जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण अब हुए डॉ. प्रीतम भरतवाण! उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने दी मानद उपाधि!
जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण अब हुए डॉ. प्रीतम भरतवाण! उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने दी मानद उपाधि!
(मनोज इष्टवाल)
कुछ तो है इस कलावंत में! जिसने हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि विश्व भर की कई लोक संस्कृतियों को ब्रह्म नाद की थाप बजाकर अपनी अँगुलियों में थिरकने को मजबूर कर दिया! यूरोप एशिया के लगभग 12 विश्वविद्यालयों में ढोल की पाठशाला चला रहे जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण का लोहा आखिर उसके प्रदेश ने भी माना और उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से अलंकृत करते हुए जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण बना दिया!
जागर ,पवांडॉ, ढोल सागर ढोल दमों, हुड़का डौंर थाली के बिशेषज्ञ प्रीतम भरतवाण को उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा महामहिम राज्यपाल के हाथों उनके द्वारा किये जा रहे अनूठे कार्यों के लिए मानद उपाधि से सम्मानित किया गया!
विकास खंड रायपुर देहरादून के सिला गाँव में जन्मे प्रीतम भरतवाण के पूर्वज कभी कुमाऊँ से आकर टिहरी में बसे व वक्त के साथ पुनः आकर देहरादून जनपद के सिला गाँव में आ बसे! प्रीतम के अनुसार औजी परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें जागर व पवांडॉ, ढोल सागर ढोल दमों, हुड़का डौंर थाली विरासत में मिले! उन्होंने अपनी विरासत को 6 बर्ष की उम्र से ही थाली/धौंसी/भाणा बजाकर संभालना शुरू कर दिया था! और यहीं से शुरू हुआ उनका जागर, पांवड़े, लोकगीतों का सफर! दादा, पिताजी के गायन के हर बोल उन्हें कंठस्थ होते रहे! मसूरी के एक इंग्लिश स्कूल से पढ़ाई करने वाले प्रीतम जब भी किसी ख़ास पर्व पर गाँव जाते तो उन्हीं के साथ अपनी वृत्ति के व्यवहारिक पहलुओं को समझने लगते! प्रीतम बहुत गर्व के साथ कहते हैं कि उन्हें ढोल ने जो सम्मान दिया है वह अकल्पनीय है! हम अपनी विधा पर जब तक गर्व महसूस नहीं करेंगे तब तक वह हमें सम्मान कहाँ से देगी!
डॉ. प्रीतम भरतवाण ने कक्षा तीन में पढने के दौरान सबसे पहले रामी बौराणी नामक नाटक में अपने बालकंठ का गीत गाया! 12 बर्ष की उम्र में अपने जीजा जी व चाचा जी की प्रेरणा से पहली बार पांवड़ा, जागर को गाया! वे उस अनुभव का बखान करते हुए कहते हैं कि शादी ब्याह के कार्यक्रमों में अक्सर बारात में यह सब गाना पड़ता था उस दिन भी वह बारात में गए थे! पूरी रात जगने के कारण चाचा जी थक गए थे! प्रातः तीन बजे उन्होंने कहा- मैं थक गया हूँ अब तू ढोल टांग और पांवड़ा गाना शुरू कर! बस वो दिन था और आज का दिन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा!
डॉ. प्रीतम भरतवाण के सुर को सबसे पहले रामा कैसेट कम्पनी ने बाजार में उतारा! सन 1995 में उनका पहला ऑडियो “तौंसा बौ” बाजार में आया जिसने आते ही धूम मचा दी! लेकिन “सरुली मेरु जिया लागी ग्ये” गीत ने उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता दी!
Bahut sunder