जब पहली बार सड़क मार्ग से पौड़ी पहुंची गाड़ी! महिलाओं ने घास व पानी रखा गाड़ी के आगे..!
जब पहली बार सड़क मार्ग से पौड़ी पहुंची गाड़ी! महिलाओं ने घास व पानी रखा गाड़ी के आगे..!
(मनोज इष्टवाल)
कई बातें तब याद आती हैं जब समय निकल जाता है और हम ठगे से रह जाते हैं! स्मृति-पटल पर शून्य के सिवाय कुछ नहीं होता! बुजुर्गों के सानिध्य का भले ही बाल्यपन में हम खूब लाभ उठाते हैं लेकिन उन बातों को मनोपटल पर रखते भूल जाते हैं जो महत्वपूर्ण होती हैं! सतपुली में बर्ष 1951 में आई बाढ़ का वृत्तांत जब हम गीत के माध्यम से सुनते थे तब सिर्फ दयाभाव ही हृदय में आता था लेकिन हमने कभी इन यादों को स्मृति-पटल पर संजोना उचित नहीं समझा, और शायद यही कारण भी है कि 14 सितम्बर 1951 में सतपुली बाढ़ में 22 मोटर बसें, ट्रक व लगभग 30 मोटर ड्राईवर कंडक्टर इस नयार की भेंट चढ़े जिन पर उस दौर में एक गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था- “द्वी हजार आठ भादो का मास, सतपुली मोटर बौगिनी ख़ास !”
(फाइल फोटो)
यह गीत बर्षों पूर्व आपको सतपुली के एक सूरदास जलपान या खानपान के लिए सतपुली में रुकी बसों में चढ़-चढ़कर सुनाते थे! अतीत की स्मृतियों में दफन उन यादों को भले ही तत्कालीन समय में गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा एक स्मृति स्थल के रूप में संजोया था लेकिन आज भी बहुत कम जानते हैं कि सतपुली में यह स्मृति-स्थल है कहाँ!
आईये इसी मोटर सडक पर जानकारी साझा करते हैं! यों तो सन 1887 में गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी रानीखेत से पैदल चलकर लैंसडाउन पहुंची थी और इसी सन में यहाँ गढ़वाल राइफल्स की स्थापना हुई जिसका श्रेय जितना लार्ड लैंसडाउन को जाता है जिसके नाम से कालौं-डांडा का नाम लैंसडाउन पडा है उतना ही श्रेय कल्जीखाल विकास खंड के हैडाखोली गाँव के बलभद्र सिंह नेगी को भी जाता है जो तत्कालीन समय में एडीसी टू वायसराय इन इंडिया एंड इन ब्रिटेन रहे! ये उन्हीं के प्रयास रहे कि सन 1905 में दुगड्डा तक मोटर सडक निर्माण हुआ ! कई लोग इस सडक पर लिखते हैं कि यह सडक बनाने वाले ठेकेदार जब दुर्गादेवी से आगे सड़क नहीं बना पाए तो उन्होंने यहाँ दुर्गादेवी की स्थापना की जो सफ़ेद झूठ है क्योंकि यह सडक किसी निजी ठेकेदार ने नहीं बल्कि गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट ग्रुप द्वारा निर्मित है और दुर्गादेवी की स्थापना भी उन्हीं के द्वारा की गयी है!
भले ही इस सड़क निर्माण के लिए कोटद्वार के बेहद धनि व्यवसायी सूरजमल ने तत्कालीन समय में बहुत मदद की! इस सडक पर पहला वाहन दुगड्डा के व्यवसायी मोतीराम का आया था जिस में तत्कालीन समय में कई बोरे गुड, चना, भेली व नमक पहली मर्तबा लाया गया और इस गाडी को देखने के लिए उस दौर में लगभग 15 हजार ढाकरी दुगड्डा में मौजूद थे!
