जिम कॉर्बेट ..! यानि एक ऐसा अंग्रेज जो देश छोड़ने के बाद भी अपनी बसीयत अपने वंशजों की जगह कुमाऊँनी समुदाय के लिए छोड़ गया..!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग)
(11-07-2017
वह अभी सिर्फ और सिर्फ 12 साल 12 माह की हुई थी क्योंकि उसके जन्मदिन के पोस्टर अभी भी नैनीताल स्थित उसके आवास की शोभा बढ़ा रहे हैं. नाम अवनी जोशी! यह एक इत्तेफाक ही समझिये कि दिन भर की बरसात व निजी कामों की व्यस्तता के चलते मुझे सुप्रसिद्ध फोटो-जर्नलिस्ट राजीव काला के मल्ली ताल आवास में रुकना पड़ता. वहां अवनि से मुलाक़ात हुई!


(गर्नी हाउस और गर्नी हाउस के द्वार पर मनोज इष्टवाल)
अवनि की सबसे विलक्षण प्रतिभा यह लगी कि वह कभी भी टॉपिक से हटकर बात नहीं करती. जिम कार्बेट पर जब यह बात आई कि इसे लोग किन-किन नामों से जानते थे तब अवनी सबसे पहले बोली कि स्थानीय लोग उन्हें कार्बेट नहीं बल्कि कारपेट साहब या गोरा साहिब या फिर गोरा साधू के नाम से जानते थे. बारह साल की बच्ची जब यह सब बोले तो लाजिमी है उसके प्रति आपका एक बिशेष आकर्षण होना. मैने तपाक से अवनि से पूछा कि आप कितना जानती हैं जिम कार्बेट को?


फिर क्या था अवनि की फिंगर टिप्स में जिम कार्बेट द्वारा लिखी गयी दर्जनों किताबें उनके माता पिता मिसिज मैरी कार्बेट व मिस्टर क्रिस्टोफर कार्बेट बड़ा भाई टॉम और उनकी जीवन सम्बन्धी पूरी बायोग्राफी/कुंडली थी. आखिर बहनों ने (राखी काला जोशी/रेखा पंचभैय्या) अवनी व हिमांशु ने योजना बनाई कि क्यों न हम ऐसे शिकारी के शिकार पर निकले!
रिमझिम बारिश व मल्ली ताल से अयार कैंप का अँधेरा रास्ता जो पेड़ों के कारण सूरज की रौशनी से छुपा रहता है. फिर आज तो सूर्य भगवान बादलों की ओट से निकले भी होंगे हमें सुबह से ही प्रतीत नहीं हुआ क्योंकि पूरे दिन रिमझिम सावन अपने गीत गाता रहा. बस अवनि हमारी गाइड थी. वह मुझे जहाँ वाइल्ड लाइफ मैन या विश्व प्रसिद्ध नरभक्षी के शिकारी पर अपना लेक्चर देकर गाइड कर रही थी वहीँ राखी व रेखा दोनों बहने नैनीताल के विभिन्न स्थलों उनकी उपयोगिता की सारी जानकारियाँ देकर अपने खूबसूरत शहर से रूबरू करवा रही थी.


(ब्रिलेंट अवनि जिम कॉर्बेट की बहन मैगी की कुर्सी में व उसके वाध्य यंत्र )
हम लगभग 6:30 बजे के आस-पास गर्नी हाउस पहुंचे. जहाँ हल्की रौशनी में एक टेम्पो किस्म की महेन्द्रा गाडी में कुछ सामान लोड हो रहा था. मैंने यूँ किसी के घर में घुसने पर हिचक दिखाई लेकिन अवनी, राखी और रेखा तीनों धड़धड़ाती गर्नी हाउस में घुस गयी. फिर लौट कर मुझे भी साथ ले गयी. मैं हिचक के साथ अंदर गया बरामदे में सामान अस्त-ब्यस्त देखकर पता लगा कि टीवी “लाइफ ओके” के धारावाहिक “गुनाह” की यहाँ शूटिंग अभी अभी समाप्त हुई. हम दूसरे रास्ते से जब घर के अंदर प्रवेश हुए तो मैं हतप्रभ रह गया. हर कमरे में जिम कार्बेट की यादों को संजोये रखने के अथक प्रयास किये गए थे. चाहे उनकी उसकाल की कुर्सी रही हो जब उन्हें डाक्टर ने सलाह दी थी कि अब आप आराम कुर्सी पर ही लाइफ टाइम वक्त गुजारेंगे या फिर उनकी बहन मैगी के लिए स्पेशल बनाई गयी कुर्सी! सभी ऐसे लग रहा था मानो कल की ही बात हो. दीवारों पर जड़ाऊ व बारासिंघा के सींग जहाँ एक शिकारी के आलम की भव्यता दर्शा रहे थे वहीँ ठंड से बचने के लिए आज भी चिमनियों के निचले छोर पर सजी अलाव की लकडियाँ उस काल की यादें ताजा करने में कोई कोर कसार नहीं छोड़ रही थी. सच कहें तो ऐसा महसूस हो रहा था मानों हम बस जिम कॉर्बेट के आने का ही इन्तजार कर रहे हों.
