जादू की 400 साल पुरानी जादूई किताब आज भी है जौनसार के गुद्दी पंडित के यहाँ!
जादू की 400 साल पुरानी जादूई किताब आज भी है जौनसार के गुद्दी पंडित के यहाँ!
(मनोज इष्टवाल)
जिस किताब के पन्ने पलटने से पहले ही उसके ज्ञाता के हाथ कांप रहे हों जिस किताब के आखर पढने के लिए उसकी लिपि के ज्ञाता भी चकरा जाते हैं! जिस किताब ने जाने कितनी सदियों से गुद्दी पंडित के पूर्वजों के हाथों अपने पन्ने पलटवाये! ऐसी ही 4०० बर्ष पुरानी जादुई किताब आज भी जौनसार क्षेत्र के जाने माने ज्योतिष व बागोई /पोथी के ज्ञाता गुद्दी पंडित के वंशजों के पास मौजूद है! इस किताब से कश्मीरी, जोयशा, बुक्साडी सहित दर्जनों काले जादू की विधाओं का निस्तारण किया जाता है!
जौनसार के मयफाऊटा गाँव के पंडित केशव राम जोशी के घर मौजूद इस जादुई किताब का इतिहास उसी की तरह जादुई है! जिसमें छीन्गा दोष, सोज सहित उस हर जादू का निवारण होता है जो कालान्तर में इस क्षेत्र में ब्यापक रूप से प्रसिद्ध था ! इस पुस्तक में वे सभी रहस्य छिपे हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष नहीं देख पाते लेकिन ये विद्यायें ऐसी हैं कि आपके घर के सारे वर्तन गिन दें! आपका चुल्हा किस दिशा में है घर के किस ब्यक्ति पर क्या रोग दोष है उसका क्या निवारण है इसके सांचे के चलते ही वह सब निकल आते है!
साँचा डालने का समय है जिसमें दोपहर से पहले चार भाग व दोपहर बाद सात भाग में आप साँचा डाल सकते हैं! साँचा की दो किस्म होती हैं जिसमें पहला साँचा गरुड़ की हड्डी, गरुड़ पंखी का होता है जबकि दूसरा काखड की सींग या लकड़ी धातु का होता है! पंडित केशो राम जोशी बताते हैं कि पुरातन काल से एक मूर्ती इस बागोई जादुई पुस्तक के साथ उनके पास है! उनका मानना है जबसे यह विद्या उनके खानदान में आई तब से लेकर अब तक यह मूर्ती उनके पास है! मूर्ती हमेशा बंद रखी जाती है क्योंकि उसके खुलते ही उसे बलि चाहिए होती है!
(पंडित सुरेश व अरविन्द के साथ उनकी 400 बर्ष पुरानी बागोई/पोथी के साथ)
वे बताते है कि सन 1961-62 की बात है तब उत्तरकाशी जनपद की सीमा से लगा बिरला गाँव हुआ करता था जो लाखामंडल और नौगाँव के बीच में सड़क किनारे पड़ता था वर्तमान में उजड़कर अबी मंज्याडी चला गया! तब गुद्दी पंडित का परिवार हिंदी का एक आखर भी नहीं जानता था जैसे तैसे बकरियां चुगाकर अपना भरण पोषण करते थे! लेकिन इस जादुई पोथी व बागोई विद्या के कारण उनकी आज भी 50 गाँवों में पंडिताई है! उनके पौत्र बताते हैं कि तब बिरला गाँव में पूजा करने गये थे तो पहली बार उन्होंने काली मूर्ती को रक्त पीते हुए देखा था! उनके पौत्र अभी लगभग 70 बर्ष के हो गए हैं! उन्होंने कहा कि जब डाको (जहाँ तन्त्र मन्त्र किया जाता है) में पाटी (बिन ब्याही बकरी) मारी गयी तब उसके खून को एक कांस की थाली में इकठ्ठा किया गया और टूल (लाल कपड़ा) में ढकी काली की शेर सवार मूर्ती निकाली गयी तब उन्होंने उस मूर्ती को पहली बार देखा था! मूर्ती को खून से भरे कांस के बर्तन में रखा गया और उपर से लाल कपडे से ढक दिया गया कुछ देर बाद कपड़ा हटाया तो देखा मूर्ती ने वह सारा खून पी लिया और कांस का वह बर्तन चमचमाने लगा! कहते हैं कि उसी दौर में यहाँ के देवता ने बिरला गाँव वालों को आदेश दे दिया था कि वे अब यहाँ से कहीं अन्यत्र चले जाएँ क्योंकि यहाँ आपदा आने वाली है!
