जड़ी-बूटियों का अनमोल खजाना है चरक डांडा! क्या “चरकसंहिता” के 120 अध्यायों का अग्निवेश/चरक ऋषि ने यहीं किया था सम्पादन!
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 2 फरवरी 2020)
बचपन से लेकर अब तक एक ही बात सुनता आया हूँ कि कोटद्वार भावर क्षेत्र के ऊपर दिखने वाला चरेख/चरक डांडा वही पर्वत शिखर है जहाँ चरक ऋषि निवास करते थे व उन्होंने यहीं आयुर्वेद को बढ़ावा देने वाली जीवन औषधियां ढूंढी व उन सबको संस्कृति में लिखकर चरक संहिता नामक पुस्तक का सम्पादन किया!
25 साल पहले भी वही 25 साल बाद भी वही रटे-रटाये शब्द ..! लेकिन दुर्भाग्य देखिये कोटद्वार शहर से बमुश्किल 20 किमी. दूरी पर स्थित चरेख आज तक जाना नहीं हुआ था! शायद…चरेख क्षेत्र को भी इस बात का इन्तजार था कि कोई यहाँ रेकी करने तो आये! वैसे बर्षों पूर्व वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली चरेख क्षेत्र के बल्ली गाँव को भरतपुर के रूप में विकसित करने का संकल्प लेने वाले व्यक्ति कहे जाते हैं जिन्होंने इसे शकुंतला पुत्र राजा भरत की जन्मस्थली बताकर इसे बर्षों पहले जिला या राजधानी बनाए जाने की वकालत की थी!

पूरे 25 बर्ष बाद…! आज वह पल भी आ गया जब मुझे लेकर मेरी शिष्या/ बहनें/ मित्र आखिर चरेख पहुँच ही गयी! यह इत्तेफाक ही कहिये कि सोशल साइट् फेसबुक पर 25 बर्ष पूर्व जिन बेटियों ने मेरे साथ लखनऊ दूरदर्शन के लिए तैयार शकुन्तला नृत्य नाटिका व खैरी का आंसू वीडिओ एल्बम में काम किया था वे मिली व उनके पिताजी कैलाश चन्द्र डोबरियाल के सानिध्य में मंजली पुत्र प्रणिता अपनी कार ड्राइव कर मुझे इस दिव्य लोक में ले आई!
हमारा सफर सुबह लगभग 11 बजे कोटद्वार से शुरू हुआ! मैं अग्रिम सीट पर प्रणिता के साथ व पिछली सीट पर सुचिता, पुनीता व उनके पिता कैलाश डोबरियाल जी! दुगड्डा के ऐता गाँव से पूर्व ही हमने राष्ट्रीय राजमार्ग छोड़ बांयी और टर्न लिए जहाँ से सड़क खड़ी चढ़ाई चढती हुई रामणी-पुलिंडा को जाती है! यही कहीं बोर्ड पर लिखा दिखा चरेख 25 किमी.!

मैं बोला- बिट्टू (प्रणिता) हम कुछ लम्बे रास्ते नहीं आये! पीछे से रेनू (पुनीता) बोल पड़ी- हाँ, भाई साहब …हम अगर सिद्धबली मन्दिर से लगभग एक किमी पहले पीडब्ल्यूडी से जाते तो वह सडक भी अच्छी थी व अब तक शायद हम पुलिंडा पहुँच चुके होते! बब्बू (सुचिता) बोली- हाँ..कह तो तू ठीक रही है! बिट्टू बड़ी सधी हुई आवाज में बोली- उधर से हाथियों का डर होता है इसलिए इधर से आई! अब भला बिट्टू के काउंटर के बाद कौन आगे कुछ कह पाता! यह सडक जितनी चढ़ाई लिए हुए थी उतने ही प्लास्टर झाड़ू भी थी! शायद जब से बनी होगी तब से दुबारा इस पर तारकोल कंक्रीट की पोलिस नहीं की गयी! मैं समझ सकता था कि बिट्टू को गाडी चलाने में कितनी दिक्कत हो रही होगी!