(1-गर्नी हाउस और दूसरी जिम कॉर्बेट संग्रहालय कालाढून्गी)
यह अजीब संयोग नहीं तो और क्या हो सकता है कि आपको एक भव्य इमारत आज से लगभग ढाई सौ साल पहले के अपने अतीत की स्वर्णिम यादों को वर्तमान परिवेश के साथ ताजा करने में सक्षम हो. ऐसा ही कुछ हमें भी महसूस हो रहा था. मेरे कैमरे की हर क्लिक से मुंह से निकला – वाह और ओह कभी होंठों को फैला रहा था तो कभी गोलाकार बना रहा था. समय ज्यादा हो गया था इसलिए हमने गर्नी हाउस से इजाजत ली और कालेज रोड से निकलते हुए पुनः अयार कैंप की चढ़ाई चढ़ने लगे. मेरा बिलकुल मन नहीं था कि मैं अयार कैंप इस अँधेरे में जाऊं क्योंकि वहां कुछ दिखाई भी देगा इसकी पांच प्रतिशत ही उम्मीद थी. लेकिन अवनि के बढ़ते कदम भला उसकी माँ बड़ी माँ व अन्य कोई रोक सकता था. मैंने महसूस किया कि एक माँ ही ऐसा कर सकती है कि ण चाहते हुए भी बेटी की खुशियों का ख़याल रखे. बाप अक्सर मना कर देता और फिर नो का मतलब नो ही होता. खैर वहां से लौटते हुए हम सब अपनी अपनी पसंद के गीतों को गाते हुए आगे बढ़ रहे थे क्योंकि मौसम और ढाल पर उतरते रास्ते में टिमटिमाते बिजली के बल्बों व सुनसान राहों की वीरानी चीरने की इस से अच्छा जरिया कोई नहीं था! मैं मन ही मन अवनि के इस प्लान की प्रशंसा कर रहा था क्योंकि गर्नी हाउस ने मेरे विगत 10 दिनों की नेपाल, पिथौरागढ़, घोडाखाल, नैनीताल की थकान मिटा दी थी. उस से अधिक रोचक यह था कि इस 12 साल 12 दिन की बिटिया ने अपने अध्ययन से मुझे अंदर तक झकझोर दिया था. क्योंकि इतनी कम उम्र में जिम कॉर्बेट जैसे व्यक्तित्व को फिंगर टिप्स में याद रखना बेहद दुर्लभ कार्य है.
(फोटो जर्नलिस्ट राजीव काला जिम कॉर्बेट के स्टेचू के साथ)
अवनि इत्तेफाक से 12 साल 12 दिन में जन्मदिन का दूसरा केक काटकर खिलाने वाली हमारी चहेती बिटिया भी हुई क्योंकि तब हाईफीड सोसाइटीज के उदित घिल्डियाल व कमल बहुगुणा भी राजीव काला के आमन्त्रण पर उनके घर पहुंचे. व अवनी के जन्मदिन के पोस्टर दिवार पर टंगे देख एक केक और ले आये तब पता लगा कि हम दुबारा केक 12 दिन बाद काट रहे हैं. यह अजब संयोग ही कहा जा सकता है.