ये वही मैफाऊटा के पंडित हैं जिन्होंने किसी ब्यक्ति से एक कद्दू माँगा था तो मजाक में उस व्यक्ति ने कह दिया था कि पंडित हो जादू मन्त्र जानते हो एक का सारे ले जाओ! उन्होंने अक्षत डाले और सारे कद्दू उनके पीछे पीछे चल पड़े! यों तो जौनसार बावर के हर क्षेत्र में कश्मीरी विद्या के ज्ञाता रहे हैं जिन्हें बागोई, पोथी, बुक्साडी, साँचा सभी का ज्ञान था जिनमें सराई के पोड़ी कश्मीरी विद्या का अकूत ज्ञान था! इनमें मसेऊ, कैलोऊ (कुनैन) लोहारी, सुजोऊ, बिजोऊ व बावर क्षेत्र के चिल्हाड गाँव नरताण सुप्रसिद्ध रहे! नरताणों ने तो अपनी विद्या से कोटी-निगमा गाँव ही जला दिया था! इस विद्या के ऐसे कई किस्से हैं जिसमें पंडितों की आपसी रंजिश टकराव व मैं बड़ा तू छोटा जैसी कई घटनाएँ हुई हैं!
ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जिसमें सुजौऊ व मयफाऊटा के पंडितों के टकराव सामने आते हैं ! कहते हैं मयफाऊटा के पंडित ने सुजौऊ के पंडित को राम राम भेजी तो सुजौऊ के पंडित ने बोला- उसकी राम राम इस पत्थर पर! वह पत्थर दो टुकड़े हो गया! आज भी वह पत्थर सुजौऊ के आँगन में है! वहीँ सुजौऊ के पंडित व चिल्हाड़ के के नरताण पंडित के टकराव का जीता जाता उदाहरण जजरेट (कालसी साहिया मार्ग पर) नामक स्थान है जो लगातार गिरता ही जा रहा है!
कहते हैं कि नरताण पंडित अपनी पंडिताई से लौट रहा था तब जजरेट के पास उन्हें आवाज सुनाई दी कि ओ पंडत, कहाँ से आ रहा है! खबर सार होने के बाद पता चला कि आवाज देने वाला सुजौऊ का पंडत है तब नरताण समझ गया कि अब क्या होना है! सुजौऊ के पंडित ने कहा कि बैठ चिलम पी जा! नरताण ने चिलम के बहाने गन्थर (सफेद रंग का पत्थर) चुपके से उठाकर मन्त्र करने शुरू कर दिए! सुजौऊ के पंडित ने अपनी बगल में दबाई काखड की खाल हवा में उड़ाई और कहा – देख नरताण तू अगर खाल ढूंढ लाया तो तब मैं तुझे मानु और अगर नहीं ढूंढ पाया तो आज से जब भी मैं जिस रास्ते चलूं तू उसके नीचे रास्ते चलेगा! नरताण ने अपनी लाठी उछाली और उसे खाल ढूँढने भेज दिया! काफी देर होने पर भी जब न खाल आई न लाठी! तो सुजौऊ के पंडित बोले- नरताण आज से मैं गुरु तू चेला! नरताण हंसा व बोला – बस चिलम का आखिरी कश रह गया था वो देखो मेरी लाठी भी आ रही है और तुम्हारी खाल भी! लाठी खाल को पीटती हुई आ रही थी! इसके बाद सुजौऊ के पंडत ने कहा ये क्या हुआ कुछ ऐसा कर ताकि मैं मानु कि मैं हार गया! तू इतना ही जानकार है तो इस जगह को हिलाकर दिखा जहाँ हम बैठे हैं! नरताण ने कहा मैं हिला तो दूंगा लेकिन तू सम्भाल नहीं पायेगा! कहते हैं सुजौऊ के पंडत