आकर उन्हें बताया कि उन्हें ऐसे स्थान पर ले चलो जहाँ सबसे उतुंग शिखर हो और जहाँ से मैं उतुंग हिमालय देख सकूँ. जोत सिंह डुंगरियाल उस कंडी को लेकर दुसरे दिन कंडोलिया पहुंचे वहीँ उन्होंने शिला के रूप में गोरिल कंडोलिया को स्थान दिया जबकि नित पूजा के लिए उन्होंने कंडी को धारा रोड़ के पास थरपा. आज भी धारा रोड में पौड़ी गॉव का जनमानस कंडोलिया देवता की भूमिया देव के रूप में पूजा करता है.
गोरिल देवता को क्यों कंडोलिया देवता का नाम दिया गया इस पर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का तर्क है क्योंकि उन्हें काली कुमाऊ से कंडी के अन्दर छुपाकर लाया गया था इसलिए उन्हें कंडोलिया नाम दिया गया. और इसी नाम से उनकी पूजा भी होती है!
(कंडोलिया मंदिर पौड़ी )
इसी तर्क को कई अन्य स्थानीय लोगों ने भी अपनी सहमति दी है. जिनमें चित्कारिया बंधू, अनिल बिष्ट, अनिल बडथ्वाल सहित दर्जनों लोग शामिल हैं.लेकिन मुख्य मुद्दा अभी भी बाकी है और वह है कि जब कंडोलिया देवता को डुंगरियाल नेगी लेकर आये तब देवता ने रावत परिवार में क्यों अपना अवतार लिया. इस भ्रान्ति को शायद मेरा यह तर्क मेरा शोध पूरा कर दे.
विगत बर्ष से मैं गोरिल देवता की हर छोटी बड़ी बातों को उनकी लोक कथाओं को तथ्यों को किंवदंतियों को बहुत संजीदगी से ले रहा हूँ. मेरा मानना है कि हमेशा ही गोरिल देवता ने दुसरे घर भाव रखा है. चम्पावत में इसके पुजारी भले ही कार्की लोग हैं लेकिन देवता दूसरी जाति में जाकर अपना भाव रखते हैं वही चितई व घोडाखाल में भी है. इन दोनों स्थानों पर इसके पुजारी जोशी बंधू हैं लेकिन वे अन्यत्र अवतरित होते हैं. ऐसा ही चमड़खान, लोध, ताड़ीखेत इत्यादि स्थानों पर भी होता आया है.
(पौड़ी शहर)
जोत सिंह डुंगरियाल पौड़ी गॉव बसकर वहां के पधान हुए आज भी उनके वंशज पौड़ी गॉव व लक्ष्मी नारायण मंदिर क्षेत्र में अव्यस्थित हैं लेकिन उनकी विधिवत पूजा कर्म न कर पाने के कारण गोरिल उनके यहाँ भाव नहीं रख पाए भले ही पूजा विधि की उन्हें ज्यादा जानकारी है.
(पौड़ी शहर)
बिन्ता उदयपुर में उतुंग शिखर पर अव्यस्थित गोरिल देवता के स्थान को अगर देखा जाए तो वह भी कंडोलिया जैसे ही स्थान में है जहाँ से हिमालय की वादियाँ दूर-दूर तक फैली दिखाई देती हैं. यह क्षेत्र काली-कुमाऊ में ही पड़ता है ! राजा उद्योतचंद के काल में जब राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा लायी गयी तब चम्पावत स्थित गोरिल देवता को अल्मोड़ा ले जाने पर जनता के आक्रोश को देखते हुए राजा के सेनापति हर सिंह कैडा जाति के थोकदार ने उनकी मूर्ती को अपनी पगड़ी में छुपाकर उदयपुर लाये थे आज भी उनकी मूर्तियाँ यहाँ अव्यवस्थित हैं. कहा तो यह भी जाता है कि जो चारण उनकी गाथा के गायन करते थे वे डूंगरी के डुंगरियाल नेगी हुए और देव आशीष से समाज में उन्हें बहुत यश कीर्ति मिली.