फिलहाल..आगे का सफर जारी रखने से पहले एक छोटा सा इतिहास चरक/ चरेख के बारे में आपके समक्ष रख दूँ! यहाँ जनधारण है कि यहीं आकर ऋषि चरेख ने चरक संहिता लिखी व यहाँ सैकड़ों जीवन रक्षक जड़ी-बूटियाँ ढूंढी! चरक सहिंता के अनुसार उसमें 120 अध्याय हैं! चरकसंहिता आत्रेयसम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ मानी जाती है जिसमें कायाचिकित्सा प्रमुखता के साथ प्रतिपादित है। चरक संहिता विषयों के अनुसार आठ भागों (जिनको ‘स्थान’ कहा गया है) में विभाजित है और इसमें 120 अध्याय हैं।

ये आठ स्थान जिनमें सूत्रस्थानम् (General principles) – 30 अध्याय, निदानस्थानम् (Pathology) – 8, विमानस्थानम् (Specific determination) – 8 अध्याय, शारीरस्थानम् (Anatomy) – 8 अध्याय, इन्द्रियस्थानम् (Sensory organ based prognosis) – 12 अध्याय, चिकित्सास्थानम् (Therapeutics) – 30 , कल्पस्थानम् (Pharmaceutics and toxicology)-12 अध्याय, और सिद्धिस्थानम् (Success in treatment) – 12 अध्याय प्रमुख हैं।
पूरी चरक संहिता की अगर बात की जाय तो इसमें मनुष्य के शरीर के हर हिस्से का सूक्ष्मता से वर्णन मिलता है जो आज के विज्ञान के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है! जिनमें शरीर में दांत एवं नाखूनों सहित अस्थियों की कुल संख्या 360 बताई गई है। 32 दांत होते हैं। 32 दाँतों के कोटर, 20 नाखून, 60 अंगुलास्थियां, 20 लम्बी अस्थियां, 4 लम्बी अस्थियों के आधार, 2 एड़ी, 4 टखने की हड्डी, 4 कलाई की हड्डी, 4 अग्रबाहु की हड्डी, 4 टांग की हड्डी, 2 बाहु की कोहनी के पटल, 2 जांघ की खोखली हड्डी, 5 स्कन्धास्थि, 2 हंसली, 2 नितम्बफलक, 1 सार्वजनिक अस्थि, 45 पीठ की हड्डीयाँ, 14 वक्षास्थि, 24 पसलियाँ, 24 गर्तों में स्थित गुलिकाएँ, 15 कण्ठास्थि, 1 श्वास-नली, 2 तालुगर्त, 1 निचले जबड़े की हड्डी, 2 जबड़े की आधार-बन्ध अस्थि, 1 नाक, गालों एवं भौंहों की हड्डी, 2 कनपटी तथा 4 पान के आकार की कपालास्थि अर्थात कुल मिलाकर 300 हैं। शरीर की माँसपेशियों को केवल माँसलपिंड ही बताया गया है। ऐसा समझा जाता था कि हृदय के विभिन्न अंगों को जाने वाली दस वाहिकाएँ होती है। मस्तिष्क की रचना तथा कार्यो का वर्णन लगभग नहीं के बराबर है। यद्यपि फेफड़ों का उल्लेख है, किन्तु उन्हें श्वसन से किसी प्रकार भी सम्बन्धित नहीं माना गया है।
चरकसंहिता आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है! यह संस्कृत भाषा में है। इसके उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं। चरकसंहिता और सुक्ष्रुत संहिता आयुर्वेद के दो प्राचीनतम आधारभूत ग्रन्थ हैं जो काल के गाल में समाने से बचे रह गए हैं। भारतीय चिकित्साविज्ञान के तीन बड़े नाम हैं – चरक, सुश्रुत और वाग्भट । चरक संहिता, सुश्रुत संहिता तथा वाग्भट का अष्टांगसंग्रह आज भी भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) के मानक ग्रन्थ हैं।
आज भी यह प्रश्न सामने खड़ा हो उठता है कि आयुर्वेद के जनक कौन थे! तब इसमें दो अलग अलग राय आती हैं! एक तबका कहता है भगवान धन्वतरी तो दूसरा 300 ई. पूर्व जन्में चरक ऋषि! अगर हम चरक ऋषि का मिलान चरेख या चरेक से करते हैं तो फिर हमें कुषाणकालीन राज्य की सीमाओं की जानकारी जुटानी होगी! क्योंकि ऋषि चरक कुषाण काल के ही माने जाते हैं!
ईसा के प्रारम्भ से लेकर कुषाण वंश ने भारत बर्ष से लेकर ईरान-इस्लामाबाद-चीन तक लगभग 230 बर्ष राज किया! इसके प्रथम राजा कनिष्क व अंतिम राजा वासुदेव द्वीतीय हुए!
अब अगर हम चरकसंहिता की बात करें तो उसमें वचन चरक के अध्याय के तत्रश्लोका रुपी हैं! जो अंत में स्थान स्थान पर बढ़ते हैं! चरक संहिता के इस श्लोक में साफ़ है कि आयुर्वेद के अपार ज्ञान पर चरक ऋषि ने अग्निवेश, आत्रेय व पुनर्वसु ऋषियों का जिक्र भी किया है!