1909 तक यही सडक मार्ग द्रुतगति से पूरा होता हुआ लैंसडाउन जा पहुंचा! अर्थात पहाड़ की उंचाई पर पहली बार सडक 1909 में पहुंची! जिससे ढाकरी मार्ग कई जगह से टूटा और बदलपुर तल्ला मल्ला से लेकर राठ यानि बीरोंखाल तक जाने वाले ढाकरी मार्ग में ढाकरी जनमानुष को सरलता होने लगी! जो दुगड्डा चौकिसेरा मार्ग इस्तेमाल करते थे! भले ही बीरोंखाल इलाके के बहुत कम लोग दुगड्डा ढाकर लेने आते थे क्योंकि उन्हें मर्चुला सराईखेत होकर रामनगर मंडी सरल पडती थी!
बुजुर्गों का मानना है कि यूँ तो सडक 1925-26 तक सतपुली पहुँच गयी थी लेकिन इसमें आम आदमी को गाड़ी में सवार होने की अनुमति नहीं थी! सिर्फ गढ़वाल राइफल्स के ब्रिटिश अधिकारी व पौड़ी कमिश्नरी के आला अधिकारी ही सतपुली तक ट्रोला/लौरी गाडी में सवार होकर यहाँ तक पहुँचते थे जिनके लिए एक अलग सी घोड़ा खच्चर सडक बांघाट -बिल्खेत ढाडूखाल, कांसखेत, अदवाणी होकर पौड़ी के लिए बनाई गयी थी! इस पर सिर्फ अंग्रेज अधिकारी ही चल सकता था या फिर उनके साथ भारतीय गुलाम व राजस्वकर्मी ! जबकि आम भारतीय के लिए इसी रूट से होती हुई ढाकरी सडक थी जिस से तिब्बत तक व्यापार होता था!
अथक लगन व मेहनत से इसके लगभग 12 साल बाद यानि 1932 तक नयार में एक लकड़ी पुल बनाकर बौंसाल, अमोठा, पाटीसैण होती हुई सडक कनफोलठिया जिसे कनमोलठिया नाम भी दिया गया पर ज्वाल्पा नयार पर एक पुल बनाया गया! फिर ज्वाल्पा, जखेटी, अगरोड़ा, पैडूल, परसुंडाखाल होकर सडक घोड़ीखाल पहुंची ! जहाँ एक समय घोड़ों का अस्तबल होता था और आखिरकार बुबाखाल होती हुई यह सडक पौड़ी जा पहुंची जिसमें गढ़वाल कमिश्नर काम्बेट ने पहली यात्रा मोटर ट्रोला/लौरी से की जो गढ़वाल राइफल्स का उस काल की गाडी मानी जाती थी! लेकिन गढ़वालियों का दुर्भाग्य देखिये उन्हें तब भी पैदल ही चलना होता था! क्योंकि इस सडक निर्माण के बाबजूद भी इस पर मोटर वाहन बर्षों तक संचालित नहीं हो पाए! अंग्रेज अफसर या फिर राय बहादुर राय साहब की उपाधि से सम्मानित माल गुजार, थोकदार व अंग्रेज अफसरों के सरकारी दफ्तरों के पटवारी तहसीलदार ही इन सड़कों पर घोड़े में सवार होकर जा सकते थे!
इसे सौभाग्य ही समझिये कि सन 1942 तक आखिर यह तय हुआ कि जो कोई भी गढ़वाली उद्यमी या फिर आम व्यवसायी अपने निजी वाहन लेकर इस मार्ग में चल सकता है उसे इजाजत है! बर्ष 1943 में वाहन स्वामी दुगड्डा मोतीराम व सूरजमल कोटद्वार वालों ने साझा वाहन खरीदा जिसे कफोलस्यूं के पयासु ग्राम निवासी राजाराम मोलासी (मलासी) द्वारा पहली बार कोटद्वार-सतपुली- पौड़ी मोटरमार्ग पर चलाया गया! जिनका हर स्टेशन पर हजारो लोगों ने फूल माला पहनाकर स्वागत किया! बुजुर्गों का कहना है कि यह लौरी/ गाडी दो दिन में सफर कर जब अगरोड़ा पहुंची तो वहां किसी महिला द्वारा गाडी के आगे घास व पानी रखा गया कि बेचारी भूखी होगी! यही कर्म आगे पौड़ी मार्ग पर कई जगह होता गया! गाडी को भूखा समझकर उसके आगे लोग घास व पानी की बाल्टी रख दिया करते थे!
