जागर साम्राज्ञी बसन्ती बिष्ट को मुख्यमंत्री ने दी शुभकामना।
देहरादून 21 जनवरी 2018 (हि. डिस्कवर)
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा उत्तराखंड की जागर साम्राज्ञी श्रीमती बसंती बिष्ट को लोक संगीत और कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किए जाने पर हार्दिक बधाई दी है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा देश की 48 महिलाओं को अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया है।

उतराखंड की जागर गायिका बसंती बिष्ट के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गयी है. बसंती बिष्ट को दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया है. गायिका बसंती बिष्ट ने कहा कि वो चाहती हैं कि कला को जीवित रखने के लिए सरकार को और अधिक काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोक कलाओं से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, जिससे लोककला के ख़त्म होने का संकट ख़त्म हो सके.
चमोली जिले के सीमांत गांव ल्वाणी में जन्मीं बसंती बिष्ट का 13 वर्ष की आयु में ही ल्वाणी निवासी रणजीत सिंह से विवाह हो गया। पति सेना में थे। एक दिन उन्होंने बसंती को जागर गुनगुनाते सुना तो विधिवत संगीत सीखने की सलाह दी। तब वह 32 वर्ष की थीं। पहले तो बसंती राजी नहीं हुई, लेकिन बाद में मान गईं।
पांच साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और 40 वर्ष की आयु में पहली बार जागर की एकल प्रस्तुति के लिए देहरादून के परेड मैदान में गढ़वाल सभा के मंच पर पहुंचीं। मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया, समूचा माहौल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने जागरों पर शोध भी किए। इसी का नतीजा है कि उन्हें मां नंदा के जागरों को किताब के रूप में संजोने में सफलता मिली। पति रणजीत सिंह बताते हैं कि बसंती के जागर गाने पर समाज में इसका खूब विरोध हुआ। वर्ष 1997 में तो उन्हें मंच से ही उतार दिया गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
पांच साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और 40 वर्ष की आयु में पहली बार जागर की एकल प्रस्तुति के लिए देहरादून के परेड मैदान में गढ़वाल सभा के मंच पर पहुंचीं। मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया, समूचा माहौल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने जागरों पर शोध भी किए। इसी का नतीजा है कि उन्हें मां नंदा के जागरों को किताब के रूप में संजोने में सफलता मिली। पति रणजीत सिंह बताते हैं कि बसंती के जागर गाने पर समाज में इसका खूब विरोध हुआ। वर्ष 1997 में तो उन्हें मंच से ही उतार दिया गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।