अब आते है अवनि के उस ज्ञान की चर्चा पर जो उन्होंने मुझसे शेयर किया ! अवनि ने बताया कि जिम कॉर्बेट का असली नाम जिम कॉर्बेट नहीं बल्कि एडवर्ट जिम कॉर्बेट था. वह शुरूआती दौर में रेलवे की एक छोटी सी नौकरी करते थे जिसमें वे अपने कुल्हाड़े से पेड़ों को काटा करते थे लेकिन तब वे चिंतित रहते थे कि इस तरह अंधाधुंध कट रहे जंगलों में निवास करने वाले पक्षी कहाँ अपना रेन-बसेरा बनायेंगे. इसी दुःख में वे हमेशा अपना टेंट पक्षियों के रहने के लिए रखते थे और अपने आप बाहर सोते थे. जिम कॉर्बेट के भाई टॉम कॉर्बेट ने उन्हें बन्दूक चलानी सिखाई.
(लेखक व उसकी मार्गदर्शक अवनि जोशी)
अवनि कहती है कि वह विश्वास के साथ कह सकती हैं कि जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 में नैनीताल में हुआ. उसके पीछे उनका तर्क है क्योंकि कालाढून्गी उनके पुरखों या माता पिता का शीत काल प्रवास होता था जबकि गर्मियों में या ग्रीष्मकाल में उनका पूरा परिवार नैनीताल होता था. अवनि का तर्क अपने आप में यह साबित करता है कि सचमुच यह बेटी अपने पिता मनीष जोशी की तरह बेहद कुशाग्र है. मनीष जोशी विश्व के पहले ऐसे शख्स हुए जिन्होंने दून स्कूल की पढ़ाई के दौरान मात्र 14 बर्ष की उम्र में अपने तरह का एक ऐसा हैलीकाप्टर का आविष्कार कर दिया जिसे उड़ाने के लिए विदेश से बिशेष पायलेट तब भारत आये थे.
अवनि बताती हैं कि कालाढून्गी के कुंवर सिंह नामक व्यक्ति ने जिम कॉर्बेट को पेड़पर चढ़ना, आग से डर भगाना इ जंगली रास्तों पर चलना सिखाया. जिम अपने कुत्ते मैगौक के साथ अक्सर घुमने निकला करते थे. शुरूआती दौर में अपनी गन से चिड़ियों का शिकार करने वाले जिम कब विश्व प्रसिद्ध शिकारी बन गए यह उन्हें अपनी रेलवे की नौकरी के दौरान ही पता चला.
पेड़ काटने की नौकरी के कुछ बर्ष बाद उनकी मेहनत व लगन से प्रभावित हुए अंग्रेज अफसर ने उन्हें रेलवे में ट्रांसशिपमेंट इंस्पेक्टर बना दिया जिसमें उन्होंने लेबर क्लास की वकालत करते हुए उनके हक की लड़ाई लड़ते हुए कागज़ चलाये व उनकी वेतन वृद्धि की मांग की जो स्वीकार हुई. तब उनकी उम्र मात्र 21 बर्ष बताई गयी है. उनके इस कदम से वे पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए और उनके अधीन कर्मचारी उन्हें कारपेट साहिब के नाम से जानने लगे. सन 1907 में रेलवे की छुट्टी के दौरान अपने घर नैनीताल आये जिम कॉर्बेट को तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर नैनीताल का बुलावा आया और उन्हें चम्पावत के नरभक्षी बाघ को मारने की जिम्मेदारी सौंपी. अवनि बताती है कि पहला टाइगर मारने के बाद पारितोषिक के रूप में मिले इनाम से उन्होंने गर्नी हाउस खरीदा जो आज भी बुलंदियों पर है. इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि गर्नी हाउस से पहले अपने गर्मियों के प्रवास में नैनीताल में कहाँ जिम कॉर्बेट के परिवार वाले रहते थे इसका अनुमान लगाना कठिन है.