“भगवानग्निवेशाय पुनर्वसु,आत्रेयेणान्गिवेशाय भूतानां हितकाम्यया!”
चरेख डांडा की उंचाई समुद्रतल से लगभग 6661 फिट मानी जाती है! यह आश्चर्यजनक है कि 25 साल बाद चरेख डांडा में स्नो फाल हुई और 25 साल बाद ही यह टीम (सुचिता, प्रणिता, पुनीता व कैलाशचन्द्र डोबरियाल जी) से मेरी पुनः मुलाक़ात हुई जिसे यादगार बनाने के लिए हम सब आज चरेख आ पहुंचे!

चरेख आने के लिए दो रास्ते हैं! अगर आप दुगड्डा की ओर से आयें तो आपको ऐता गाँव पार करते ही उसी की सरहद से राष्ट्रीय राज मार्ग छोड़कर दांयी तरफ नदी में बने पुल को पार करते हुए उमरैला-बुंगीधार-बंगला गाँव होकर चरेख तक लगभग 27 किमी. यात्रा करनी होगी! और अगर कोटद्वार से चरेख आना होगा तो आपको सिद्धबली मन्दिर से लगभग एक किमी पहले पीडब्ल्यूडी कलोनी की बगल से बाएं चढ़ते हुए पुलिंड़ा-रामडी से चरेख तक लगभग 20 किमी. की यात्रा करनी होती है!

हम कोटद्वार-दुगड्डा राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुजरते हुए ऐता गाँव से उमरैला-बुंगीधार-बंगला सड़क मार्ग होते हुए चरेख पहुंचे! यह शानदार सफर था क्योंकि रास्ते में हमें चोपड़ा, उमरैला, कैंतोगी, गैरखाल, धूर, ताल, रामडी जैसे गाँव व उनकी सरहदों की को लांघकर चरेख पहुंचना पड़ा! उमरैला गाँव के पास सभी ने उतरकर कुछ फोटोज वगैरह लिए! रेणु फ्योंली के फूलों को देख मन्त्रमुग्ध थी वह उन्हें छूना चाहती थी लेकिन “भीटा-पाखों मा फ्योंली-फ्योंली” की कहावत चरितार्थ करते ये फूल सिर्फ लुभा ही सकते थे! मुझे लगा क्यों न इसे उखाड़कर लाया जाया! लाख मना करने के बाद जब मैं नहीं रुका और एक छोटा सा फ्योंली का गुलदस्ता रेनू के हाथों में सौंपा तो वह काफी खुश हुई! आज भी रेनू मुझे वही 13-14 साल की 9वीं कक्षा की छात्रा लग रही है क्योंकि आज भी उसकी बातों में वही निश्वार्थ बालपन झलकता है! भले ही वह बार-बार आभास कराती हुई कह रही थी- भाई साहब, अब मैं बड़ी हो गयी हूँ मेरे दो बड़े-बड़े बच्चे हैं! जाने कब रेनू के हाथ से गुजरते फूल बिट्टू के पास पहुंचे जिन्हें उसने अपने बालों पर सजा दिया लेकिन जैसे ही रेनू की नजर पड़ी बोली- बिट्टू दी..! वापस दे मेरे फूल! बिट्टू मुस्कराई और चुपचाप रेनू को फूल सौंप दिए! बब्बू जरुर थोडा रिजर्व लगी! अब उसका स्वभाव ही पहले से यही रहा है तो क्या करें! बिट्टू का स्वभाव भी तो पहले जैसा ही है वह नाक में मक्खी न बैठने दे! आखिर बदला तो कौन..? जब यह सोचा तो पाया कोई भी नहीं! मैं भी वैसा ही और कैलाश चन्द्र डोबरियाल जी भी वैसे के वैसे! कोई व्यवहारिक परिवर्तन नहीं! ऐसा लगा मानो अभी कल ही की बात होगी!
मुझे लगता है कि बंगला या बुन्गीधार पहुँचने के बाद सडक कुछ सामान्तर हुई लेकिन सडक के हाल बेहाल ..! जाने यहाँ लोक निर्माण विभाग ने क्यों आँखें मूंदी हुई है! मुझे बिट्टू की “बलेनो कार” की ड्राइविंग ने काफी प्रभावित किया! बहुत स्मूथ हैंडलिंग के साथ बेहद खूबसूरत ड्राइविंग! सच कहूँ तो बहुत कम महिलाओं को इतनी खूबसूरत ड्राइविंग करते देखा!
