जलकर राख हुए सिंगौर गाँव के सुमेरु के परिवार के लिए आस की किरण साबित इंद्र सिंह नेगी!
(मनोज इष्टवाल)
इस फरवरी ने जहाँ पर्वत क्षेत्र उत्तरकाशी के गाँव सावणी को जलाकर राख किया वहीँ जौनसार बावर की खत्त कोरु के सुमेरु दास का घर भी इसी फरवरी ने लील दिया! धूं-धूं करके आँखों के सामने स्वाहा होते घर का नजारा देखने के अलावा सुमेरु दास व उसके परिवार कुछ नहीं बचा था. आग में पानी डालने के लिए सिर्फ उनके पास आंसुओं का खारा समन्दर था जो सुबकियों हिचकियों में जल रहे अपने अरमानों की चिता की लपटों के साथ सूखते जा रहे थे! यूँ अचानक मकान में लगी आग ने जाने सुमेरु दास के पुरखों की इस अमानत और पाई पाई कर जोड़े सपनों के संसार को घंटे भर में राख करने में देरी क्यों नहीं लगाईं! जब तक लोग बचाव के लिए दौड़ते तब तक पूरा मकान जलकर धाराशायी हो गया था! राशन, पानी, लत्ते-कपडे, जर-जेवर सब पंचतत्व में लीन हो गए!
(समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी व साथ गूँज संस्था के कार्यकर्ता)
ऐसे में देवदूत की भूमिका में एक शख्स सामने आया ! उसने न सिर्फ परिवार को ढांडस बंधाया बल्कि सोशल साईट पर परिवार के बुरे वक्त में साथ देने के लिए सहयोग की अपील भी की ! देखते ही देखते जौनसार बावर का जनसमुदाय ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों से यथासम्भव सहयोग के हाथ बढ़ने लगे! लेकिन सहयोग के लिए वे लोग जाने कहाँ छुप गए जो हरिजन हिताय बहुजन सुखाय की बात कर राजनीति करते हैं! गूँज नामक संस्था के साथ जुड़कर इंद्र सिंह नामक समाजसेवी सेवी ने हर सम्भव प्रयास किया कि ऐसे में दाताओं के बढ़ते हाथों की पारदर्शिता को अपनाना जरुरी है! उन्होंने सीधे सुमेरु दास का अकाउंट नम्बर सोशल साईट पर डालकर उसी में आर्थिक सहायता डालने की मांग की!
ज्ञात हो कि जौनसार के नागथात क्षेत्र के इंद्र सिंह नेगी वर्तमान में इंटर कॉलेज नागथात के प्रबन्धक भी हैं और समाजसेवा में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाते हैं! घटना के बारे में वे बताते हैं कि 16 फरवरी को जब कालसी विकासखंड के बैराटखाई के समीप सिगौंर गांव में आग से घर जलने की सूचना मिलने पर गूँज के साथ तत्काल वहां के लिए निकल पड़े, वहां पहुंचते-पहुंचते अंधेरा घिर चुका था लेकिन जलते हुए घर की चौंध दूर तक पहुंच रही थी । अड़ोस-पड़ोस के लोगों से घिरे सुमेरू दास, उनके मायुस बच्चें व पत्नी के आंखो की निराशा आसानी से पड़ी जा सकती थी, सुमेरू की पत्नी सुप्पी देवी ने रोते हुए बताया कि “साब कुछ नहीं बच पाया, जो कपड़े पहने हुए थे अब वही है रह गए बस” । हमने गूंज के साथियों के साथ घर का कई तरह से निरीक्षण किया बचाने लायक कुछ नहीं बचा था । आग की तपिश दूर तक महसूस की जा सकती थी, थोड़ी देर लोगों से बातें की और एक पीड़ादायक तश्वीर मन में ले कर घर लौटे । मन दु:खी था फेसबुक पर पोस्ट डाली, लोगों की प्रतिक्रियाएं आई, रात को ठीक से नींद नहीं आई, कई बार आंख लगी और खुलती रही ।


(सुमेरु दास व उनका परिवार अपने जलकर ख़ाक हुए मकान में)
इस बीच लगभग 9 विवाह समारोह में शरीक हुआ लेकिन ध्यान सुमेरू व किस प्रकार और किससे सहयोग के लिए बातचीत की जा सकती है मदद के लिए इस ओर लगा रहा व फोन के कीबोर्ड पर अंगुलियां भी चलती रही । इसका परिणाम ये हुआ कि अनेक लोगों ने फेसबुक, व्ह्ट्सअप्प व काल कर मदद की सूचना दी या पेशकश की! अभी तक न्यूनतम रू 100 से लेकर अधिकतम रू 5100 को मिलाकर रू 30,400 प्राप्त हो चुके है! रू 4100 नगद, इसी के साथ मुझे बताया गया कि रू 30,000 राजकीय इन्टर कालेज मुन्धान के टीचर्स ने व रू 25,000 स्थानीय विधायक श्री प्रीतम सिंह द्वारा राहत के रूप में प्रदान किये है ।



(चलती का नाम जिन्दगी)
खाने-पीने-ओड़ने-बिछाने, भाण्डे-बर्तन, कपड़े आदि अलग-अलग माध्यमों से लोगों से उपलब्ध करा दिया, हमारे कुछ अन्य मित्रों ने भी भवन निर्माण सामग्री में सहयोग का आश्वासन दिया है । घर कैसे बनेगा इसके लिए आप सभी के सुझाव व सहयोग अपेक्षित है ।
बहरहाल चलती का नाम जिंदगी है ! गरीब सुमेरु दास इस त्रासदी के बाद अभी कितने साल तक यह अपना घरौंदा बना पायेगा इसका अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के साथ कपडे, रजाई गद्दे, व राशन के साथ एक डेढ़ लाख की नगदी इंद्र सिंह व अन्य क्षेत्रीय समाजसेवियों ने जुटाकर इस परिवार के लिए दे ही दी है! ऐसे दानियों में कितने नाम शामिल हैं वह तो नहीं पता लेकिन इंद्र सिंह जैसे समाजसेवी अगर हर समाज में पैदा हो जाएँ तो समाज का स्वरूप ही बदल जाय! साथी हाथ बंटाना, एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना ! वाली कहावत यहाँ चरितार्थ हुई है!
यहाँ बिना किसी का नाम लिए इंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि हम यूँ तो शिल्पकार या हरिजन के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकते आते हैं लेकिन आश्चर्य कि इस समय ऐसा कोई संगठन दूर दूर तक नहीं दिखा जो इस गरीब परिवार की मदद के लिए हाथ बढ़ा सके!