(फाइल फोटो)
आपको जानकारी दे दूँ कि 30 दिसम्बर सन 1815 में राजा गढ़वाल सुदर्शन शाह द्वारा जहाँ टिहरी को अपनी राजधानी बनाया गया वहीँ इस से पहले ब्रिटिश गढ़वाल वह अंग्रेजों को हस्तगत कर चुके थे व अंग्रेजों द्वारा अक्टूबर 1869 में पौड़ी कमिश्नरी की स्थापना कर पहले डिप्टी कमिश्नर के रूप में डब्ल्यू जी ट्रेल को नामित किया जो बाद में यहाँ कमिश्नर बने! तत्पश्चात बैटन बैफेट कमिश्नर हुए उसके बाद सबसे अधिक कार्यकाल हैनरे रैमजे का हुआ जो 1856 से लेकर 1884 तक गढ़वाल-कुँमाऊ के कमिशनर रहे और इन्हें नैनीताल में रामजी के नाम से जाना जाना था! तत्प्श्चात्त कर्नल फिशर, काम्बेट व अंतिम गढ़वाल कमिश्नर पॉल हुए !
1941 में कमिश्नर काम्बेट या पॉल ने 30 मोटर गाडियों के जखीरे को परमिशन देते हुए वाहन स्वामियों के लिए आदेश निकाले की वे गढ़वाल मोटर्स यूनियन का गठन करें ! आखिर मोटरयान अधिनियम 1940 की धारा 87 (अब संशोधित 1988 की धारा 87) के अंतर्गत यूनियन का गठन हुआ और वाहन स्वामियों ने राहत ली! फिर वह दिन भी आया जब 14 सितम्बर 1951 में सतपुली बाढ़ में 22 मोटर बसें, ट्रक व लगभग 30 मोटर ड्राईवर कंडक्टर इस नयार की भेंट चढ़े! इनमें उस मोटर/लौरी का ड्राईवर भी शामिल था जो पहली बार पौड़ी पहुंची थी! उनका नाम कुंदन सिंह बिष्ट ग्राम- चिन्डालू , पट्टी-कफोलस्यूं पौड़ी गढ़वाल था! कहते हैं राजाराम मलासी नामक व्यक्ति ने बाद में यहाँ अपना कारोबार बंद करके मुंबई में टैक्सी चलाकर अपना कारोबार शुरू किया और वहां उनका धंधा ऐसा फला फूला कि उन्हें मुंबई में सेठ जी के नाम से जाना जाने लगा!
गजब की जानकारी भैजी ।
शुक्रिया।
बहुत-बहुत धन्यवाद जानकारी देने के लिए
Bahut achiii khabar
Ye sub chiz tho achi hai lekin pauri me ho rhe palayan ka kya hoga jo sabse badi prblm hai .
Apne humko ye jankari di isse ye pta chalta hai ki ap apni janm or purkho ki bhumi ko pyr krte ho . lekin is samye us par subse badi prblm chal rhe hai .. Jese apne hume kuch esi bate btae jo hume nhi pta hai khi esa na ho ki ane wale time pe ye hamri anr wali pidi ke liye pauri bs ak kalpana ho …
शुक्रिया।
जड़ों से उखड़कर जड़ों को मजबूत करना अच्छी बात लेकिन जड़ों में मट्ठा डालना अच्छी बात नहीं होती!
संकलन और सिलसिलेवार तरीके से दियी या जानकारी रोचक च। प्रयास की सराहना।
धन्यवाद पटवाल जी!
सराहनीय इष्टवाल जी
बहुत ही सराहनीय।
jankari preshit karne ke liye shukriya.