जनजातीय  क्षेत्र की अनूठी परम्परा! 20 बच्चे पैदा होने के बाद होती है दुबारा शादी…!

जनजातीय  क्षेत्र की अनूठी परम्परा! 20 बच्चे पैदा होने के बाद होती है दुबारा शादी…!


(मनोज इष्टवाल)
जनजातीय क्षेत्रों की यूँ तो अलग अलग परम्पराएं होती हैं जिनके चलते इन्हें सरकार द्वारा जनजातीय कैडर में शामिल किया जाता है ! उत्तराखंड में यूँ तो तीन चार जन जातीय क्षेत्र हैं लेकिन जब बात जौनसार बावर क्षेत्र की आती है तब उसकी लोक सामाजिक की सामरिक परम्पराओं का कोई तोड़ नहीं है! ऐसी ही एक परम्परा न सिर्फ जौनसार बावर बल्कि रवाई, जौनपुर व तमसा के दूसरे चोर पर बसे हिमाचल के क्षेत्रों में भी थी जिसके वर्तमान में भी कई उदाहरण हैं!
विश्व भर में मैरिज अनिवर्सरी मनाने की परम्परा किस युग से है यह कह पाना कठिन है लेकिन गढ़वाल में आज से लगभग 20 बर्ष पूर्व तक इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी. समाज के साथ घुल मिल जाने के बाद शादी की सालगिरह का जश्न यहाँ भी मानना शुरू हो गया है!  जौनसार बावर इस मामले में हम से कई आगे है क्योंकि यहाँ की इस लोक संस्कृति में यह युगों युगों से चली आ रही परम्परा है! भले ही शादी की सालगिरह मनाने की न हो लेकिन एक उम्र के बाद दूसरी बार अपने ही पति व अपनी ही पत्नी से शादी रचाने की यहाँ पौराणिक परम्परा रही है जिसके बारे में वर्तमान समाज में बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं! जौनपुर में इसे धुरपली ब्यौ तो जौनसार में इसे धूर का ब्यौ कहा जाता रहा है! हो सकता है इसके अन्यत्र कोई और नाम भी हों!

इस परम्परा के आधार पर बुजुर्ग जोड़ा जब 70 बर्ष की उम्र पार हो जाते हैं तब उनकी लम्बी उम्र के लिए ऐसे विवाह दुबारा हुआ करते थे! जो धीरे धीरे प्रचलन से हट गए ! इस शादी को मकान की छत्त (फटालों वाली) के शीर्ष भाग में मंत्रोचारण व एक दूसरे के गले में माला डाल कर सम्पन्न किया जाता है. फिर पूरे गाँव व पधारे मेहमानों को दावत दी जाती थी!  इस शादी का मतलब यह होता था कि यह जोड़ा सौ साल जिए, ताकि कुल की समृद्धशाली परम्परा जीवित रह सके! वहीँ इस से भी ज्यादा रोचक एक परम्परा रही है और वह है 20 बच्चे पैदा करने वाली महिला का पुनर्विवाह रचाया जाता था!
इस पर कुछ बुजुर्ग दलील देते हैं कि 20 वां बच्चा पैदा होते ही उस महिला को पति द्वारा परित्याग किया जाता था जो अपने बच्चे सहित अपने मायके चली जाती थी और एक नियत तिथि पर पुन: अपने मायके की बारात लेकर उस आँगन में आ धमकती थी जहाँ उसने अपनी जिन्दगी जी और अपने 19 पुत्र पुत्रियों को जन्म दिया! फिर जिझोलटिया से धूमधाम से शादी सम्पन्न होती थी व वह महिला बहुत भाग्यवान समझी जाती थी! आज भी ऐसे कई उदाहरण जौनसार क्षेत्र में सुनने को मिलते हैं जहाँ 20 बच्चों की माँ का पुनर्विवाह हुआ है!
यह परम्परा शायद ही आगे बढ़ पाए क्योंकि न ही अब कोई माँ 20 बच्चों को जन्म देगी और न ही आजकल की बहुएं सामूहिक पति को अपनाने में रूचि ले रहीं हैं! सामाजिक शिक्षा के विकास के चलते अब यह परम्परा धीरे धीरे समाप्त हो रही है! भले ही इस परम्परा को सामजिक समरसता के हिसाब से हम अनूठी व आश्चर्यजनक कहें व वर्तमान में कोई न अपनाए लेकिन मुझे लगता है 70 या 75 की उम्र के जोड़ों की शादी होनी चाहिए ताकि लोक संस्कृति का एक स्वस्थ मानक जीवित रह सके!

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