उदय पुर बिन्ता क्षेत्र के अल्मिया गॉव के बोहरा जाति में सेनापति हर सिंह कैड़ा की बेटी की शादी हुई थी वहीँ जाकर गोरिल ने अवतार लिया. भले ही आज भी बिन्ता ग्राम सभा के कैड़ा थोकदारों का यहाँ बड़ा रसूक है और इस क्षेत्र की यह सबसे सम्पन्न ग्राम सभा मानी जाती है. लेकिन हर सिंह कैड़ा के यहाँ भाव रखने के स्थान पर गोरिल उनकी बेटी के परिवार में जाकर बोहरा जाति में अवतरित हुए. यहाँ भी पुजारी जोशी बंधू हैं जो ग्राम सभा बिन्ता के बिन्ता व हाथीखुर के निवासी हुए.
(कंडोलिया मंदिर पौड़ी )
गोरिल कंडोलिया भी हो सकता है कालांतर में पौड़ी गॉव के डुंगरियाल नेगी व च्वींचा गॉव की आपसी रिश्तेदारी का ही हिस्सा हों और हो सकता है यही कारण भी हो कि कंडोलिया देवता कमल किशोर रावत पर अवतरित हुए हों अत: मेरा उन सभी पौड़ी निवासी बंधुओं से अनुरोध है कि देवता को बांधकर रखा जाना ठीक नहीं है. हमें इतिहास पलटकर देखना ही होगा.
गोरिल कंडोलिया की ही मेहरबानी है कि जहाँ तक भी उनकी दृष्टि गई कभी भी कोई आपदा नहीं आई और हर खेत खलिहान हरा भरा शुकून भरा रहा. मुझे आश्चर्य होता है कि पौड़ी में बाहर से आकर बसे ब्यवसायी वर्ग के लोग आराध्य देव कंडोलिया को बहुत श्रधा के साथ पूजते हैं जबकि हम जोकि अपने को यहाँ का आदि निवासी मानते हैं उन्होंने देव आराधना को उपेक्षित सा कर दिया है. कुमाऊ के किसी भी मंदिर में चले जाओ वहां गोरिल देवता के घान्ड़ो घंटियों से मंदिर सुशोभित हैं लेकिन हम वैभव के ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ देवता हमसे छोटे पड रहे हैं. मुझे आज भी वह क्षण याद है जब पूर्व में पौड़ी के जिलाधिकारी रहे प्रभात कुमार सारंगी जी के कई बर्ष तक पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई थी तब उन्होंने यहीं गुहार लगाईं थी और उनको पुत्र रत्न प्राप्त हुआ था जिस दिन वह पौड़ी से विदा हुए तब एक बजे प्रात: कंधे में ढोल डालकर एक जिलाधिकारी ने कंडोलिया देवता की अरदास की थी. क्या यह उदाहरण कम है. पौड़ी के कमल किशोर रावत पर जब देवता अवतरित होते हैं तब उनके चेहरे का ओज देखते ही बनता है मैंने ऐसा ही उदयपुर बिन्ता में देव अवतरित होते देखा और जब कमल किशोर रावत ने देव अवतरण के समय अपने सभी स्थानों की चर्चा की तब मैं भौंचक रह गया. आईये गोरिल कंडोलिया को हम भूमि का भुम्याल माने या फिर गोरिल लेकिन यह तय है कि यह देवता हर उस दुखिया का देव है जो बेवजह परेशान है.
Posted by Jitendra Panwar on Friday, 16 December 2016
धन्यावाद. इष्टवाल सर । बहुत हि सुन्दर लेख । हमारे हर देवताओं के लिए।जय उत्तराखण्ड।
आप जैसे पाठकों की भी जय हो.