हम अब बल्ली भरतपुर रोड पर आगे बढ़ गए! यहाँ आकर पहाड़ अपनी खूबसूरती बिखेरना जो शुरू कर देते हैं! दूर महाबगढ़ की उतुंग शिखर पर विराजमान मंदिर व देवीधार का देवीमंदिर हमें अपनी ओर बढ़ने को लालायित कर रहा था! भरतपुर यानि बल्ली को कभी वीरचन्द्र सिंह गढवाली ने नगर के रूप में विकसित करने की कोशिश की थी लेकिन उनका सपना इसलिए साकार नहीं हो पाया क्योंकि न तत्कालीन सरकार ने इस पर रूचि दिखाई व न ही यहाँ के ग्रामीण ज्यादा रुचिकर रहे! बल्ली गाँव पार करते ही बिट्टू ने कार रोकी व एक महिला से चरेख के बारे में जानकारी ली! पहाड़ी महिला ने जिस आत्मीयता के साथ रास्ता बताया वह मिश्री की तरह दिल में घुल गया! हम बल्ली की सडक पर उतर गए जबकि हमें ऊपर वाले सडक पकडनी थी!
करीब 3 किमी आगे हमें एक शानदार रिसोर्ट दिखाई दिया! बिट्टू बोली- भाई साहब, यह रिसार्ट सीजन में व वीकेंड पर लबालब भरा रहता है! यहाँ पैर रखने की जगह नहीं मिलती! अरे वाह वो देखो बुरांस…! मेरे मुंह से निकला बुरांस! बब्बू बोली- वो देखो भाई साहब..! बंदर कैसे तोड़ रहे हैं! सबकी नजर अब बाँझ बुरांस के पेड़ जो सडक को घेर रहे थे के जंगल में पड़ी तो सचमुच बुरांस के फूलों से कुछ पेड़ लकदक दिखाई दिए!
बिट्टू बोली- यहीं से वापस चलते हैं भाई साहब! मैं भला क्या बोलता! बिट्टू का बिलकुल भी ड्राइविंग करने का मन नहीं लग रहा था! मैं बोला- जैसी इच्छा! उसने अचानक गाडी को वापसी के लिए मोड़ना शुरू किया तो रेनू बोल पड़ी! यार..बिट्टू दी! अब इतना आ ही गए तो चले ही चलते हैं ना प्लीज! मुझे पता है कि मैंने ही तेरी डांट खानी है! प्लीज बिट्टू दी…!
मैं अब तक इतना तो समझ गया था कि बिट्टू के फैसलों के आगे कोई चूं नहीं करता लेकिन इस बार मैंने भी रेनू का समर्थन करते हुए कहा- चलो चल ही देते हैं! भले ही मौसम खराब हो रहा है! वैसे टाइम हुआ ही कितना है अभी! अभी तो पौने दो भी नहीं हुए पूरे..! बिट्टू ने कार फिर से आगे बढ़ा दी और लगभग 10 मिनट बाद हम चरेख गाँव के ऊपर खड़े हुए! तेज ठंडी हवा व घटा घनघोर..! ठंडा इतना कि कोटद्वार वासियों की स्वेटर निकलनी शुरू हो गयी! मोड़ से बमुश्किल कुछ ही आगे टीले पर ऋषि चरक की मूर्ती लगी थी! हम वहां तक पहुंचे ही थे कि आसमान ने फुलझड़ी लगा दी! मेरे मुंह से फूट पड़ा- बहारों फूल बरसाओ..! बब्बू बोली- भाई साहब! कम से कम चरक भगवान के सामने तो गाना बंद करो! मुझे गलती का अहसास हुआ सबके शीश झुके! सेल्फी-फोटोज हुई! मैंने यहाँ से लाइव किया क्योंकि आगामी 18 मार्च से हम इसी रास्ते कण्वाश्रम-महाबगढ़-कांडाखाल-बुरांसी-बांघाट तक लगभग 86 किमी. की चार दिनी ढाकर यात्रा पर निकलने वाले हैं! लाइव के कैमरे की जिम्मेदारी रेनू ने बखूबी सम्भाली और फिर बारिश से बचते-बचाते हमारी गाडी फुर्र से कोटद्वार के मार्ग की ओर चल पड़ी!