(गर्नी हाउस)
जिम कॉर्बेट को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लन्दन जाना पडा वहां से लौटने के बाद जब उन्होंने कुमाऊँ के पुराने प्राकृतिक सौन्दर्य में आये बदलाव को देखा तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ. तब उनकी उम्र लगभग 44 बर्ष हो गयी थी. वे नैनीताल मुनिसिपल बोर्ल्ड के वाईसचेयरमैन नियुक्त हुए तो उन्होंने सर्व प्रथम जहाँ एक ओर गधों और खच्चरों की भी मनुष्यों की तरह एक दिन काम की छुट्टी रखी वहीँ नैनी झील में नाईट फिशिंग पर रोक लगा दी. यहाँ भी उनका विरोध हुआ लेकिन अंततः उनके तर्कों के आधार पर यह प्रस्ताव मुनिसिपल बोर्ड को मानना ही पड़ा. उन्होंने झील के किनारे एक बैंड स्टैंड भी बनाया जो आज भी ज्यों का त्यों है.
(जिम कॉर्बेट द्वारा बनाए गए बैंड स्टैंड का पुनः जीर्णोद्वार किया गया लेकिन उसके यथार्थ को नहीं छेड़ा गया)
अवनि ने बेहद रहस्यमयी ढंग से बताया कि क्या आप जानते हैं कि जिम कॉर्बेट विश्व के पहले वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर व वाइल्ड लाइफ मूवी मेकर हैं? सचमुच यह अनभिज्ञता ही नहीं मुझे जितनी भी जानकारियाँ मिल रही थी वह मेरे लिए भेद नयी और रोचक थी. अवनि की इस बात को सुनकर उसके सुप्रसिद्ध फोटो जर्नलिस्ट मामा व वाइल्ड लाइफ के चितेरे राजीव काला दोनों हाथ जोड़कर बोले- वाह अवनि, तूने सचमुच बड़ी नयी बात बता दी. अवनि अपनी रौ में थी उसने बताया कि 1921 में जिम कॉर्बेट के गन के साथ उनका स्टिल कैमरा शामिल हुआ जबकि 1928 में मूवी कैमरा शामिल हुआ. वे विश्व के पहले वाइल्ड लाइफ मूवी मेकर बने.
उन्होंने उस दौरान एक पत्रिका भी शुरू की जिसका नाम “ इंडियन वाइल्ड लाइफ “ था और उस पर उन्होंने सन 1929-30 में लिखा-“ बाघ बड़े ह्रदय का भलमानुष है. उसमें अपार साहस है. जब उसे मारा जाता है, जब उसका वंश समाप्ति की ओर होगा, तब भारत बेहद गरीब माना जाएगा जब वह अपने वन्य जीव की बेहतरीन प्रजातियाँ खो देगा”!
नैनीताल में जब भी जिम कॉर्बेट होते थे तब वे माल रोड के आर नारायण की बुक शॉप से किताबें खरीदा करते थे. वर्तमान में बुक शॉप के मालिक दीपक तिवारी (प्रदीप) बताते हैं कि वे आज भी जिम कॉर्बेट की लिखी सभी किताबें प्राथमिकता के आधार पर बेचते हैं आप देख लीजिये मेरे सामने उनकी लिखी किताबों के लगभग सारे एडिशन मौजूद है!
(आर नारायण बुक शॉप व उसके मालिक तिवारी जी)
तब भले ही लोगों ने उनकी हंसी उड़ाई क्योंकि उस काल में भारत में विश्व के सबसे दुर्लभ वन्य प्राणी रहते थे. बाघों की संख्या अधिक थी लेकिन आज उनके ये शब्द सार्थक नजर आते है. क्योंकि वन विभाग ही नहीं बल्कि उनके अम्बेसडर भी “ सेव टाइगर, सेव टाइगर” के नारे लगाते नजर आ रहे हैं.
जिम कॉर्बेट बर्ष 1932 में जब रामगंगा में फिशिंग कर रहे थे तब तत्कालीन गर्वनर हैली से उन्होंने इच्छा जताई कि क्यों न इस क्षेत्र को नेशनल वन्य पार्क बनाया जाय! हैली ने उनके इस सुझाव पर अमल करते हुए 300 किमी बर्गाकार क्षेत्र को हैली नेशनल पार्क एक रूप में तब्दील कर दिया. यह पूरे भारत की पहली वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के नाम से जाने जाना वाला क्षेत्र कहलाया. आज यही क्षेत्र जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के रूप में प्रसिद्ध है.
