जम्मु-कश्मीर एक …………नई सुबह।

(साहित्यकार व कवि दिनेश ध्यानी)

(दिनेश ध्यानी की कलम से)

पहले सोचा कुछ नही लिखूंगा। नाहक कुछ लोग नाराज होते हैं कि तुम साहित्यकार हो और राजनीति की बातें करते हो। कुछ लोग तो धमकीभरे अंदाज में भी गरियाते हैं। लेकिन पूरे दिन सोच विचारकर लगा कि नहीं इस मौंके पर मन की बात हमें भी कहनी चाहिए। कोई सुने, न सुने। किसी को अच्छी लगे न लगे लेकिन देश के एक नागरिक होने के नाते अपनी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। जम्मू-कश्मीर में दशकों से अपने घरों से बाहर रह रहे लोगों के दर्द को हमारे हजारों वीर जवानों की शहदत को कैसे भुला सकते हैं। हम भी बुद्धिजीवी लोगों की तरह अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लेंगे हो बुद्धिजीवी का लबादा ओढकर, समाजवाद की बात करकें अपनी पूंजी बढ़ाते रहते हैं और दूसरों को उपदेश देकर हमेशा अपने ही स्वार्थ और निजीहित में लगे रहते हैं तो फिर अन्तर क्या रह जायेगा। वे लोग तो आज भी इस फैसले को पचा नहीं पा रहे हैं। अपने-अपने तर्क और कुतर्क कर रहे हैं। जब कि अन्दर से वे भी जानते हैं कि सरकार ने बहुत बढ़िया फैसला लिया है। लेकिन विरोध का बौण्ड भरा है और वह भी आजीवन तो वे उससे मुकर भी नहीं सकते इसलिए उनको उनके हाल पर ही छोड़ दिया जाए तो उनके लिए और देश के लिए यही उचित होगा। क्यों कि उनकी सोच और मांइडसेट कभी बदले नही जा सकते हैं। लेकिन देश का आम नागरिक तब भी और अब भी देश के हर नागरिक के दर्द में देश, काल और सीमाओं के आगे सदा खड़ा रहा है और महसूस करता रहा है यही हमारे खूबसूरत लोकतंत्र की कामयाबी का राज है।
आज देश की सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो फैसला लिया है वह पूरे देश की हित में हैं। हो सकता है अभी वहां के कुछ लोगों को असहज लग रहा होगा क्योंकि उन लोगों को सत्तर साल की आदत है और उन्हौंने कभी सोचा भी नही होगा कि एक दिन अचानक ये सब हो जायेगा और दशकांे से जो सरकारी दामाद थे वे भी इस देश के आम नागरिकों की श्रेणी में आ जायेंगे।
आजादी के बाद किसने क्या किया। किसने देश को अन्धेरे में धकेला या किसने अच्छा किया यह चिन्तनीय हो सकता है। देश का बच्चा-बच्चा इसे जान गया है लेकिन हमारा दर्द उन परिवारों से है, उन जवानों से है जिन्हौंने दशकों पीड़ा को सहा है। आतंक को सहा है और हमारे देश के हजारों जवान इस बलिवेदी पर शहीद हो गये हैं। हमारा दर्द उन परिवारों के साथ है जिन्होंने अपनों को कश्मीर में खोया है। यह वह जगह है जहां सात दशक की इस त्रासदी को रोका जा सकता था। अरबों रूपया इस देश का बचाया जा सकता था और हजारों जवानों को बचाया जा सकता था। लेकिन नही हुआ, नहीं किया गया तो उसका खामियाजा देश ने और शहीदों के परिवारों ने झेला।
बुद्धिजीवी और चिन्तक उन परिवारों को दर्द नही समझ सकते जो रात सोने से पहले सोचते हैं कि हमारे अपने घाटी में कैसे होगें? आतंकी हमले होने पर उनकी जान हलक से अटक जाती है कि कहीं समाचार की अगली पंक्ति में हमारे किसी अपने का नाम न हो। उस महिला, बहन, बेटी से पूछो जो सांसें रोककर समाचार देखती है। उस नव व्याहता से पूछो जिसे अपनी मांग में अच्छे से सिन्दूर भरना भी नही आया और वो बेवा हो गई। पर ये लोग उनका दर्द नही समझ सकेत इसलिए आज वे बड़ी -बड़ी बहसें कर सकते हैं और वे अर्नगल बयान और वक्तव्य दे सकते हैं। ये लोग कभी भी कश्मीरी पंडितों के दर्द को नहीं समझ पाये। क्यों कि उनकी तंग नजर की अपनी सीमा है और दायरा है। इनके अपने स्वार्थ हैं। लेकिन सरकार ने उनके दर्द को आवाज दी और आज उनको एक आस जगी है कि वे अपने घरों को लौट पायेंगे। तीस साल से भी अधिक हो गया है। जो पीढ़ी देश के अनेकों शहरों में पैदा हुई होगी उसे क्या पता कि कश्मीर हमारा घर है। उन्हें क्या पता कि वे जन्नत के मूल निवासी हैं लेकिर अब वे अपने घर जा पायेंगे। किसी समाज को अगर जिन्दा जी मारना है तो उसको अपनी जड़ों से काट दो तो वह समाज आधा तो वैसे ही मर जायेगा। और कश्मीरी पंड़ितों को तो कत्ल किया गया, अत्याचार किये गये, अनाचार किये गये, दुराचार किये गये और तब जो बच गये उन्हें जलालत की जिन्दगी के साथ दरदर की ठोकरें खाने के लिए बेघर कर दिया गया। अगर कश्मीरी पंड़ितों की जगह कोई और समाज होता, किसी और के साथ ये अनाचार, दुराचार हुए होते तो देश में हायतौबा मच जाती लेकिन अफसोस किसी ने भी उनके दर्द को आवाज नहीं दी। अगर वे जिन्दा रहे तो अपने दम पर, अपने दर्दों और अपनों की यादों के साथ। आज वे देश के तमाम शहरों में लगभग पन्दह लाख हैं और वे अपनी धरती पर वापस जाने की चाह पाल बैठे हैं क्योंकि केन्द्र सरकार ने उनकी राह आसान करने की पहल की है।
हम बाबा भोलेनाथ से यही कामना करते हैं कि कश्मीरी पंडितों के जीवन में कम से कम अब तो नई सुबह आये जिसका दशकों से इन लोगों को इन्तजार था। आज के इस निर्णय से सच में देश के अन्दर पाॅंच अगस्त को ही पन्द्रह अगस्त वाली फींलिग देखी जा सकती है। लग रहा है कि आजादी का जश्न और दीपावली एक साथ देश मना रहा है। हम कश्मीरी अवाम, कश्मीरी पंडितों और देश के आम नागरिक की तरक्की और खुशहाली के लिए कामना करते हैं। जय भारत। जय हिन्द।।

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