आपको जानकारी दे दें कि चरेख डांडा से ही मालिनी नदी का उद्गम स्थल बताया जाता है जो घाटी में बसे गांव मलनयिं, बडोलगांव होती हुई आगे बढती है! चरेख डांडा
बल्ली, कान्डई, मथाणा और ईड़ और रैण पातळ का अनाच्छादित पर्वत श्रृंखला है। घाटी में बसे गांव मलनयिं,बडोलगांव, माण्डई, बिजनूर, सौड, सामने पहाड़ी की ढ़लानों में बसे गांव पाली ,कफल्डी, दूणी और सीडी नुमा खेत मन को मोह लेते है!
हम अब पुलिंडा वाली सडक के ढलान पर उतर चुके थे! यहाँ से सीधी सडक दुगड्डा के लिए जबकि बांयी तरफ ढाल पर उतरती सड़क कोटद्वार के लिए निकल पड़ती है! हम कोटद्वार वाली सडक पर उस छोटी सी मार्केट में थे जहाँ हमें भोजन की गुंजाइश दिखी! बिट्टू ने गाडी के ब्रेक मारे तो मैं बाहर दुकान की तरफ लपका! दुकानदार बोले-भैजी बस अभी-अभी खतम व्हा खाणु! या बुनैs देर भी त व्हे ग्याई! म्यार खयालल तीन बजदिनी अब!

मैंने घड़ी पर नजर डाली तो लगभग दो बजकर 40 मिनट हो गए थे! वहीँ पहाड़ी केले थे! जो मैंने तीन दर्जन खरीद लिए! क्योंकि उनका रेट ही इतना कम था! 90 रूपये में तीन दर्जन! एक केला खा दो तो पेट भर जाए! फिर ध्यान आया कि हम तो उस क्षेत्र में हैं जिसे अन्न का कटोरा कहा जाता है! यहाँ की अदरक, मूला, अरबी, डालें इत्यादि तो पूरे कोटद्वार मार्केट सप्लाई होती हैं जहाँ की मंडी से कई महानगरों तक यहाँ का आर्गेनिक उत्पाद पहुँचता है! खैर अभी बमुश्किल एक डेढ़ किमी. बढे होंगे कि एक होटल दिखाई दिया! नाम था “एन्जॉय कैफ़े एंड फैमली रेस्टोरेंट” ..! उम्मीद बहुत कम थी लेकिन मैंने फिर भी बिट्टू को रुकने को कहा! बोला-खाना न भी मिले चाय पीकर चल देंगे! नसीब अच्छा था क्योंकि होटल संचालक कैलाश चंद डोबरियाल जी को पहचानते थे! रामारुमी हुई और वे बोले- बस 10 मिनट! यूँही चावल दाल बना देते हैं साथ में गर्मागर्म फुल्के! मानों मन की मुराद पूरी हुई हो! यह होटल पोखडा विकासखंड के सीडिया गाँव निवासी नौडियालबंधुओं का है जो अभी बन भी रहा है साथ ही इसमें पर्यटकों को रुकने के लिए दो बेहतरीन शूट भी हैं!
इस दौरान जहाँ कैलाश चन्द्र डोबरियाल जी गप्पों में मशगुल हो गए तो हमें भी मौका मिला कि आस-पास की लोकेशन को अपने फोन के परदे में उतार दें! ठीक सवा तीन बजे खाना मिला! सचमुच स्वादिस्ट खाना था! और फिर निकल चले मंजिल की औरत!
बहुत धन्यवाद सुचिता, प्रणिता, पुनीता व कैलाश चन्द्र डोबरियाल साहब..! यह सचमुच यादगार ट्रिप रही! 25 साल पूर्व आँखों में फ़्लैशबैक की तरह उभरकर आये! आप लोगों का स्नेह व प्यार यूँहीं बना रहे!
बताया जाता है कि चरेख का पुरातन नाम चरकान्य शिखर है! यहाँ महर्षि चरक ने अपना आश्रम बनाया था व निघटू नामक आयुर्वेद ग्रन्थ की संरचना की थी!
बहरहाल इतना जरुर कहूंगा कि अगर आपको आने वाले महीनों में महानगरों की गर्मी व मच्छर परेशान करें तो शुकून के लिए कोटद्वार के निकट सबसे नजदीकी डेस्टिनेशन चरेख डांडा जरुर पहुंचे! यहाँ प्रकृति आपका बाँहें फैलाए स्वागत करती नजर आएगी! फिर मिलेंगे ऐसे ही किसी शानदार सफर पर! जहाँ यादें ताजा करते हुए मेरे ट्रेवलाग के शब्द जुड़ेंगे और आपका आत्मीयता भरा प्यार स्नेह दुलार व ममतत्व!