जिम कॉर्बेट इस बात से व्यथित थे कि वन्य जीवों के प्रति यहाँ के मानव व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं है. वह अखबार के माध्यम से इस बात को उठाते भी थे लेकिन उसका बिशेष प्रभाव नहीं पड़ा. उनसे एक साल बड़ी उनकी सबसे चहेती बहन मैगी ने उन्हें सलाह दी कि क्यों न वह अपनी बातें स्कूली बच्चों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने के लिए करें. मैगी का सुझाव उन्हें अच्छा लगा और वे अपनी फोटो व मूवी को चलचित्र पर दिखाने के लिए उत्सुक हुए. 4 माह के अथक प्रयास से वह नैनीताल में छोटी सी भीड़ जुटाने में सफल हुए . उन्होंने बच्चों को पक्षियों की आवाजें भी मिमिकरी के माध्यम से सुनाई. जिसका परिणाम सार्थक निकला और धीरे धीरे वन्य पशुओं के प्रति मानव रुझान विकसित होने लगा.
अवनि बताती है कि 1926 से 1938 तक जिम कॉर्बेट ने सबसे अधिक नरबक्षी बाघों का शिकार किया . लेकिन रुद्रप्रयाग व चौगढ में बाघ मारने के लिए उन्हें सबसे अधिक समय लगा. ज्ञात हो कि रूद्रप्रयाग के आदमखोर ने पहली बार 9 जून 1918 में बैंजी गाँव व 14 अप्रैल 1926 में अंतिम शिकार भैन्स्वाड़ा गाँव में किया. इस दौरान वह 125 लोगों को मौत की नींद सुला चुका था! रुद्रप्रयाग के नरभक्षी को मारने के बाद जिम कॉर्बेट विश्व प्रसिद्ध हो गए क्योंकि यह खबर तब विश्व भर में अमेरिका, इंग्लैण्ड, कनाडा, दक्षिण अफ्रिका, कीनिया, मलाया, हांगकांग और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने प्रमुखता से छापी.
जब जिम कॉर्बेट 60 बर्ष की उम्र में थे तब उन्हें ठाक के आदमखोर को मारने के आदेश प्राप्त हुए. उनकी बहन मैगी ने उन्हें यह सब करने से साफ़ मना किया लेकिन उन्होंने अपनी बहन को वचन दिया कि वे मात्र एक हफ्ते के अंदर उसे मार गिराएंगे और उसके बाद कभी बन्दूक नहीं उठाएंगे. 24 नवम्बर 1938 को वह बाघ की ढूंढ में निकल गए लेकिन लाख कोशिश के बाद भी बाघ का सुराग नहीं लगा पाए आज उनके वचन की अंतिम तिथि यानि 30 नवम्बर 1938 था वे बड़े परेशान बेचैन व बीमार थे. तबियत इतनी खराब हुई कि वे मरते मरते बचे लेकिन अंतिम बाघ मारने में वे इस दिन सफल हुए.
(जिम कॉर्बेट की आराम कुर्सी)
नैनीताल में तत्कालीन गवर्नर हाउस में डिनर आयोजन पर बुलाये गए जिम कॉर्बेट को जब गवर्नर की श्रीमती बाईलेट हैग ने कहा कि क्यों न आप अपनी बायोग्राफी लिखते ताकि देश दुनिया आपकी जीवटता की मिशालें याद रखें. कहते हैं जिम कॉर्बेट को पहले यह सब लिखने में शर्म महसूस हुई लेकिन जब उन्होंने लिखना शुरू किया तो पूरी दुनिया उन्हें पढने के लिए बेताब नजर आई. लेकिन उनका किताब लिखने का अनुभव शुरूआती दौर में बेहद ख़राब रहा क्योंकि उनकी प्रथम पुस्तक “मैनईटर ऑफ़ कुमाऊँ” लिखते समय ही उन्हें टिकटाइपिस” नामक बीमारी हो गयी और वे अपंग से हो गए. तीन माह अस्पताल में गुजारने के बाद डॉक्टर ने उन्हें सलाह दी कि अब उन्हें पूरी जिंदगी व्हीलचेयर पर गुजारनी पड़ेगी लेकिन अपने जिद और जूनून के पक्के जिम कॉर्बेट ने घर पर व्यायाम या योग के माध्यम से अपने आप को कुछ ही महीनो में फिट बना दिया और अगस्त 1944 में “मैन ईटर ऑफ़ कुमाऊँ” प्रकाशित हुई और प्रकाशित होते ही इतनी प्रसिद्ध हुई कि देश व विदेश में 25 भाषाओं में इसकी प्रतियाँ छपी.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें 69 साल की उम्र में लेफ्टिनेट कर्नल बनाकर वर्मा/ छिंदवारा भेजा गया ताकि वे जवानों को बिषम परिस्थियों में लड़ना सिखा सकें. उन्होंने जवानों को प्रकृति से प्यार करना सिखाया व सीटियों की भाषाओं में पक्षियों के संग वार्तालाप करने का एक बिशेष तरीका भी इजाद किया. 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर उन्हें घर भेजा गया!
