जब शहीद मेजर विभूति ढौंडियाल की दहाड़ "जय हिन्द" सुनकर तन-बदन के रोंये खड़े हो गए!

(मनोज इष्टवाल)

नाम की निकिता कौल ढौंडियाल! कश्मीर की वादियों सी प्रकृति की खुशगवार बेटी! उस सेब की तरह जिसकी खुशबु पूरे घर आँगन में अभी 10 माह पहले ही ढौंडियाल खानदान ने महसूस की थी! उसकी तीन सखियों सी जेठसासू व माँ सी सास के लाड़ ने कभी भी उसे महसूस नहीं होने दिया कि वह दूसरी लोक संस्कृति से पहाड़ी परिवेश की लोक संस्कृति में कदम रखने वाली पराई बेटी है! बस जो भाई एवं बेटे का प्यार हुआ वही निकिता इस परिवार की सबसे प्यारी दुलारी हुई!

विगत 19 अप्रैल 2018 में दुल्हन बनकर देहरादून के नेशविला रोड आई निकिता कौल की आँखों में तैरते गृहस्थी के सपनों की डोर को पंख जो लग गए थे! क्या सास और क्या तीनों बहनों समान जेठ सासू ..! सबने निकिता को अपनी आँखों में बिठाकर रखा! अभी तो वह ठीक से महसूस भी नहीं कर पाई थी कि सुहाग और सिन्दूर के साथ परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ कैसे उठाया जाय क्योंकि वह खुद दिल्ली में नौकरी पर थी! निकिता जरुर लापरवाह रही होगी क्योंकि उसे पता था कि जिस घर की वह बहु है वहां सब सर्व सम्पन्न है और सास की जिम्मेदारी उठाने वाली उसकी सबसे छोटी जेठ सासू ! जिनकी अभी शादी नहीं हुई है! बहुत से हाथ जिम्मेदारी बंटाने वाले! यूँ भी शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल घर के इकलौते चिराग थे!

पौड़ी जनपद के सीमान्त क्षेत्र ढौंड गाँव से बमराड़ी गाँव और वहां से अल्मोड़ा जिला रानीखेत के बाद देहरादून स्थित नेशविला रोड बसे शहीद मेजर विभूति एस ढौंडियाल एक बेहद हंसमुख किस्म के व्यक्तित्व के धनी थे अभी उनकी उम्र 32-34 के आस-पास थी!

सैन्य परम्पराओं का यह परिवार अपने आप में एक मिशाल से कम नहीं है! बताया जाता है कि
शहीद मेजर विभूति के दादा के एन ढौंडियाल 1952 में देहरादून के नेशविला रोड आकर बस गए थे। मेजर विभूति ढौंडियाल के पिता और दादा दोनों ही राजपुर रोड स्थित एयरफोर्स के सीडीए कार्यालय से सेवानिवृत्त हुए थे। मेजर विभूति ढौंडियाल की धर्मपत्नी निकिता कौल ढौंडियाल दिल्ली में बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करती हैं। पिता ओपी ढौंडियाल का निधन 2015 में हो चुका है। इसके बाद से मां सरोज ढौंडियाल बीमार रहने लगी हैं, उन्हें हृदय रोग की बिमारी बताई जाती है। दो बहनों की शादी हो चुकी है। तीसरी बहन की शादी नहीं हुई है। वह दून इंटरनेशनल स्कूल में शिक्षिका हैं।

सासू माँ की इसी बिमारी के चलते उनकी देख रेख करने शहीद मेजर की पत्नी निकिता कौल ढौंडियाल सप्ताहांत पर ससुराल आती थीं। सोमवार सुबह भी वह ट्रेन से वापस ड्यूटी पर लौट रही थीं। ट्रेन मुजफ्फरनगर ही पहुंची थी कि आर्मी हेडक्वार्टर से उन्हें फोन पर यह दुखद सूचना मिली, वहीँ बहन को भी अपने स्कूल में जब इस बात का पता चला तो वह भी दौड़ी दौड़ी घर पहुंची! घर में जमा भीड़ में मातम पसरा हुआ था। 

निकिता भले से जानती थी कि उनकी सासू माँ हार्ट पैसेंट है अत: उन्हें ज्यादा बेचैनी यह भी सता रही थी! आनन फानन घर पहुँचते पहुँचते उसने अपने आप को एक बेटे की तरह मजबूत बना लिया! उसकी सूनी आँखों से झरते आंसू अब तक अंगार बन चुके थे ! शायद वह जानती थी कि उसका पति शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल का यह बलिदान इस माटी का वह चन्दन है जिसकी महक युगों-युगों तक दून की फिजाओं हवाओं में बहती रहेगी! अब निकिता अपने को सम्भाल चुकी थी इस बात की पुष्टि वो हर फोटो करती दिखाई देती हैं जिन्हें निकिता ने अपने पति को विदा करते समय विभिन्न फोटोग्राफर्स या फोटोजर्नलिस्ट ने खींचा है!

और जब अंतिम वक्त विदा देने का आया तब जाने निकिता सी मासूम कली एक गोले की मानिंद कैसे फटी! यह दहाड़ इतनी बुलंद थी कि आस-पास खड़े लोगों के तन बदन के रोंवें खड़े हो गए! ऐसा लग रहा था मानों अभी यह सब पाकिस्तान की सीमा के पास होता तो ये हजारों लोग जाने कितने दुश्मनों का कलेजा हाथ में लिए बोलते भारत माता की जय! जैसे निकिता के मुंह से बुलंद आवाज निकली – जय हिन्द! और हाथ सलूट में सीधे मस्तक को ऐसे चूमने लगा मानों अडिग हिमालय हो!

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