ने खिल्ली उड़ाई तो नरताण पंडित ने एक पत्थर उठाकर उसे अभिमंत्रित किया और पहाड़ पर चिपका दिया ! पहाड़ कांपने लगा व उससे पत्थर मिटटी गिरने लगी! नरताण ने सुजौऊ के पंडित को चिलम पकड़ाई और बोला- अब तू सम्भाल ! मैं चला..! लेकिन आज तक वह जगह लगातार बिन बरसात भी गिरती रहती है! (यह कितना सत्य है कहा नहीं जा सकता लेकिन ये किंवदन्तियाँ आज भी प्रचलित हैं) आज भी नरताण पंडित के वंशज पतिराम नरताण व गंगा राम नरताण इस विद्या के पारंगत माने जाते हैं व हाल ही में हिमाचल स्थित ज्योतिष सम्मेलन में पतिराम अपना बर्चस्व बनाये रखने में कामयाब रहे!
मैफाऊटा गाँव के गुद्दी पंडत के वर्तमान वंशज सुरेश जोशी व अरविन्द जोशी बताते हैं कि इस विद्या को संभाले रखना आसान काम नहीं है! इसीलिए ज्यादात्तर लोगों ने अपनी पोथियाँ हनोल स्थित महासू मंदिर में चढ़ा दी हैं! उनके पूर्वज हरिराम की दो पत्नियां हुई जो जिणाण खानदान से हुई जिनमे गुद्दी, नता, पंचिया व नारायण चंद हुए एक बहन ठाणा गाँव में शादी हुई! इनकी दो पत्नियों में एक बागो देवी हुई उनके बच्चे हुए लेकिन एक भी जीवित नहीं बचे! दूसरी पत्नी रणदेई हुई उनकी कोई औलाद नहीं हुई तीसरी पत्नी मंजगाँव से हुई उनसे मायाराम और शोभाराम हुए एक भाई की दुर्घटना में मौत हुई! कहते हैं कि यह विद्या जहाँ अपने तंत्र-मन्त्र से जीवन दायिनी है वहीँ उलटी पड़ जाए तो परिवार के परिवार ले डूबती है! वे बताते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब मयफाऊटा गाँव में पुत्र-पुत्री जन्म तो छोड़ो बकरियों से भी बच्चे जन्म लेना बंद हो गए थे! अंत में यह निर्णय हुआ कि दो सांचे ले जाकर हनोल महासू मंदिर में दो बकरों के साथ जमा कर आये फिर जाकर गाँव की बसागत शुरू हुई!
वर्तमान में सुरेश पंडित कहते हैं विद्या कोई भी हो उसका संरक्षण होना चाहिए ताकि हमारी पुरातन सभ्यता में ब्याप्त वह सच्चाई ज़िंदा रहे जिसे वैज्ञानिक युग में कपोल-कल्पित कहा जाता है! उन्होंने कहा साँचा की पढ़ाई होनी चाहिए जो भी इसका ज्ञाता बचा हुआ है उस से इसकी लिपि पढ़ाकर उसे संरक्षित करने की जरुरत है!
यकीनन 400 बर्ष पुरानी बागोई/पोथी का भी अगर हम संरक्षण कर पाते हैं तो इस से बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है! क्योंकि यह पुस्तक अब जर्जर हालत में है और इसके पेज गलने शुरू हो गए हैं! हमें इसे जीवित रखने के लिए कैमिकल का इस्तेमाल करना होगा व इस पुस्तक का रूपांतरण उतारकर इसे मूल में लाना होगा ताकि हम इन सुनहरे पन्नो का इतिहास अपनी धर्म संस्कृति व लोक समाज के साथ जीवित रख सके!