"जीवन तो चलता रहता है"……।
“जीवन तो चलता रहता है “…………..।
(अखिलेश डिमरी की कलम से)
मौका था मित्र ईशान पुरोहित की काव्यावली जीवन तो चलता रहता है के विमोचन का , वैसे तो ईशान भाई से इस काव्य कृति के विमोचन के विषय शोशियल मीडिया के माध्यम सेबात चलती रहती थी लेकिन आज वो बहुप्रतीक्षित संयोग बन ही गया था।
ईशान भाई को यूँ तो में स्मृतियों में कालेज के वक्त से स्मरित करता हूँ जब वो शायद श्रीनगर अंतर महाविद्यालय सांस्कृतिक प्रतियोगिता में मिले थे लेकिन फेसबुक के माध्यम से हमारे बीच हमेशा संवाद बना रहा , वो संवाद राजनैतिक चर्चा से लेकर हास परिहास तक सबमे मौजूद रहता है ,कभी मेसेज बॉक्स में तो कभी टाइम लाइन पर।
इस बात का जिक्र यहां पर इसलिए कर रहा हूँ कि संवाद में इस तरह का अपनापन और टिपणियों के बेबाक पन के साथ हमारे लिए इस पुस्तक की बेताबी आप यूँ समझिये कि एक रोज मैंने मुहब्बत की चार लाइने फेसबुक पर डाली तो ईशान भाई ने टिप्पणी की कि एकतरफा मुहब्बत मे शेर ही लिख पाते हैं तो मैंने भी तपाक से उत्तर दिया कि मुहब्बत में चोट खाये हुए पूरी की पूरी किताब लिखते हैं….” और यकीन मानिए कि मुझे लगता था कि जब ईशान भाई की ये किताब पढूंगा तो यही दर्द ए इश्क जैसा कुछ मिलेगा जिसे कभी सुरूर में गुनगुनाने भर का इंतजाम हो जायेगा और सुरूर में कह सकने का गुरूर अलग से हासिल कि मेरे मित्र का शेर है….,
लेकिन किताब में पहली ही कविता को पढ़ कर समझ में आ गया कि यहां प्रेम महज गुनगुनाने भर के लिए नहीं बल्कि गंभीर दर्शन छोड़ जाता है , एक ऐसा गंभीर दर्शन जो पढ़ने वालों सुनने वालों गुनगुनाने वालों सभी की खुद गंभीरता भी चाहेगा।
सच में जीवन तो चलता रहता है ,लेकिन कैसे …..? इस बात को समझने के लिए आपको खुद से सवाल करने ही होंगे , और वो सवाल और उनके मिल रहे जवाब भी आम जिंदगी में भले ही सामान्य लगते हों लेकिन जब जीवन के बिम्ब में अंदर तक झाँक उसे समझने के बाद शब्दों का विन्यास बना सवाल किये जाते हैं तो सवाल होता है कि –
क्यों माँगू तुमसे भीख भला साँसों के चिर समयांतर की
क्यों देखूँ में चक्र नियति के पुनर्जन्म रूपांतर की
परिणय में प्रतिकार न करना ये आलंबन झूठा है
तुझसे खुद की सौदेबाजी का सम्मोहन झूठा है
ढोते रहते खुद में तुमको जंगम-स्थावर वसुधा के
मेरा जिस्म अगर गल जाए , फिर तुम किसमें बसे रहोगे
क्या तुम मेरी हार सहोगे …..?
ये वो सवाल है जिसमें किसी और के प्रतिकार के जवाब के साथ पूछा गया है, और उनसे शायद अनकहे संबंधों की व्याख्या में भी खुद से सवाल है कि –
यमन वीना तान जैसी
बांसुरी मधुवन बजाता, ये सबेरा कौन है …?
वो तुम नहीं तो कौन है, मुझमे बसा जो मौन है ..?
सवाल दर सवालों के जवाब में प्रेम को दर्शन बना कर डॉक्टर ईशान पुरोहित ने इस काव्यकृति के माध्यम से आप हम सबके रखा है ,100 कविताओं के इस संग्रह में आपको प्रेम निश्छल भी मिलेगा, सवाल पूछते भी मिलेगा तो गुनगुनाते हुए भी मिलेगा। जब आप इस पुस्तक में छपी काव्यरचना “लोगों की आदत होती है” पढ़ेंगे तो प्रेम का दर्शन खुद स्वयं को निश्चित करता हुआ दुनिया के लिए बेबाक बेपरवाह का हो जाएगा , जब आप “रस्म !” पढ़ेंगे तो जिम्मेदारी को समझता हुआ महसूस होगा , “जीने के बहाने ” पढियेगा तो इसमें प्रेम की गंभीरता का विव्हल स्वरुप दिखाई देगा। और भी बहुत कुछ जो आपको अपने अंतस में ले जाता है।
हालांकि अभी मैं इस कृति को पूरा नहीं पढ़ पाया लेकिन इसमें ऐसा बहुत है जो आपको इस विषय पर चेतन करेगा जहाँ हम खुद को ही सही मान बैठने की भूल कर बैठते हैं, और इन सबके बीच दो जीवनों के एक होंने की चाहत और बिखर कर फिर अलग अलग एक हुए दौर में एक दुसरे की तरफ उठती हुई उँगलियों को झुका कर ही तो ईशान पुरोहित का शायद जवाब है कि “जीवन तो चलता रहता है “।
माप चाहतों की है तो फिर जिस्म बदल लें रूह बदल लें
उजियारा है प्यास प्रेम की लाख चाँदनी धूप बदल लें
दर्पण के टुकड़े से होकर आँखों की चुँधियाहट में
हर टुकड़े में पूरा दिखना , चाहत का दस्तूर नहीं है
परछाई का शीशों में होना, मुझको ये मंजूर नहीं है
कविताओं पर विस्तार से चर्चा पूरी तरह पढ़ने के बाद फिलहाल ईशान भाई को इस शानदार काव्यकृति के लिए धन्यवाद और शुभकामनाएं।