उनकी दूसरी पुस्तक “मैन ईटर ऑफ़ रुद्रप्रयाग” लिखी . उन्होंने अंतिम नरभक्षी लाध्या नामक स्थान में मारा तब वे 71 बर्ष के थे. सिर्फ जिमकॉर्बेट ही नहीं बल्कि उनके तमाम परिवार वाले स्थानीय भाषा में यहाँ के स्थानीय गढ़वाली कुमाउनी जनमानस से बात किया करते थे. फिर वह समय भी आया जब जिम कॉर्बेट को हिन्दुस्तान को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कहना पड़ा. 1947 में स्वतंत्र भारत के समय उनकी उम्र दराज बहन ने उन्हें कहा भी कि उन्हें नैनीताल कालाढून्गी से बेहद प्यार है लेकिन वे नहीं माने क्योंकि वे उसके जीवन का कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे. 1948 में वे व उनकी बहन मैग्गी दक्षिण अफ्रिका के लिए निकल गए व कालाढून्गी की अपनी समस्त जायदाद वहां रह रहे जनमानस के नाम कर गये. जिन्हें यहाँ के अधिकतर लोग खूनी कारपेट के रूप में भी पुकारते थे.
अवनि अपनी आँखों का चश्मा उतारकर कहती है- आपको पता है दक्षिण अफ्रिका जाकर भी वह कालाढून्गी की जमीन के टैक्स भेजते रहे ताकि गरीब भारतीयों पर उसका बोझ पड़े. फिर अपने नाना कामेश्वर प्रसाद काला की ओर अग्रसर होकर बोली- नानाजी आप जानते है कि जिम कॉर्बेट ने अफ्रिका जाकर 6 किताबें और भारत पर लिखी व 19 अप्रैल 1955 में एक मेजर हार्टअटेक के समय उन्होंने दिन में मरने से पहले अपनी विल कुमाऊँ के लोगों के नाम लिखी व अपनी बहन मैगी से अंतिम शब्द क्या कहे! फिर थोड़ा खामोश होकर बोली- “ ALWAYS BE BRAVE MY DEAREST SISTER AND TRY TO MAKE A HAPPIER PLACE FOR OTHER’S TO LIVE.”उनकी मौत के दो साल बाद यानि 1957 में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा हैली नेशनल पार्क की 300 बर्ग किमी. जमीन को बढ़ाकर 520 किमी. बर्ग किमी. कर उसका नाम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया व 1968 में कालाढून्गी उनका आवास कॉर्बेट संग्रहालय के रूप में बनाया गया.
कहा तो ये भी जाता है कि इनके परिवार में न इनकी बहन, न भाई टॉम व खुद जिम कॉर्बेट ने शादी नहीं की लेकिन यह भी कहा जाता है कि जिम कॉर्बेट के किसी महिला से अन्तरंग सम्बन्ध रहे हैं. गर्नी हाउस आज डालमिया की सम्पत्ति है कहते हैं यह हाउस उन्होंने अपनी पोती को गिफ्ट किया था. इस घर में रखी फोटो पहले वर्मा परिवार से जुडी हुई बताई जाती हैं. बहरहाल गर्नी हाउस की यह यात्रा जिम कॉर्बेट के पूरे जीवन वृत्त को चंद शब्दों में 12 बर्ष 12 दिन की बेटी बयाँ कर जायेगी यह मेरे लिए आश्चर्यजनक है. अवनि आप पर हमें गर्व है.